Q. संविधान (130th संशोधन) विधेयक 2025, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री के 30 दिनों से अधिक समय तक हिरासत में रहने पर उनके इस्तीफे या पद से हटाने से संबंधित है। शासन और राजनीति पर इस प्रस्ताव के संभावित प्रभाव का परीक्षण कीजिए। ईमानदारी और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए आगे की राह सुझाइए। (250 शब्द, 15 अंक)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक, 2025 का शासन और राजनीति पर संभावित प्रभाव।
  • कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियाँ।
  • सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता दोनों को सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त राह लिखिये।

उत्तर

भारत में राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के प्रयास में संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 एक महत्त्वपूर्ण पहल है। यह प्रावधान करता है कि यदि कोई मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री 30 दिनों से अधिक समय तक गंभीर अपराधों में हिरासत में रहता है (जिनमें अधिकतम दंड पाँच वर्ष या उससे अधिक है), तो उसे पद छोड़ना होगा।

शासन और राजनीति पर संभावित प्रभाव

  • राजनीतिक जवाबदेही को मजबूत करना: यह संशोधन यह सुनिश्चित करके नैतिक शासन को लागू करता है कि दागी नेता पद पर न रहें। नेताओं को अपने आचरण और छवि के प्रति अधिक सतर्क रहना होगा। इससे राजनीति में स्वच्छता आएगी और अपराधी प्रवृत्ति के लोगों का प्रभाव घटेगा।
  • संस्थाओं में जनता का विश्वास बहाल करना: गंभीर आरोपों के बावजूद सत्ता में बने रहने वाले नेताओं के प्रति जनता की निराशा को कम करने में मदद करेगा और जनता का यह विश्वास पुख्ता होगा कि लोकतंत्र में कानून सब पर समान रूप से लागू होता है, चाहे वह कितना भी बड़ा नेता क्यों न हो।
  • संवैधानिक नैतिकता को बढ़ावा देता है: यह संशोधन सार्वजनिक पदों पर जवाबदेही और सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करता है तथा विधि के शासन को प्रतिबिम्बित करते हुए इस मूल भावना को सुदृढ़ करता है कि सार्वजनिक पद गरिमा का प्रतीक है, न कि शक्ति का दुरुपयोग करने का साधन।
    • उदाहरण: यह संशोधन मनोज नरूला (वर्ष 2014) वाद के निर्णय और गंभीर आपराधिक आरोपों वाले मंत्रियों की नियुक्ति के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय की चेतावनी के अनुरूप है।
  • राजनीति के अपराधीकरण को रोकता है: अपराधियों को संरक्षण के लिए राजनीति में प्रवेश करने से रोकता है। 
    • उदाहरण: वर्ष 2024 के ADR डेटा के अनुसार, वर्ष 2019 के 43% सांसदों की तुलना में 46% सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिससे लोकतंत्र में विश्वास कम हो रहा है।
  • भारत की वैश्विक छवि में सुधार: विधि के शासन के प्रति प्रतिबद्धता का संकेत, निवेशकों और कूटनीतिक विश्वास को बढ़ावा देता है। 
    • उदाहरण: ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक 2024 में भारत 96/180वें स्थान पर है; भ्रष्टाचार विरोधी सुधारों से रैंकिंग में सुधार हो सकता है।

चुनौतियाँ

  • निर्दोषता की धारणा (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन: यह प्रावधान गिरफ्तारी को अपराध सिद्ध होने के बराबर मान लेता है, जबकि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है, और उसके अंतर्गत “जब तक दोष सिद्ध न हो, व्यक्ति निर्दोष है” की अवधारणा निहित है।
    • उदाहरण: लिली थॉमस वाद में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि केवल गिरफ्तारी या आरोप तय होने से जनप्रतिनिधि निर्हर नहीं ठहराया जा सकता, निर्हरता तभी होगी जब दोषसिद्धि हो।
  • राजनीतिक दुरुपयोग का खतरा: यह प्रावधान राजनीतिक प्रतिशोध के औज़ार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। विपक्षी नेताओं को झूठे मामलों में फँसाकर 30 दिन से अधिक हिरासत में रखा जा सकता है, जिससे वे स्वचालित रूप से पद से हट जाएँ। इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था में अस्थिरता और शक्ति का दुरुपयोग बढ़ेगा।
  • शासन व्यवस्था अस्थिर होती है: यदि मंत्रियों या मुख्यमंत्री/प्रधानमंत्री को हिरासत के कारण बार-बार पद से हटना पड़े, तो शासन में निरंतरता बनी नहीं रह पाएगी। इससे नीति निर्माण और प्रशासनिक कार्य बाधित होंगे, विकास परियोजनाएँ अटक सकती हैं और शासन व्यवस्था अस्थिर हो जाएगी।
  • संघीय सिद्धांत और शक्तियों का पृथक्करण खतरे में: यह संशोधन अप्रत्यक्ष रूप से जाँच एजेंसियों को अत्यधिक शक्तिशाली बना देगा। केवल गिरफ्तारी के आधार पर पद से हटाने की बाध्यता न्यायपालिका की भूमिका को दरकिनार कर सकती है। इससे शक्तियों का पृथक्करण (Separation of Powers) सिद्धांत प्रभावित होगा और संघीय ढाँचे (Federalism) की नींव कमजोर होगी, क्योंकि केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से राज्यों की सरकारों को अस्थिर किया जा सकता है।

