Q. वर्ष 2019 में जम्मू और कश्मीर के राज्य से केंद्र शासित प्रदेश में परिवर्तित होने से भारत की संघीय संरचना और संवैधानिक संतुलन पर प्रश्नचिह्न उत्पन्न हो गए हैं। राज्य पुनर्गठन को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक प्रावधानों पर चर्चा कीजिए और भारत में संघवाद पर जम्मू और कश्मीर की परिवर्तित स्थिति के प्रभावों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • राज्य पुनर्गठन को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक प्रावधान।
  • संघवाद पर जम्मू-कश्मीर की परिवर्तित स्थिति के सकारात्मक प्रभाव।
  • जम्मू-कश्मीर की परिवर्तित स्थिति का संघवाद पर नकारात्मक प्रभाव।
  • आगे की राह लिखिए।

उत्तर

अगस्त 2019 में अनुच्छेद-370 के निरसन ने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को समाप्त कर दिया और उसके राज्य के दर्जे को बदलकर दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया। यद्यपि इस कदम का उद्देश्य एकीकरण और सुरक्षा को मजबूत करना बताया गया, लेकिन इस अभूतपूर्व निर्णय ने संसद की अनुच्छेद-3 के अंतर्गत निहित शक्तियों की सीमा तथा भारत के संघीय संतुलन पर इसके गहरे प्रभावों को लेकर व्यापक बहस को जन्म दिया।

राज्य पुनर्गठन को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-1: भारत एक “राज्यों का संघ” है, जो उसकी अखंडता और एकता सुनिश्चित करता है तथा किसी भी प्रकार के पृथक्करण या अलगाव को प्रतिबंधित करता है। यह भारत की अविभाज्यता का मूल आधार है।
  • अनुच्छेद-2: संसद को यह शक्ति प्राप्त है कि वह नए राज्यों को भारतीय संघ में शामिल कर सकती है अथवा नए राज्यों की स्थापना कर सकती है।
  • अनुच्छेद-3: संसद कानून द्वारा:
    • नए राज्य का गठन कर सकती है, चाहे वह किसी राज्य को विभाजित करके हो, या राज्यों को मिलाकर अथवा किसी राज्य का विलय करके।
    • किसी राज्य के क्षेत्र, सीमाओं या नाम में परिवर्तन कर सकती है।
    • इस प्रक्रिया में राष्ट्रपति को संबंधित राज्य की विधानसभा से उस विधेयक पर विचार करने के लिए संदर्भित करना अनिवार्य है, हालाँकि राष्ट्रपति की सलाह का बाध्यकारी होना आवश्यक नहीं है।
  • अनुच्छेद-4: अनुच्छेद-2 और 3 के अंतर्गत बनाए गए कानून संवैधानिक संशोधन नहीं माने जाते। इससे संसद को राज्यों की सीमाओं और संरचना में परिवर्तन के संबंध में अत्यंत व्यापक अधिकार प्राप्त हो जाते हैं।
  • पुनर्गठन शक्ति की सीमाएँ: यद्यपि संसद के पास राज्यों की सीमाओं को बदलने या क्षेत्रफल को घटाने की शक्ति है, लेकिन किसी राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में परिवर्तित करना संघीय सिद्धांतों को कमजोर करता है, जब तक कि वह कदम अस्थायी न हो (जैसा कि जम्मू-कश्मीर के मामले में हुआ)।
  • मूल संरचना सिद्धांत: संघवाद भारतीय संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है (एस.आर. बोम्मई निर्णय)। अतः राज्य पुनर्गठन की कोई भी प्रक्रिया इस संघीय चरित्र और संविधान की मूल आत्मा का सम्मान अवश्य करे।

संघवाद पर जम्मू-कश्मीर की परिवर्तित स्थिति के सकारात्मक प्रभाव

  • राष्ट्रीय एकता मजबूत हुई: केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिलने से संघ की यह भूमिका और सुदृढ़ हुई कि वह संवेदनशील सीमा क्षेत्र में देश की संप्रभुता तथा अखंडता की रक्षा कर सके। इससे संघीय ढाँचे में केंद्र की एकीकृत करने वाली भूमिका को बल मिला तथा राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया और अधिक मजबूत हुई।
  • सुरक्षा व स्थिरता: सीधे केंद्र के नियंत्रण से आतंकवाद-निरोधी कार्रवाइयों और कानून-व्यवस्था को सँभालने में अधिक प्रभावशीलता आई। यह दर्शाता है कि भारत का संघीय ढाँचा संकट की परिस्थितियों में लचीला और व्यवहारिक सिद्ध हो सकता है।
  • कानूनी एकरूपता: केंद्रीय कानूनों के विस्तार से पहले,  जो असमानता और असंतुलन मौजूद था, उसमें कमी आई। अब जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को भी देश के अन्य राज्यों की तरह समान अधिकार और कानूनी संरक्षण प्राप्त हुआ। इससे भारतीय संघ की एकरूपता और मजबूत हुई।
  • आर्थिक एकीकरण: केंद्र की योजनाओं को लागू करना और निजी निवेश को आकर्षित करना अब अधिक सरल हो गया। इससे संसाधनों के साझा उपयोग और क्षेत्रीय विकास में सहकारी संघवाद  की भावना परिलक्षित होती है।
  • लचीला संघीय ढाँचा: जम्मू-कश्मीर को दिया गया अस्थायी केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा यह भी दर्शाता है कि भारतीय संविधान समय और परिस्थिति के अनुसार लचीलापन दिखाते हुए राष्ट्रीय एकता को बनाए रख सकता है और साथ ही भविष्य में राज्य का दर्जा बहाल करने की संभावना भी खुली रखता है।

