प्रश्न की मुख्य माँग
- प्रस्तावित संशोधन विधेयक के महत्त्व का उल्लेख कीजिए, जो लंबे समय तक हिरासत में रहने पर मंत्रियों को स्वचालित रूप से पदमुक्त करने का प्रावधान करता है।
- मंत्रियों को स्वतः पदमुक्त करने के लिए प्रस्तावित संशोधन विधेयक के निहितार्थों का विश्लेषण कीजिए।
- सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक उपाय सुझाइए।
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उत्तर
प्रस्तावित संशोधन विधेयक के अंतर्गत यह प्रावधान है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों सहित ऐसे सभी मंत्रियों को, जिन्हें पाँच वर्ष या उससे अधिक की सजा वाले अपराधों में 30 दिन से अधिक निरुद्ध किया गया हो, स्वतः पद से हटा दिया जाएगा। यद्यपि यह विधेयक अनुच्छेद–75(3) और 164(2) की सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना के अनुरूप है, परंतु यह संविधान सभा की उस मूल भावना से भिन्न है, जिसने कठोर अयोग्यता मानदंडों को अस्वीकार किया था। डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा के.टी. शाह के प्रस्ताव का विरोध इसी दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।
प्रस्तावित विधेयक के सकारात्मक निहितार्थ
- जवाबदेही को सुदृढ़ करना: प्रस्तावित प्रावधान के तहत मंत्रियों को स्वतः पदमुक्त कर देना यह सुनिश्चित करता है कि जिनके ऊपर आपराधिक आरोप हैं, वे सत्ता और प्रशासनिक पदों पर बने न रहें। इससे राजनीतिक जीवन में जिम्मेदारी और जवाबदेही की भावना बढ़ती है।
- उदाहरण: संविधान के अनुच्छेद-75(3) और 164(2) मंत्रियों को विधायिका के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी ठहराते हैं और यह संशोधन उसी संवैधानिक भावना को और सुदृढ़ करता है।
- नैतिक मानकों का पालन: यह बिल सार्वजनिक पदों के लिए उच्च नैतिक मानक स्थापित करता है और इस सिद्धांत को पुष्ट करता है कि नेतृत्व करने वालों का चरित्र संदेह से परे होना चाहिए। इससे लोकतांत्रिक संस्थाओं में नैतिकता और सत्यनिष्ठा का स्तर बढ़ेगा।
- उदाहरण: लिली थॉमस बनाम भारत संघ (वर्ष 2013) के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि पर स्वतः निर्हरता का प्रावधान दिया था, जो इसी तरह की मंशा को दर्शाता है।
- राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश: यह विधेयक उन नेताओं के लिए एक निवारक तंत्र के रूप में कार्य करेगा, जिन पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं। इससे राजनीति में अपराधीकरण की प्रवृत्ति कम होगी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया अधिक स्वच्छ बनेगी।
- उदाहरण: ADR की रिपोर्ट (वर्ष 2024) के अनुसार, लोकसभा के 46% सांसदों पर आपराधिक मामले लंबित थे। ऐसे परिदृश्य में यह विधेयक सुधारात्मक कदम माना जा सकता है।
- जनता का विश्वास बढ़ाना: इस प्रावधान से नागरिकों को आश्वस्ति मिलेगी कि जिन मंत्रियों पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं, वे हिरासत के दौरान अपने पद का दुरुपयोग नहीं कर पाएँगे। इससे शासन प्रणाली की पारदर्शिता और जनता का विश्वास मजबूत होगा।
- उदाहरण: मनोज नरूला बनाम भारत संघ (2014) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक जीवन में शुचिता के महत्त्व पर बल दिया।
- शासन में अस्थायी तटस्थता सुनिश्चित करना: हिरासत के दौरान मंत्रियों की स्वतः पदमुक्ति यह सुनिश्चित करेगी कि वे जाँच में हस्तक्षेप न कर सकें या अपने पद का दुरुपयोग करके प्रशासनिक निर्णयों को प्रभावित न करें। इससे शासन की प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी बनी रहेगी।
प्रस्तावित विधेयक के नकारात्मक निहितार्थ
- निर्दोष मानने के सिद्धांत का उल्लंघन: केवल हिरासत के आधार पर पद से हटाना, जबकि दोषसिद्धि नहीं हुई हो, अनुच्छेद-21 में निहित न्यायसंगत प्रक्रिया के सिद्धांत के विपरीत है। यह विधेयक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों और न्याय के मूलभूत सिद्धांतों को चुनौती देता है।
- उदाहरण: अनेक विपक्षी नेताओं को पहले हिरासत में लिया गया, किंतु प्रमाणों के अभाव में बाद में रिहा कर दिया गया। इस स्थिति में पद से स्वतः हटाना अन्यायपूर्ण प्रतीत होता है।
- अपराधों की अत्यधिक व्यापक परिधि: यह प्रावधान 2000 से अधिक अपराधों पर लागू होता है, जिनमें से कई अपेक्षाकृत लघु अपराध हैं, जिनकी अधिकतम दंड पाँच वर्ष तक है। इससे परिणाम असंगत और असमानुपातिक हो सकते हैं, क्योंकि गंभीर और लघु दोनों अपराधों में समान व्यवहार किया जा सकता है।