आगे की राह 

  • निष्कासन को न्यायालय द्वारा आरोप तय करने से जोड़ना: केवल गिरफ्तारी के आधार पर पद से हटाना न्यायसंगत नहीं है। इसके बजाय, किसी सक्षम न्यायालय (Competent Court) द्वारा औपचारिक रूप से आरोप तय  होने पर ही पद से हटाने की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे न्यायिक जाँच और पारदर्शिता सुनिश्चित होगी।
    • उदाहरण के लिए: विधि आयोग की 244वीं रिपोर्ट (2014) में आरोप तय होने के बाद राजनेताओं को निर्हर घोषित करने की सिफ़ारिश की गई थी, विशेषकर पाँच वर्षों या उससे ज़्यादा की सजा वाले अपराधों के लिए।
  • केवल गंभीर अपराधों (नैतिक अधमता, भ्रष्टाचार) पर लागू: यह प्रावधान सभी प्रकार के अपराधों पर लागू नहीं होना चाहिए, बल्कि केवल उन अपराधों पर होना चाहिए जो समाज और लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा हैं– जैसे भ्रष्टाचार, नैतिक पतन से जुड़े अपराध, आतंकवाद, या गंभीर आर्थिक अपराध। इससे इसका राजनीतिक दुरुपयोग रोका जा सकेगा। 
    • उदाहरण के लिए: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of People Act,1951) पहले से ही गंभीर अपराधों (जैसे भ्रष्टाचार, नैतिक पतन वाले अपराध) में दोषसिद्धि होने पर निर्हरता तय करता है।
  • स्वतंत्र न्यायाधिकरण समीक्षा: निष्पक्षता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए एक निष्पक्ष न्यायाधिकरण को पद से हटाये जाने के विषय पर निर्णय लेना चाहिए। 
    • उदाहरण: निर्वाचन आयोग वर्तमान में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत कुछ निर्हरताओं पर निर्णय देता है, जो इस बात का उदाहरण है कि निष्पक्षता को संस्थागत रूप से कैसे लागू किया जा सकता है।
  • स्वतः पदच्युति के स्थान पर अंतरिम निलंबन: केवल गिरफ्तारी के आधार पर किसी जनप्रतिनिधि को तुरंत पद से हटाने की बजाय, उसके खिलाफ अस्थायी निलंबन (Interim Suspension) लागू किया जाना‌ चाहिये। इससे एक ओर जनता के प्रतिनिधि की जवाबदेही बनी रहेगी, वहीं दूसरी ओर शासन की निरंतरता भी बनी रहेगी और प्रशासनिक कार्य बाधित नहीं होंगे।
  • जनप्रतिनिधियों के लिए समयबद्ध सुनवाई: जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबी खिंचने वाली कानूनी प्रक्रिया लोकतांत्रिक व्यवस्था को नुकसान पहुँचाती है और राजनीतिक हथकंडों को बढ़ावा देती है। इसलिए उनके मामलों का निपटारा एक निश्चित समय सीमा  में होना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: सुप्रीम कोर्ट (वर्ष 2014) ने निर्देश दिया था कि विधायकों और सांसदों के मामलों की सुनवाई एक वर्ष के भीतर पूरी हो जानी चाहिए ताकि राजनीतिक और कानूनी अनिश्चितता समाप्त हो सके।

लोकतंत्र में यदि सत्ता के साथ सत्यनिष्ठा न हो तो वह धीरे-धीरे भ्रष्ट होकर जनता के विश्वास को नष्ट कर देती है। वहीं यदि सत्यनिष्ठा तो हो पर निष्पक्षता  न हो, तो यह नागरिक स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा बन जाती है। इसी सन्दर्भ में संविधान का 130वाँ संशोधन विधेयक, 2025 एक साहसिक कदम है जो राजनीति से अपराधीकरण को समाप्त करने और स्वच्छ शासन सुनिश्चित करने की दिशा में उठाया गया है। परंतु यदि इसे बिना किसी नियंत्रण व संतुलन के लागू किया गया, तो यह राजनीतिक प्रतिशोध और संवैधानिक हस्तक्षेप का माध्यम भी बन सकता है। इसलिए आवश्यक है कि इस प्रावधान को लागू करने के लिए एक न्यायिक परीक्षण से परखा हुआ, एकरूप  और निष्पक्ष  तंत्र स्थापित किया जाए। ऐसा करने से राजनीति में सत्यनिष्ठा और जवाबदेही सुनिश्चित होगी, परंतु न्याय और स्वतंत्रता के मूलभूत लोकतांत्रिक सिद्धांतों से समझौता नहीं होगा।

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