प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत में सामाजिक गतिशीलता को सक्षम बनाने में शिक्षा की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
- भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश पर शिक्षा-रोजगार योग्यता बेमेल के प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
- आगे की राह बताइए।
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उत्तर
भारत विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देशों में से एक है, जिसकी 80 करोड़ से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है, जिसे अक्सर विकास को गति देने वाला माना जाता है। हालाँकि, अगर यह युवा अशिक्षित, अकुशल या बेरोजगार रहता है, तो यह लाभांश एक जनसांख्यिकीय टाइम बम बनने का जोखिम उठाता है।
सामाजिक गतिशीलता को आकार देने में शिक्षा की भूमिका
- पीढ़ी दरिद्रता को कम करना: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच गरीब परिवारों के बच्चों को बेहतर वेतन वाले व्यवसायों में जाने का अवसर प्रदान करती है।
- उदाहरण: ग्रामीण पृष्ठभूमि से पहली पीढ़ी के इंजीनियरों/डॉक्टरों का उदय।
- रोज़गार क्षमता में वृद्धि: आधुनिक विषयों में डिग्रियाँ उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों में प्रवेश के द्वार खोलती हैं।
- उदाहरण: IT क्षेत्र में नौकरियों के लिए कंप्यूटर विज्ञान एवं डेटा एनालिटिक्स में स्नातक होना आवश्यक हो गया है।
- सामाजिक असमानता में कमी: शिक्षा का अधिकार, सर्व शिक्षा अभियान एवं सकारात्मक कार्रवाई जैसी नीतियों ने दलितों तथा हाशिए के समूहों को व्यावसायिक क्षेत्रों में प्रवेश करने में सक्षम बनाया है।
- महिला सशक्तिकरण: शिक्षा ने कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाया है।
- उदाहरण: PLFS के आँकड़े दर्शाते हैं कि महिला श्रम भागीदारी दर लगभग 23% (वर्ष 2017-18) से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 41% हो गई है।
- आकांक्षाओं को बढ़ावा देना एवं सामाजिक परिवर्तन: शिक्षा के संपर्क में आने से जीविका संबंधी कार्यों से परे आकांक्षाएं उत्पन्न होती हैं, तथा ग्रामीण युवाओं को शहरी/वैश्विक करियर में शामिल होने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
शिक्षा एवं रोजगार योग्यता के बीच बेमेल जनसांख्यिकीय लाभांश के लिए खतरा
- पुराना पाठ्यक्रम: विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम अक्सर 21वीं सदी की उद्योग आवश्यकताओं से पीछे रह जाते हैं।
- उदाहरण: सिद्धांत पर केंद्रित इंजीनियरिंग कार्यक्रम जिनमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) या डेटा विज्ञान अनुप्रयोगों का कम अनुभव होता है।
- रटंत विद्या एवं व्यावहारिक कौशल का अभाव: स्नातकों में अक्सर समस्या-समाधान, टीम वर्क एवं संचार कौशल का अभाव होता है, जिन्हें नियोक्ता महत्व देते हैं।
- उदाहरण: स्नातक कौशल सूचकांक वर्ष 2025 दर्शाता है कि केवल 43% स्नातक ही नौकरी के लिए तैयार हैं।
- व्यावसायिक प्रशिक्षण की कमी: सीमित एवं असमान व्यावसायिक प्रशिक्षण के कारण उद्योगों में कुशल तकनीशियनों की कमी हो गई है।
- डिग्री-कौशल वियोग: सामाजिक दबाव योग्यताओं की तुलना में डिग्रियों को प्राथमिकता देता है। कई लोग अप्रासंगिक पाठ्यक्रम अपनाते हैं, जिससे अल्प-रोजगार की स्थिति और बिगड़ती है।
- बेरोजगारी वृद्धि एवं अनौपचारिकता: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि के दौरान भी, औपचारिक क्षेत्र में अपर्याप्त नौकरियाँ शिक्षित युवाओं को अनौपचारिक कम वेतन वाले काम करने के लिए मजबूर करती हैं।
- तकनीकी व्यवधान: बड़ी संख्या में नौकरियाँ स्वचालित हो जाएँगी या गायब हो जाएँगी। बिना पुनः कौशल विकास के, लाखों लोगों को बेरोज़गारी का खतरा है।
- उदाहरण: मैकिन्से के अनुसार, वर्ष 2030 तक भारत में 70% नौकरियाँ स्वचालन के जोखिम का सामना करेंगी।
आगे की राह
- पाठ्यक्रम सुधार: उद्योग 4.0/5.0 एवं AI-संचालित अर्थव्यवस्था के अनुरूप पाठ्यक्रम को तेजी से अद्यतन करना।
- कौशल एकीकरण: व्यावसायिक प्रशिक्षण को मुख्यधारा की शिक्षा के साथ मिलाएँ,प्रशिक्षुता एवं उद्योग-अकादमिक सहयोग को बढ़ावा देंना।
- करियर मार्गदर्शन ढाँचा: पारंपरिक क्षेत्रों से परे करियर जागरूकता बढ़ाने के लिए स्कूलों में परामर्श को संस्थागत बनाएँ।
- डिजिटल एवं आजीवन शिक्षा: निरंतर उन्नयन के लिए पुनः कौशल विकास, क्रॉस-स्किलिंग एवं एडटेक प्लेटफ़ॉर्म को बढ़ावा देंना।
- महिलाएँ एवं हाशिए पर पड़े लोगों का समावेश: समावेशी गतिशीलता सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं की भागीदारी बढ़ाएँ एवं टियर 2 तथा 3 नवाचार समूहों में निवेश करना।
भारत एक जनसांख्यिकीय चौराहे पर खड़ा है जहाँ वह या तो अपने युवा वर्ग को एक उत्पादक कार्यबल में बदल सकता है या इसे बेरोजगारों का बोझ बनने का जोखिम उठा सकता है। जैसा कि लैंट प्रिचेट ने पूछा, “सारी शिक्षा कहाँ चली गई?“, इसका उत्तर शिक्षा को रोजगार के साथ, आकांक्षा को अवसर के साथ एवं प्रौद्योगिकी को मानवता के साथ जोड़ने में निहित है।
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