प्रश्न की मुख्य माँग
- इस दुविधा पर चर्चा कीजिये कि किस प्रकार AI शिक्षकों को स्वतंत्र कर सकता है, तथा किस प्रकार उन्हें तकनीकी-प्रबंधक बना सकता है।
- भारत वैश्विक AI केंद्र बनने और शिक्षण एवं अधिगम में मानवतावादी सार को बनाए रखने के बीच संतुलन कैसे बना सकता है?
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उत्तर
वर्तमान में भारत में शिक्षक केवल कक्षाओं का संचालन ही नहीं करते, बल्कि उन्हें संस्थागत अपेक्षाओं और तीव्र गति से बढ़ते कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) तथा शैक्षिक प्रौद्योगिकी (EdTech) के प्रभाव के बीच भी संतुलन बनाना पड़ रहा है। ‘इंडिया AI मिशन’ जैसी पहलें तथा भारत का चैटजीपीटी (ChatGPT) का विश्व का दूसरा सबसे बड़ा बाजार बनना इस प्रवृत्ति को और भी गहरा करते हैं। ऐसे परिदृश्य में शिक्षकों की पारंपरिक भूमिका, जो विश्वास निर्माण, संवाद की संस्कृति और सृजनात्मकता को प्रोत्साहित करने पर आधारित रही है, चुनौती के घेरे में आ सकती है। परिणामस्वरूप, यह जोखिम उत्पन्न हो रहा है कि शिक्षक धीरे-धीरे केवल ‘टेक्नो-मैनेजर’ की भूमिका तक सीमित होकर रह जाएँ, जहाँ उनका कार्य मुख्यतः तकनीकी साधनों के प्रबंधन तक सिमट जाए और शिक्षा का मानवीय एवं संवेदनशील पक्ष पीछे छूट जाए।
AI शिक्षकों को स्वतंत्र कर सकता है, लेकिन उन्हें टेक्नो–मैनेजर बना देने का जोखिम भी है
- कक्षाओं में नियमित कार्यों से मुक्ति बनाम यांत्रिक भूमिका: कृत्रिम बुद्धिमत्ता शिक्षकों को प्रशासनिक बोझ और दोहराए जाने वाले कार्यों से राहत दे सकती है, जिससे वे शिक्षा के रचनात्मक पक्ष पर ध्यान केंद्रित कर सकें। लेकिन इसका अत्यधिक उपयोग शिक्षकों की भूमिका को केवल उपकरण संचालक तक सीमित कर सकता है, जिससे वास्तविक शिक्षण–प्रक्रिया का महत्व कम हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: चैटजीपीटी (ChatGPT) जैसे टूल्स नोट्स तैयार करने और कार्यभार घटाने में सहायक हैं। किंतु यदि स्मार्टबोर्ड और AI उपकरणों का अत्यधिक प्रयोग हो, तो शिक्षण की वास्तविक अंतःक्रियात्मक प्रक्रिया दब सकती है।
- व्यक्तिगत शिक्षण पद्धति बनाम मानवीय भूमिका का हनन: AI विद्यार्थियों की विविध आवश्यकताओं के अनुरूप अनुकूलनशील शिक्षा और व्यक्तिगत पाठ योजनाएँ (customised lesson plans) तैयार करने में सहायता करता है। किंतु, यह शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच विकसित होने वाले भरोसे, भावनात्मक संबंध और संवाद की संस्कृति को कमजोर कर सकता है।
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- उदाहरण के लिए: सेंट्रल स्क्वेयर फाउंडेशन के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 70% शिक्षक तकनीक का प्रभावी उपयोग करते हैं। लेकिन तकनीक पर अत्यधिक निर्भरता कक्षा में शिक्षक–विद्यार्थी संबंधों को कमजोर कर सकती है।
- समान अवसरों का लोकतंत्रीकरण बनाम एकरूपता का आरोपण: AI, संसाधनों की कमी वाले विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और समान अवसर प्रदान करने का साधन बन सकता है। हालांकि, यदि इसे प्रशासनिक दबाव में एकसमान रूप से लागू किया गया, तो यह नवाचार की बजाय एकरूपता थोप सकता है और स्थानीय आवश्यकताओं की उपेक्षा कर सकता है।
- भविष्य के कौशल की तैयारी बनाम अधिगम में नैतिक दुविधाएं: AI शिक्षकों को विद्यार्थियों में डिजिटल अर्थव्यवस्था की आवश्यक दक्षताएँ विकसित करने में मदद करता है। लेकिन इस पर अत्यधिक निर्भरता नैतिक दुविधाएँ भी उत्पन्न करती है—जैसे नकल (plagiarism), रचनात्मकता में कमी और तकनीक पर अति-निर्भरता।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रपति के वर्ष 2025 के भाषण में भारत के 2047 तक AI महाशक्ति बनने के लक्ष्य पर बल दिया गया था। परंतु, जब शिक्षक स्वयं नोट्स बनाने के लिए AI पर निर्भर होते हैं और साथ ही विद्यार्थियों में नकल रोकने का दायित्व निभाते हैं, तो यह विरोधाभास उत्पन्न होता है।