आलोचना: जम्मू-कश्मीर की परिवर्तित स्थिति का संघवाद पर नकारात्मक प्रभाव

  • राज्य की स्वायत्तता का क्षरण: किसी राज्य को उसकी सहमति के बिना केंद्रशासित प्रदेश में बदल देना संघीय संतुलन के मूल सिद्धांत को कमजोर करता है। यह कदम राज्यों की स्वतंत्रता और स्वशासन की भावना को आहत करता है।
  • संवैधानिक भावना का उल्लंघन: अनुच्छेद-3 राज्यों की सीमाओं या क्षेत्रों में परिवर्तन की अनुमति देता है, किंतु किसी राज्य का दर्जा छीनकर उसे केंद्रशासित प्रदेश में बदलने का स्पष्ट प्रावधान नहीं करता। आलोचकों का मानना है कि यह संविधान की संघीय संरचना की भावना के विपरीत है।
  • प्रतिनिधि लोकतांत्रिक व्यवस्था का कमजोर होना: राज्य का दर्जा जनता को अपने शासन और निर्णय-प्रक्रिया पर अधिक नियंत्रण देता है। केंद्रशासित प्रदेश बनने से सत्ता का केंद्रीकरण लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास चला गया, जिससे स्थानीय जवाबदेही और लोकतांत्रिक भागीदारी कमजोर पड़ गई।
  • केंद्रीकरण का उदहारण: यह कदम ऐसी परंपरा स्थापित करता है, जहाँ केंद्र सरकार एकतरफा निर्णय लेकर किसी राज्य की शक्तियों को कम कर सकती है। इससे सहकारी संघवाद की भावना पर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है और राज्यों के भरोसे पर आँच आती है।
  • मूल संरचना सिद्धांत के साथ विरोधाभास: संघवाद भारतीय संविधान की मूल संरचना का अभिन्न हिस्सा है। यदि जम्मू-कश्मीर का केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा अनिश्चित काल तक जारी रहता है, तो यह संविधान की मूल दार्शनिक आधारशिला और संघीय चरित्र का उल्लंघन माना जा सकता है।

जम्मू-कश्मीर के संबंध में संघवाद में संतुलन बहाल करने की आगे की राह

  • राज्य का दर्जा समय पर बहाल करना: सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए जम्मू-कश्मीर की राज्य की स्थिति को पुनः स्थापित करना आवश्यक है, ताकि संघीय सिद्धांतों की रक्षा हो सके तथा संविधान की आत्मा का सम्मान बना रहे।
  • नियमित लोकतांत्रिक चुनाव कराना: एक पूर्ण रूप से कार्यशील और सशक्त निर्वाचित विधान सभा सुनिश्चित की जानी चाहिए, जिसे वास्तविक निर्णय लेने की शक्तियाँ प्राप्त हों। इससे जनता का लोकतंत्र पर विश्वास मजबूत होगा।
  • सहकारी संघवाद को मजबूत करना: संवेदनशील क्षेत्रों में केंद्र और राज्य के बीच निरंतर संवाद और परामर्श की संस्कृति विकसित की जानी चाहिए। एकतरफा निर्णय लेने के बजाय परामर्श की भावना का सम्मान करना संघवाद की आत्मा को जीवित रखेगा।
  • सुरक्षा एवं विकास के लिए संतुलित व्यवस्था: राज्य की स्वायत्तता और केंद्र की देख-रेख, दोनों में संतुलन बनाया जाना चाहिए। विशेषकर रक्षा, विदेश नीति और आतंकवाद-निरोध जैसे क्षेत्रों में केंद्र की भूमिका बनी रहे, लेकिन अन्य विषयों में राज्य को पर्याप्त स्वतंत्रता दी जाए।
  • संस्थागत सुधार: भविष्य में किसी भी राज्य की संवैधानिक स्थिति को बदलने से पहले औपचारिक परामर्श और संवाद की व्यवस्था की जानी चाहिए। इससे विवादों और असंतोष की स्थिति से बचा जा सकेगा।
  • समावेशी विकास को बढ़ावा देना: राज्य का दर्जा बहाल करने के साथ-साथ स्थानीय नेतृत्व को सशक्त किया जाना चाहिए, जनता के बीच विश्वास बहाल होना चाहिए और जम्मू-कश्मीर को सहभागी शासन एवं समान संसाधन वितरण की प्रक्रिया के माध्यम से राष्ट्र की मुख्यधारा में और मजबूती से जोड़ा जाना चाहिए।

निष्कर्ष

जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने आग्रह किया है, राज्य का दर्जा बहाल करना सहकारी संघवाद और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है। जम्मू-कश्मीर का प्रकरण राष्ट्रीय एकता और संघीय भावना के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।

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