Q. "छोटे अपराधों के अत्यधिक अपराधीकरण से न्यायपालिका पर अत्यधिक बोझ पड़ा है और राज्य की मनमानी कार्रवाई की गुंजाइश बढ़ गई है।" जन विश्वास 2.0 विधेयक के संदर्भ में, चर्चा कीजिए कि ऐसे विधायी सुधार भारत में ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ और ‘ईज ऑफ लिविंग’ कैसे ला सकते हैं। इसके प्रभावी कार्यान्वयन में आने वाली संभावित चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • जन विश्वास 2.0 विधेयक जैसे विधायी सुधार किस प्रकार भारत में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और ईज ऑफ लिविंग को बेहतर बनाते हैं।
  • इसके प्रभावी कार्यान्वयन में संभावित चुनौतियाँ।
  • आगे की उपयुक्त राह लिखिये।

उत्तर

भारत में लगभग 882 केंद्रीय कानूनों में 7,305 आपराधिक प्रावधान निहित हैं, जिनमें से 75% से अधिक मुख्य आपराधिक न्याय प्रणाली से बाहर आते हैं (स्रोत: विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी)। नतीजतन, मामूली तकनीकी या नागरिक चूकों को अपराध घोषित कर देने से अदालतें बोझिल हो जाती हैं और उद्यमशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जन विश्वास 2.0 विधेयक का उद्देश्य ऐसे अपराधों का तार्किक पुनर्विन्यास करके विश्वास आधारित शासन (trust-based governance) को बढ़ावा देना है, जिससे जीवन और व्यापार दोनों में सुगमता लाई जा सके।

जन विश्वास 2.0 से व्यापार में सुगमता और जीवनयापन में सुगमता में सुधार

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस

  • अनुपालन भय में कमी: यह विधेयक 288 प्रावधानों का अपराधमुक्तिकरण करता है, जिससे उद्यमियों के लिए जेल जाने का भय समाप्त होता है।
    • उदाहरण के लिए: ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि व्यवसायों को जिन 69,233 अनुपालनों का पालन करना होता है, उनमें से 37.8% में कारावास की धाराएँ हैं।
  • सिविल दंड में बदलाव: विधेयक में जेल की सजाओं को हटाकर आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है। यह बदलाव अनुपातिक दंड की दिशा में महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रत्येक उल्लंघन को अपराध मानकर जेल भेजना व्यावहारिक और न्यायोचित नहीं था।
    • उदाहरण के लिए: विद्युत अधिनियम 2023 में पहले जहाँ तीन माह की जेल का प्रावधान था, वहीं अब उसे ₹10,000 से ₹10 लाख तक के आर्थिक दंड से प्रतिस्थापित किया गया है।
  • व्यावसायिक संचालन में पूर्वानुमेयता: भारतीय व्यापारिक माहौल में सबसे बड़ी समस्या नीतिगत अनिश्चितता रही है। जब दंड और अनुपालन बार-बार बदलते हैं, तो व्यवसाय दीर्घकालिक योजना नहीं बना पाते। जन विश्वास 2.0 विधेयक ने इसे हल करने के लिए स्वचालित दंड वृद्धि (automatic penalty escalation) की व्यवस्था दी है।
    • उदाहरण के लिए: यदि कोई उद्योग किसी तकनीकी अनुपालन को बार-बार तोड़ता है, तो प्रत्येक 3 वर्षों में उसका जुर्माना स्वतः बढ़ जाएगा। इससे नए कानून बनाने की जरूरत नहीं होगी और व्यापारिक माहौल स्थिर रहेगा।
  • विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना: विदेशी निवेशक अक्सर ऐसे देशों में निवेश करते हैं जहाँ कानूनी ढाँचा स्थिर, पूर्वानुमेय और उदार  हो। भारत में अब तक कठोर दंडात्मक प्रावधानों के कारण FDI आकर्षित करने में कठिनाई होती थी। जन विश्वास 2.0 विधेयक भारत को सर्वोत्तम वैश्विक विनियामक प्रथाओं के अनुरूप बनाता है, जहाँ छोटे उल्लंघनों पर जेल नहीं, बल्कि आर्थिक दंड दिया जाता है। इससे ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में भारत की रैंकिंग सुधरेगी और निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा। 

