Q. अफगानिस्तान सहित हिंदू कुश-हिमालयी क्षेत्र विश्व के सबसे भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है। हाल ही में अफगानिस्तान में आए भूकंप के संदर्भ में, इस क्षेत्र में भूकंपों की उच्च आवृत्ति और तीव्रता के कारणों पर चर्चा कीजिए। ऐसी आपदाओं के प्रभाव को कम करने के उपाय सुझाइए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • हिंदू कुश-हिमालयी क्षेत्र में भूकंपों की अधिक आवृत्ति और तीव्रता के कारणों पर चर्चा कीजिए।
  • भूकंप के प्रभाव को कम करने के उपाय।

उत्तर

हिंदूकुश–हिमालय क्षेत्र अत्यधिक भूकंप-प्रवण माना जाता है क्योंकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार, भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट की टक्कर से भ्रंश रेखाओं के आस-पास अपार तनाव उत्पन्न होता है। जब यह संचित तनाव अचानक मुक्त होता है तो बार-बार और तीव्र भूकंप आते हैं। इन भूकंपों का उपकेंद्र प्रायः सतह के समीप (अल्पगर्भी) होता है, जिसके कारण व्यापक स्तर पर विनाश और भारी जन–धन हानि होती है।

हिंदू कुश-हिमालयी क्षेत्र में भूकंपों की अधिक आवृत्ति और तीव्रता के कारण

  • प्लेट टेक्टॉनिक टकराव: भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट से लगातार टकराव होता है, जिससे भ्रंश रेखाओं (fault lines) पर अपार विवर्तनिक तनाव (tectonic stress) उत्पन्न होता है।
  • निरंतर भू-पर्पटी गति: भारतीय प्लेट प्रति वर्ष लगभग 5 सेंटीमीटर उत्तर दिशा में खिसक रही है, जिसके कारण बार-बार भूकंपीय गतिविधियाँ होती रहती है।
  • जटिल दोष प्रणालियाँ: मुख्य केंद्रीय भ्रंश, मुख्य सीमा भ्रंश जैसे कई सक्रिय भ्रंश रेखाओं की उपस्थिति भूकंपीय जोखिम को और अधिक बढ़ा देती है।
  • अल्पगर्भी उपकेंद्र: इस क्षेत्र में कई भूकंप सतह से केवल 20 किलोमीटर या उससे कम गहराई पर उत्पन्न होते हैं, जिससे सतही विनाश और भीषण क्षति कई गुना बढ़ जाती है।
  • हिमालय की भू-वैज्ञानिक युवावस्था: हिमालय भू-वैज्ञानिक दृष्टि से अभी भी युवा और अस्थिर पर्वत शृंखला है, जिसके कारण यह क्षेत्र भूस्खलन, ढलानों के धंसने और कंपन की तीव्रता को बढ़ाने के लिए प्रवृत्त रहता है।
  • भूकंपीय इतिहास: इस क्षेत्र का एक लंबा और गंभीर भूकंपीय इतिहास रहा है—जैसे वर्ष 2023 का हेरात (Herat) भूकंप, 2005 का जम्मू एवं कश्मीर भूकंप, तथा वर्ष 2015 का नेपाल भूकंप—जो यह दर्शाता है कि यह क्षेत्र स्थायी रूप से विवर्तनिक अस्थिरता  से ग्रस्त है।

भूकंप के प्रभाव को कम करने के उपाय

  • भवन निर्माण संहिताओं का सख्त प्रवर्तन: भूकंप-प्रतिरोधी भवन निर्माण मानकों को अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए, जैसा कि जापान और चिली जैसे देशों ने सफलतापूर्वक किया है। इससे इमारतें भूकंपीय झटकों को झेलने में सक्षम होंगी और जनहानि कम होगी।
  • सामुदायिक जागरूकता और तैयारी: स्कूलों, कॉलेजों और स्थानीय समुदायों में नियमित मॉक ड्रिल, शिक्षा अभियान और प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए ताकि आपदा की स्थिति में घबराहट कम हो और लोग सुरक्षित प्रतिक्रिया देना सीख सकें।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ: आधुनिक भूकंपीय निगरानी प्रणाली, सेंसर और त्वरित संचार नेटवर्क में निवेश किया जाए ताकि समय पर चेतावनी तथा निकासी  संभव हो सके।
  • आपदा प्रतिक्रिया क्षमता का सुदृढ़ीकरण: प्रशिक्षित एवं सुसज्जित बचाव दल तैयार किए जाने चाहिए, राहत सामग्री का भंडारण होना चाहिए और चिकित्सीय आपातकालीन अवसंरचना को मजबूत बनाया जाना चाहिए ताकि आपदा के तुरंत बाद सहायता पहुँच सके।
  • क्षेत्रीय सहयोग: हिंदूकुश–हिमालयी क्षेत्र से संबंधित देशों के बीच भूकंपीय डेटा, तकनीकी ज्ञान और सर्वोत्तम प्रथाओं  को साझा किया जाना चाहिए ताकि सामूहिक रूप से भूकंप से निपटने की क्षमता विकसित हो सके।
  • शहरी नियोजन और जोखिम क्षेत्रीकरण: सक्रिय भ्रंश रेखाओं और अस्थिर ढलानों पर निर्माण कार्य से बचा जाना चाहिए तथा उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में प्रत्यास्थ एवं संधारणीय अवसंरचना विकसित की जानी चाहिए।

निष्कर्ष

जोखिमों को कम करने के लिए मजबूत अवसंरचना और वैश्विक सहयोग अनिवार्य है। आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंदाई फ्रेमवर्क (Sendai Framework for Disaster Risk Reduction) तथा भारत की आपदा-प्रतिरोधी अवसंरचना के लिए वैश्विक गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure – CDRI) इस तथ्य को रेखांकित करते हैं कि आपदाओं से बचाव केवल तात्कालिक राहत से नहीं, बल्कि दीर्घकालिक तैयारी से संभव है। इन अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय पहलों में इस बात पर बल दिया गया है कि कठोर भवन संहिता, जोखिम-आधारित नियोजन और आपदा-पूर्व तत्परता को प्राथमिकता दी जाए। यदि ठोस कदम उठाए जाएँ तो यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएँ बार-बार मानवीय त्रासदी में न बदलें और समाज को सुरक्षित एवं प्रत्यास्थ बनाया जा सके।

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