- नवाचार की संभावनायें बनाम तकनीकि दक्षता पर अत्यधिक बल: AI के सहारे शिक्षक सीखने की प्रक्रिया को अधिक रचनात्मक और नवाचारी बना सकते हैं। किंतु यदि नीतियाँ केवल तकनीकी दक्षता को गुणवत्ता का मानक मान लें, तो सहानुभूति, आलोचनात्मक चिंतन और मानवीय मूल्यों को हाशिये पर डालने का खतरा है।
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- उदाहरण के लिए: टैगोर का दृष्टिकोण था कि शिक्षक नवाचार के मार्गदर्शक हों। यह दृष्टिकोण तभी संभव है जब AI का सोच-समझकर उपयोग किया जाए। अन्यथा नीतियाँ तकनीकी दक्षता को ही प्राथमिकता देकर शिक्षण की मानवीय संवेदनशीलता की अनदेखी कर सकती हैं
भारत किस प्रकार वैश्विक AI हब बनने की दिशा में आगे बढ़ते हुए भी शिक्षण और अधिगम की मानवीय संवेदनशीलता को संरक्षित रख सकता है
- शिक्षक की स्मार्टनेस को पुनः परिभाषित करना: गुणवत्ता आधारित शिक्षण का मूल्यांकन केवल तकनीक-प्रयोग की दक्षता तक सीमित न होकर रचनात्मकता, सहानुभूति और आलोचनात्मक शिक्षाशास्त्र जैसे मानकों पर आधारित होना चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि शिक्षक तकनीकी कौशल के साथ-साथ भावनात्मक और बौद्धिक मार्गदर्शक बने रहें।
- शिक्षक स्वायत्तता का संरक्षण: शिक्षकों को यह स्वतंत्रता दी जानी चाहिए कि वे AI को अपने नवाचारी तरीकों से अपनाएँ, न कि उसे केवल एक अनिवार्य प्रशासनिक उपकरण के रूप में थोपा जाए। इससे वे अपनी शिक्षण शैली और विद्यार्थियों की आवश्यकताओं के अनुरूप AI का संतुलित प्रयोग कर सकेंगे।
- नैतिक दिशा-निर्देशों को शामिल करना: ऐसे संस्थागत ढाँचे विकसित किए जाने चाहिए, जो कक्षाओं में AI के न्यायपूर्ण और जिम्मेदाराना उपयोग को सुनिश्चित करें। इससे नकल, आलोचनात्मक चिंतन में पतन और तकनीक पर अति-निर्भरता जैसी समस्याओं से बचा जा सकेगा।
- संवादात्मक शिक्षण को सुदृढ़ करना: ऐसी कक्षाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए जहाँ AI शिक्षण में सहयोगी भूमिका निभाए, लेकिन शिक्षक–विद्यार्थी के बीच विश्वास और संवाद की परंपरा को प्रतिस्थापित न करे।
- उदाहरण के लिए: वास्तविक रूप से रूपांतरणकारी शिक्षा केवल तकनीक पर आधारित तरीकों से नहीं आती, बल्कि तब विकसित होती है जब शिक्षक और विद्यार्थी के बीच विश्वास तथा आलोचनात्मक चर्चा का वातावरण निर्मित होता है।
- संतुलित नीतिगत प्रयास: भारत जब एक वैश्विक AI केंद्र बनने का प्रयास कर रहा है, तब यह आवश्यक है कि शिक्षा नीतियाँ केवल तकनीकी उत्कृष्टता को बढ़ावा न दें, बल्कि शिक्षण के मानवीय और रूपांतरणकारी आदर्शों को भी समान रूप से सुरक्षित रखें। यही संतुलन भारतीय शिक्षा को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी और साथ ही मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण बनाएगा।
निष्कर्ष
प्रामाणिक शिक्षण पद्धति संवाद, विश्वास और मानवीय संबंधों पर आधारित होती है। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शिक्षकों को सह-अध्येता के रूप में देखा, जो विद्यार्थियों में स्वाधीनता और आत्मनिर्भरता का विकास करते हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, शिक्षा को समृद्ध बना सकती है, किंतु उस पर अत्यधिक निर्भरता यथास्थिति (status quo) को और सुदृढ़ कर सकती है। इसलिए यह और भी आवश्यक हो जाता है कि शिक्षण की मानवीय मूल भावना और उसका मानवीय सार सुरक्षित रखा जाए।
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