ईज ऑफ लिविंग

  • मनमाने अभियोजन को समाप्त करता है: औपनिवेशिक काल से चली आ रही कई छोटी-मोटी धाराएँ नागरिकों को अनावश्यक रूप से परेशान करती थीं। किसी मामूली तकनीकी गलती या प्रशासनिक त्रुटि पर भी लोगों को जेल और कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ता था। यह विधेयक उन छोटे-मोटे अपराधों को समाप्त करता है जिससे आम नागरिकों को बेवजह की कानूनी कार्रवाई से राहत मिलेगी।
    • उदाहरण: विधेयक में शामिल 355 प्रावधानों में से 67 प्रावधान विशेष रूप से ऐसे अपराधों को समाप्त करके जीवन को सुगम बनाने पर केंद्रित हैं।
  • पहली बार अपराध करने वालों के लिए सुरक्षा: पहली बार गलती करने वाले व्यक्तियों को सीधे अपराधी मान लेना कठोर और अन्यायपूर्ण दृष्टिकोण था। जन विश्वास 2.0 विधेयक ने इसके लिए सुधार नोटिस ( improvement notices) और चेतावनी प्रणाली का प्रावधान किया है।  यह व्यवस्था  भय नहीं बल्कि सुधार की संस्कृति स्थापित करती है। 
    • उदाहरण: इस विधेयक के अंतर्गत 10 अधिनियमों के तहत 76 अपराधों में चेतावनी और सुधार नोटिस की व्यवस्था लागू की गई है।
  • नागरिकों पर मुकदमेबाजी का बोझ कम करता है:  छोटी-मोटी चूकों के मामलों के कई केस होने पर गंभीर अपराधों के निपटारे में देरी होती है और इसके साथ-साथ नागरिकों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। जन विश्वास 2.0 विधेयक ऐसे मामलों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर देता है, जिससे अदालतें गंभीर और महत्वपूर्ण मामलों पर ध्यान केंद्रित कर सकें और नागरिकों को भी सालों तक चलने वाली कार्यवाही से राहत मिल सके।
    • उदाहरण: अगस्त 2025 तक, भारत की जिला अदालतों में 3.6 करोड़ से अधिक आपराधिक मामले लंबित थे (राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड)।
  • शासन में विश्वास को बढ़ावा: जब राज्य नागरिकों के प्रति कठोर दंडात्मक रवैया अपनाता है तो भय और अविश्वास की स्थिति उत्पन्न होती है। इसके विपरीत, जब शासन व्यवस्था सुधारवादी और नागरिक-मित्र बनती है, तो लोग न केवल कानून का पालन अधिक ईमानदारी से करते हैं, बल्कि शासन में उनका भरोसा भी मजबूत होता है। जन विश्वास 2.0 विधेयक, भारत को नागरिक-केन्द्रित शासन की ओर ले जाने का एक महत्वपूर्ण कदम है।

अपने प्रगतिशील इरादे के बावजूद, इस विधेयक को कार्यान्वयन में कई संरचनात्मक और संस्थागत चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

प्रभावी कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • नियामक संस्थाओं की क्षमता में कमी: जन विश्वास 2.0 विधेयक में आपराधिक दंड के स्थान पर नागरिक दंड (सिविल दंड) पर बल दिया गया है। इसके लिए मजबूत निर्णय-प्रणाली और सक्षम नियामक संस्थाओं की आवश्यकता है। किन्तु वर्तमान समय में अधिकांश नियामक निकायों के पास पर्याप्त प्रशिक्षित मानव संसाधन तथा त्वरित निपटान की क्षमता नहीं है। इससे सुधारों के लक्ष्यों की प्राप्ति बाधित हो सकती है।
  • धीमी प्रगति और विधायी विलंब: भारत में विधायी सुधारों की प्रक्रिया प्रायः लंबी और जटिल होती है। आवश्यक संशोधन अक्सर मंत्रालयों और संसदीय समितियों में अटक जाते हैं, जिसके कारण उनका समय पर क्रियान्वयन नहीं हो पाता। परिणामस्वरूप नागरिकों को सुधारों का वास्तविक लाभ देर से मिल पाता है।
  • राज्यों में एकसमान अंगीकरण: संघीय ढाँचे वाले देश भारत में कई प्रावधानों को लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों पर होती है। कुछ राज्य इन सुधारों को शीघ्र अपना लेते हैं, जबकि अन्य में इसे लागू करने की गति धीमी रहती है। इस कारण पूरे देश में सुधारों का समान और समन्वित प्रभाव दिखाई नहीं देता।
  • जुर्माने के दुरुपयोग की संभावना: इस विधेयक का उद्देश्य नागरिकों को सुविधा प्रदान करना और अनुपालन को प्रोत्साहित करना है, परन्तु भारी-भरकम दंड को कई बार राजस्व वसूली का साधन भी बना लिया जाता है। यदि ऐसा हुआ तो नागरिकों और छोटे उद्यमों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ बढ़ेगा।
  • न्यायिक व्याख्या की चुनौतियाँ: भारत की न्यायपालिका प्रायः सावधानीपूर्ण और परंपरागत व्याख्या करने का प्रयास करती है। यदि न्यायालय इन प्रावधानों की संकीर्ण व्याख्या करेंगे तो इनका नवाचार और नागरिक-हितैषी स्वरूप सीमित हो जाएगा। इससे सुधारों का वास्तविक प्रभाव कम हो सकता है।
  • प्रवर्तन एजेंसियों का प्रतिरोध: कई प्रवर्तन एजेंसियों की शक्ति अब तक उनके विवेकाधिकार पर आधारित रही है। इस विधेयक के बाद उनकी यह शक्ति सीमित हो जाती है। परिणामस्वरूप, ऐसी संस्थाएँ सुधारों को लागू करने में उदासीनता या प्रतिरोध दिखा सकती हैं, जो इसके सफल क्रियान्वयन के लिए बड़ी बाधा बन सकती है।

