प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत की मानव पूंजी क्षमता को आकार देने में प्रारंभिक बाल्यावस्था पोषण का महत्व।
- बच्चों में पोषण संबंधी परिणामों में सुधार के लिए शासन और सामुदायिक भागीदारी को कैसे मजबूत किया जा सकता है।
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उत्तर
पहले 1,000 दिनों में पोषण मानव विकास में एक दुर्लभ, समय-संवेदनशील अवसर का प्रतिनिधित्व करता है, जहाँ पोषण आजीवन शिक्षण की क्षमता, स्वास्थ्य और उत्पादकता को आकार देता है। भारत जैसी युवा आबादी वाले देश के लिए यह केवल स्वास्थ्य का प्रश्न नहीं, बल्कि दीर्घकालिक मानव पूँजी निर्माण और आर्थिक प्रगति की नींव है।
भारत की मानव पूंजी को आकार देने में प्रारंभिक बाल्यावस्था पोषण का महत्त्व
- संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देता है: जीवन के पहले दो वर्षों में बच्चे का लगभग 80% मस्तिष्क विकास होता है। इस दौरान उचित पोषण न केवल बच्चे की स्मरण शक्ति, तर्क क्षमता और सीखने की योग्यता को बढ़ाता है, बल्कि आगे चलकर उसकी IQ (बौद्धिक स्तर) को भी बढ़ाता है।
- उदाहरण: वेल्लोर बर्थ कोहोर्ट अध्ययन के अनुसार, प्रारंभिक बाल्यावस्था में आयरन की कमी पाँच वर्ष की आयु तक बच्चे की भाषाई क्षमता (verbal performance) और संज्ञानात्मक गति (cognitive processing speed) को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
- स्टंटिंग को रोकता है और उत्पादकता बढ़ाता है: बचपन में कुपोषण और ठिगनापन (Stunting) व्यक्ति की ऊँचाई ही नहीं, बल्कि उसकी शारीरिक क्षमता और आर्थिक उत्पादकता को भी घटा देता है, जिससे समाज और राष्ट्र को दीर्घकालिक हानि होती है।
- उदाहरण: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (वर्ष 2019–21) के अनुसार, भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे स्टंटिंग (stunted) से ग्रसित हैं और 32.1% का वजन सामान्य से कम (underweight) है।
- स्कूल के लिए तत्परता और शिक्षण परिणामों में सुधार: संतुलित पोषण बच्चों को विद्यालय में प्रवेश के लिए तैयार करता है, जिससे उनकी पढ़ाई में रुचि बनी रहती है और ड्रॉप-आउट दर घटती है। इसके अतिरिक्त, यह उनकी सीखने की क्षमता और संज्ञानात्मक स्मरणशक्ति (Cognitive retention) को मजबूत करता है।
- उदाहरण के लिये: “पोषण भी पढ़ाई भी” पहल पोषण और प्रारंभिक शिक्षा को एक साथ जोड़ती है, ताकि बच्चों का शारीरिक व बौद्धिक विकास समानांतर रूप से हो सके।
- स्वास्थ्य सेवा का बोझ कम होता है: यदि बच्चों को कुपोषण से बचाया जाए तो उनके पूरे जीवन में बीमारियों की संभावना कम हो जाती है, जिससे स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च घटता है और परिवार तथा राष्ट्र की आर्थिक प्रत्यास्थता मजबूत होती है।
- उदाहरण के लिए: झारखंड के चाईबासा क्षेत्र में चलाए गए पायलट प्रोजेक्ट में “शिशु शक्ति” नामक फोर्टिफाइड आहार का वितरण किया गया, जिसके परिणामस्वरूप गंभीर रूप से कुपोषित 78% बच्चों में उल्लेखनीय सुधार देखा गया।
- महिलाओं को सशक्त बनाना और पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी को समाप्त करना: जब बच्चे स्वस्थ रहते हैं तो माताएँ भी कामकाज में भाग ले सकती हैं, जिससे परिवार को आर्थिक स्वतंत्रता मिलती है और गरीबी का चक्र धीरे-धीरे टूटने लगता है।
- राष्ट्रीय विकास और सतत विकास लक्ष्यों (SDG) का समर्थन करता है: प्रारंभिक पोषण सीधे-सीधे सतत विकास लक्ष्य-2 (भूखमुक्त समाज) और लक्ष्य-4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) से जुड़ा हुआ है। यह राष्ट्र को समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास की दिशा में आगे बढ़ाता है।
- उदाहरण के लिये: ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट (वर्ष 2015) के अनुसार, प्रारंभिक पोषण पर किया गया प्रत्येक 1 डॉलर का निवेश 16 डॉलर के आर्थिक प्रतिफल (economic return) के रूप में सामने आता है।
- जनसांख्यिकीय लाभांश को सुदृढ़ करना: भारत की लगभग 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। यदि बच्चों को जीवन के शुरुआती चरण में उचित पोषण मिले तो वे आगे चलकर एक स्वस्थ, कुशल और प्रतिस्पर्धी कार्यबल बन सकते हैं, जो भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश को वास्तविक शक्ति में बदल सकता है।