- उदाहरण: विधि सेंटर की रिपोर्ट में पाया गया कि यहाँ तक कि लोक अधिकारी के कार्य में बाधा डालना जैसे छोटे अपराध भी इस श्रेणी में आ जाते हैं।
- लोकतांत्रिक जनादेश को कमजोर करना: स्वतः पदमुक्ति का प्रावधान लोकतांत्रिक जनादेश को दरकिनार करता है और लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है। यदि निर्वाचित प्रतिनिधियों को हिरासत के आधार पर हटाया जाएगा, तो यह जनता के अधिकार और जनादेश दोनों का हनन है।
- उदाहरण: संविधान सभा ने अर्हताओं के अति-नियमन से बचने के लिए केटी शाह के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
- शासन की निरंतरता पर प्रभाव: बार-बार मंत्रियों का हटना कार्यपालिका की कार्यप्रणाली को बाधित कर सकता है। इससे नीतिगत निरंतरता में अवरोध उत्पन्न होगा, निर्णय-प्रक्रिया बाधित होगी और शासन की प्रभावशीलता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
- बरी होने के बावजूद पद-बहाली में विलम्ब: यदि बाद में व्यक्ति निर्दोष सिद्ध हो जाए या रिहा कर दिया जाए, तब भी राजनीतिक और सार्वजनिक छवि को हुआ नुकसान स्थायी रूप से रह जाता है। यह “दोषसिद्धि से पूर्व दंड” (punishment before conviction) जैसा परिदृश्य निर्मित करता है।
सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करने के वैकल्पिक उपाय
- मंत्रियों के आपराधिक मुकदमों का शीघ्र निस्तारण: गंभीर आरोपों से जुड़े मामलों की सुनवाई विशेष न्यायालयों द्वारा निश्चित समय सीमा के भीतर की जानी चाहिए, ताकि लंबे समय तक पद का दुरुपयोग न हो सके और न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक विलंब समाप्त हो।
- स्वतंत्र पर्यवेक्षण समितियाँ: एक संवैधानिक रूप से निर्मित समिति प्रथम दृष्टया (prima facie) साक्ष्यों के आधार पर मंत्रियों के निलंबन की अनुशंसा कर सकती है। इससे निर्णय प्रक्रिया में राजनीतिक हस्तक्षेप घटेगा और जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
- उदाहरण के लिए: लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 इसी प्रकार की एक संस्थागत व्यवस्था का उदाहरण है।
- अंतरिम निलंबन के लिए न्यायिक निरीक्षण: न्यायालयों को हिरासत से जुड़े मामलों का मूल्यांकन कर अस्थायी पदमुक्ति की अनुशंसा करनी चाहिए। इससे न्यायसंगत प्रक्रिया (due process) और लोक जवाबदेही — दोनों के बीच संतुलन बना रहेगा।
- निर्वाचन आयोग की शक्तियों को सुदृढ़ करना: भारतीय निर्वाचन आयोग को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वह गंभीर आपराधिक मामलों की निगरानी करे और आवश्यकतानुसार निर्हरता की अनुशंसा करे। इससे समयबद्ध और निष्पक्ष कार्यवाही सुनिश्चित होगी।
- मंत्रियों के लिए वैधानिक आचार संहिता: एक कानूनी आचार संहिता बनाई जानी चाहिए, जिसके अंतर्गत गंभीर आरोपों की न्यायसंगत समीक्षा (judicial review) के बाद मंत्री का त्याग-पत्र अनिवार्य हो। इससे शासन व्यवस्था में पारदर्शिता और नैतिकता को मजबूती मिलेगी।
- जाँच प्रक्रियाओं में पारदर्शिता: स्वतंत्र और गैर-राजनीतिक जाँच एजेंसियों का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि कानून प्रवर्तन संस्थाओं का उपयोग राजनीतिक प्रतिशोध (political vendetta) के लिए न हो सके।
- उदाहरण के लिए: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने स्वतंत्र जाँच एजेंसियों की स्थापना की अनुशंसा की थी।
निष्कर्ष
इस विधेयक का जवाबदेही को मजबूत करने का उद्देश्य, निश्चित रूप से सराहनीय है, परंतु स्वचालित निर्हरता का प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया के सिद्धांत, लोकतांत्रिक जनादेश और राजनीतिक स्थिरता—तीनों को ही दरकिनार कर सकता है। इस दिशा में एक अधिक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है, जिसमें मंत्रियों के विरुद्ध मामलों की शीघ्र सुनवाई हेतु विशेष न्यायालय, न्यायालय द्वारा समीक्षा के बाद अस्थायी निलंबन, तथा स्वतंत्र निगरानी तंत्र शामिल हों। ऐसा दृष्टिकोण न केवल संवैधानिक नैतिकता के अनुरूप होगा, बल्कि अनुच्छेद-21 द्वारा प्रदत्त न्यायिक प्रक्रिया के अधिकारों की भी रक्षा करेगा। सार्वजनिक जीवन में वास्तविक नैतिकता और सत्यनिष्ठा केवल तभी सुनिश्चित हो सकती है, जब न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया जाए, न कि उसे दरकिनार कर कोई त्वरित समाधान लागू किया जाए।
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