आगे की राह 

  • नियामक संस्थाओं का क्षमता निर्माण: जन विश्वास 2.0 विधेयक की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि नियामक संस्थाएँ कितनी दक्ष हैं। इसके लिए उन्हें निर्णय-प्रक्रिया, विवाद निपटान (मध्यस्थता), तथा दंडात्मक की बजाय सुधारात्मक प्रवर्तन के तरीकों पर विशेष प्रशिक्षण दिया जाना आवश्यक है।
  • डिजिटल अनुपालन प्लेटफॉर्म: तकनीक आधारित और पारदर्शी तंत्र से इंस्पेक्टर राज को कम किया जा सकता है। ऑनलाइन पोर्टल और केंद्रीकृत निरीक्षण व्यवस्था से बार-बार होने वाली जाँचों और अनावश्यक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा।
    • उदाहरण: कर्नाटक के ई-बिज पोर्टल के अंतर्गत केंद्रीय निरीक्षण प्रणाली (CIS) ने श्रम, कारखाना एवं बॉयलर तथा प्रदूषण नियंत्रण विभाग की जाँचों को एकीकृत कर पारदर्शिता सुनिश्चित की है।
  • राज्यों के साथ सामंजस्य और प्रोत्साहन: संघीय ढाँचे में सुधार तभी प्रभावी होंगे जब सभी राज्य उन्हें समान रूप से अपनाएँ। इसके लिए केंद्र सरकार को राज्यों को वित्तीय प्रोत्साहन और राजकोषीय लाभ देना चाहिए ताकि वे शीघ्रता से इन सुधारों को लागू करें।
    • उदाहरण के लिए: वस्तु एवं सेवा कर (GST) का मॉडल इस दृष्टि से प्रेरणादायक है, जिसने राज्यों के बीच सहमति और समन्वय स्थापित करने में सफलता पाई।
  • कानूनों की आवधिक समीक्षा: किसी भी कानून को लंबे समय तक यथावत रखने से नियमों का बोझ और अप्रासंगिक प्रावधान बढ़ जाते हैं। इसलिए आवश्यक है कि सभी नए प्रावधानों में सनसेट क्लॉज़ (समाप्ति उपबंध) और नियमित समीक्षा की व्यवस्था हो।
    •  उदाहरण के लिए: यूनाइटेड किंगडम का ‘एंटरप्राइज़ एंड रेग्युलेटरी रिफ़ॉर्म एक्ट, 2013’  माध्यमिक विधानों की समयबद्ध समीक्षा सुनिश्चित करता है, जिससे पुराने और अप्रासंगिक नियमों को हटाया या संशोधित किया जा सके।
  • जागरूकता और हितधारक जुड़ाव: कानून तभी सफल होंगे जब जनता, विशेषकर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) तथा आम नागरिकों को इनके बारे में जागरूक किया जाए। सक्रिय संवाद और परामर्श से अनुपालन की संस्कृति विकसित होगी।
    • उदाहरण के लिए: ग्रेटर नोएडा स्थित CGST आयुक्तालय द्वारा ‘संवाद’ पहल के तहत करदाताओं और अधिकारियों के बीच मासिक संवाद आयोजित किए जाते हैं।

निष्कर्ष

जन विश्वास 2.0 विधेयक भारत में विश्वास-आधारित शासन की ओर एक निर्णायक परिवर्तन का प्रतीक है। यह पुराने आपराधिक प्रावधानों को हटाकर नागरिकों और उद्यमों के लिए अनुपालन को सरल बनाता है। यह ‘न्यूनतम शासन, अधिकतम सुशासन’ के सिद्धांत के अनुरूप है, जो कठोर विनियमन से सुगम सुविधा की दिशा में परिवर्तन को दर्शाता है। इससे न केवल प्रशासनिक दक्षता और निवेश को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि भारत में नागरिक-केन्द्रित शासन व्यवस्था भी सुदृढ़ होगी।”

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