पोषण परिणामों में सुधार के लिए शासन और सामुदायिक भागीदारी को मजबूत करना
शासन उपाय
- योजनाओं का अभिसरण: एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS), पोषण 2.0, प्रधानमंत्री पोषण योजना (PM Poshan) तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) को आपस में जोड़कर समग्र एवं निरंतर सेवा-प्रदान सुनिश्चित करना चाहिए। इससे स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण से जुड़ी सेवाएँ एक ही छत्र के नीचे मिलेंगी और बच्चों तथा माताओं को बहुआयामी लाभ प्राप्त होगा।
- डेटा-संचालित निगरानी: पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए रीयल-टाइम डैशबोर्ड और पोषण ट्रैकर का उपयोग करना चाहिए।
- उदाहरण: पोषण ट्रैकर ऐप बच्चों और माताओं के वृद्धि-संबंधी मानकों तथा पोषण सेवाओं की निरंतर निगरानी करता है, जिससे नीतियों की प्रभावशीलता को तुरंत आंका जा सकता है।
- समयबद्ध लक्ष्य एवं जवाबदेही: पोषण सुधार हेतु कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्य तय किए जाएँ और उन्हें बजट आवंटन से जोड़ा जाए। इससे सुनिश्चित होगा कि केवल योजनाएँ कागज़ पर न रहें, बल्कि समयबद्ध परिणाम भी मिलें।
- प्राथमिक स्तर के कार्यकर्ताओं की क्षमता निर्माण: आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को पोषण परामर्श और डिजिटल सेवा वितरण का प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: पोषण ट्रैकर पहल के अंतर्गत आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को पाँच दिन का प्रत्यक्ष प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें पाठ्यक्रम, शिक्षण पद्धति और मूल्यांकन उपकरणों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
सामुदायिक भागीदारी के उपाय
- माताओं के नेतृत्व में सहकर्मी सहायता समूह: गाँवों में माताओं को परिवर्तनकारी एजेंट के रूप में संगठित किया जाए, ताकि सामुदायिक स्तर पर पोषण संबंधी पहलें चल सकें। जब माँ स्वयं पोषण संबंधी व्यवहार अपनाती है, तो वह पूरे समुदाय में जागरूकता फैलाने वाली प्रमुख भूमिका निभाती है।
- व्यवहार परिवर्तन अभियान: आहार विविधता, स्तनपान तथा स्वच्छता पर केंद्रित सामुदायिक अभियान चलाए जाने चाहिए।
- उदाहरण के लिए: ‘नवचेतना’ राष्ट्रीय रूपरेखा शैशवकालीन विकास के लिए आयु-आधारित गतिविधियाँ उपलब्ध कराती है, जो जन्म से तीन वर्ष तक के बच्चों के सामाजिक एवं संज्ञानात्मक विकास में सहायक हैं।
- स्थानीयकृत खाद्य समाधान: सामुदायिक रसोईघरों (community kitchens) को बढ़ावा देना चाहिए तथा स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पोषक खाद्य पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: असम के डिब्रूगढ़ में, सरकार द्वारा स्थापित एक केंद्रीय सामुदायिक रसोई लगभग 1 लाख बच्चों को पौष्टिक मध्याह्न भोजन प्रदान करती है।
- सामाजिक लेखा परीक्षा एवं सामुदायिक निगरानी: पोषण योजनाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु पंचायतों और विद्यालय प्रबंधन समितियों (SMCs) की सक्रिय भागीदारी अनिवार्य है। इससे योजनाओं में पारदर्शिता बढ़ती है और भ्रष्टाचार की संभावनाएँ कम होती हैं।
निष्कर्ष
पहले 1,000 दिनों के दौरान पोषण में निवेश करना भारत के भविष्य में निवेश करने के बराबर है। सुदृढ़ शासन-व्यवस्था (Governance) तथा समुदाय-आधारित हस्तक्षेप (Community-driven interventions) कुपोषण को समाप्त कर सकते हैं। इससे बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमता (Cognitive Capital) में वृद्धि होगी और भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) को अधिकतम रूप से प्राप्त कर सकेगा।। यह लक्ष्य विकसित भारत 2047 की परिकल्पना को साकार करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। यदि बच्चों का पोषण सुदृढ़ होगा तो देश को एक कुशल, स्वस्थ एवं उत्पादक कार्यबल (Workforce) प्राप्त होगा, जो न केवल आर्थिक विकास को गति देगा बल्कि उसे समावेशी (Inclusive) भी बनाएगा। इस प्रकार, पोषण पर किया गया निवेश ही भारत की दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक प्रगति का सबसे सशक्त साधन है।
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