प्रश्न की मुख्य माँग
- संसाधन सुरक्षा हेतु भारत की रणनीति में महत्त्वपूर्ण खनिजों के पुनर्चक्रण का महत्त्व।
- देश की क्रिटिकल मिनरल माँग को पूरा करने के लिए केवल पुनर्चक्रण पर निर्भर रहने की सीमाएँ।
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उत्तर
प्रस्तावना
भारत में लीथियम, कोबाल्ट, निकल और रेयर अर्थ जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों की माँग लगातार बढ़ रही है, जो स्वच्छ ऊर्जा, रक्षा और विनिर्माण क्षेत्रों के लिए आवश्यक हैं। घरेलू खनन धीमा और महंगा होने के कारण, ई-वेस्ट, बैटरी स्क्रैप और वाहनों से पुनर्चक्रण अल्पकालिक सुरक्षा का साधन प्रदान करता है। ₹1,500 करोड़ की नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM) योजना संसाधन सुरक्षा को सशक्त करती है और आयात निर्भरता को कम करती है।
मुख्य भाग
भारत की संसाधन सुरक्षा रणनीति में महत्त्वपूर्ण खनिजों के पुनर्चक्रण का महत्त्व
- तात्कालिक आपूर्ति में वृद्धि: पुनर्चक्रण, खनन और अन्वेषण की लंबी अवधि की तुलना में क्रिटिकल मिनरल तक शीघ्र पहुँच का साधन है।
- आयात निर्भरता में कमी: भारत 30 पहचाने गए महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए आयात पर निर्भर है; पुनर्चक्रण से बाह्य अनिश्चितता की संवेदनशीलता घटती है।
- उदाहरण: भारत लीथियम के लिए पूरी तरह आयात पर निर्भर है, जिसमें से 70–80% चीन से आता है। इसी प्रकार, प्राकृतिक ग्रेफाइट का 60% चीन से आता है, जो बैटरियों और EV उद्योग के लिए आवश्यक है।
- स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में सहयोग: सौर पैनल, पवन टरबाइन और बैटरियों के लिए क्रिटिकल मिनरल आवश्यक हैं। पुनर्चक्रण से आयात पर निर्भरता घटती है।
- उदाहरण: बैटरी स्क्रैप से निकल और कोबाल्ट की प्राप्ति भारत के राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन को मजबूती देती है।
- रक्षा निर्माण में रणनीतिक स्वायत्तता: रक्षा प्रौद्योगिकी में रेयर अर्थ और क्रिटिकल मिनरल की आवश्यकता होती है। पुनर्चक्रण अस्थिर वैश्विक बाजारों से आंशिक स्वतंत्रता देता है।
- आर्थिक दक्षता और रोजगार सृजन: पुनर्चक्रण से घरेलू चक्रीय अर्थव्यवस्था का निर्माण होता है, जिससे आयात पर विदेशी मुद्रा का बहिर्वाह कम होता है।
- उदाहरण: यह योजना लगभग ₹8,000 करोड़ का निवेश आकर्षित करेगी और लगभग 70,000 प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार उत्पन्न करेगी।
- खनन का पूरक मार्ग: पुनर्चक्रण, खनन शुरू होने तक आपूर्ति अंतराल को भरने का साधन है।
भारत की माँग पूरी करने में केवल पुनर्चक्रण पर निर्भरता की सीमाएँ
- पर्याप्त पैमाने का अभाव: औद्योगिक विस्तार और स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों के अनुरूप केवल पुनर्चक्रण पर्याप्त नहीं है।
- उदाहरण: वार्षिक ~40 किलो टन पुनर्चक्रण घरेलू माँग की तुलना में अपर्याप्त है।
- संग्रहण प्रणाली की चुनौतियाँ: भारत में ई-वेस्ट और बैटरी संग्रहण हेतु कुशल अवसंरचना का अभाव है।
- शुद्धता और गुणवत्ता की समस्या: पुनर्चक्रित खनिज उन्नत प्रौद्योगिकियों की आवश्यक मानकों को पूरा नहीं कर पाते।
- उदाहरण: बैटरी-ग्रेड लीथियम में अत्यधिक शुद्धता चाहिए, जिसे पुनर्चक्रण संयंत्र अक्सर हासिल नहीं कर पाते।
- आर्थिक व्यवहार्यता की समस्या: उचित प्रोत्साहन के बिना पुनर्चक्रण महँगा साबित होता है और आयात अपेक्षाकृत सस्ता प्रतीत होता है।
- उदाहरण: प्लेटिनम समूह धातुओं की पुनर्प्राप्ति हेतु कैटेलिटिक कन्वर्टर का प्रसंस्करण महँगी तकनीक की माँग करता है।
- खनन का विकल्प नहीं: पुनर्चक्रण अस्थायी सहारा है, जबकि दीर्घकालिक आवश्यकताओं हेतु खनन अपरिहार्य है।
- उदाहरण: पुनर्चक्रण पहलों के बावजूद भारत लीथियम आपूर्ति हेतु ऑस्ट्रेलिया के साथ समझौते कर रहा है।
निष्कर्ष
क्रिटिकल मिनरल के पुनर्चक्रण से भारत को अल्पकालिक सुरक्षा मिलती है, किंतु यह बढ़ती माँग को पूरा नहीं कर सकता। दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता और रणनीतिक लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि भारत घरेलू खनन को मजबूत करे, पुनर्चक्रण क्षमता बढ़ाए और अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति साझेदारी बनाए।
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