प्रश्न की मुख्य माँग
- उत्पादकता-आधारित विकास, रोजगार और समानता का वाहक है।
- उत्पादकता-आधारित विकास, बेरोजगारी-आधारित विकास और असमानता का कारण बनता है।
- विकास-बेरोजगारी-असमानता के विरोधाभास को हल करने की आगे की राह।
- नीतियाँ, जो उत्पादकता को समावेशी और स्थायी रोजगार के साथ जोड़ती हैं।
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उत्तर
प्रस्तावना
भारत की अर्थव्यवस्था वर्ष 2024-25 में 6.5% की दर से बढ़ी, किंतु चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं क्योंकि 45% श्रमिक कृषि में और लगभग 90% असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं। श्रम बल भागीदारी लगभग 50% होने तथा उत्पादकता वृद्धि कमजोर रहने से तीव्र जीडीपी वृद्धि रोजगारविहीन और असमान हो सकती है, जिससे सतत् एवं समावेशी विकास पर प्रश्नचिह्न उत्पन्न होते हैं।
मुख्य भाग
रोजगार और समानता का चालक: उत्पादकता-आधारित वृद्धि
- प्रति श्रमिक उत्पादन वृद्धि: अधिक उत्पादकता से श्रमिक प्रति-इकाई उत्पादन बढ़ता है, जिससे मजदूरी और समग्र आर्थिक दक्षता में सुधार होता है।
- उदाहरण: कृषि में मशीनीकरण से प्रति एकड़ उत्पादन बढ़ा और किसानों की आय में वृद्धि हुई।
- क्षेत्रीय विस्तार: प्रमुख क्षेत्रों में उत्पादकता सुधार नए उद्योगों और सहायक रोजगार को प्रोत्साहित करता है।
- उदाहरण: भारत में IT और दवा उद्योगों की वृद्धि से उच्च-कुशल रोजगार उत्पन्न हुए।
- माँग-आधारित वृद्धि: उत्पादकता वृद्धि से आय में इजाफा होता है, जो व्यापक उपभोग माँग उत्पन्न कर नए रोजगार अवसर निर्मित करती है।
- श्रम भागीदारी में वृद्धि: कौशल उन्नयन से उत्पादकता बढ़ाकर अधिक श्रमिकों को उच्च-मूल्य क्षेत्रों में समाहित किया जा सकता है।
उत्पादकता-आधारित वृद्धि से रोजगारविहीनता और असमानता की चुनौती
- श्रम विस्थापन: पूँजी-प्रधान तकनीक कम-कुशल श्रमिकों की जगह ले लेती है, जिससे रोजगार घटता है।
- उदाहरण: स्वचालित वस्त्र कारखाने अधिक उत्पादन करते हैं, लेकिन कम श्रमिकों को नियुक्त करते हैं।
- आय का संकेंद्रण: उत्पादकता लाभ केवल उद्यमियों और कुशल वर्ग तक सीमित रह जाते हैं, जिससे असमानता बढ़ती है।
- माँग का क्षरण: बेरोजगारी वृद्धि से अल्प मजदूरी प्रभावी माँग को कम करती है, जिससे दीर्घकालिक विकास में कमी आती है।
- अल्पकालिक अस्थिरता: श्रम-बचत उत्पादकता से उत्पादन में कुछ समय के लिए वृद्धि होती है, लेकिन इसके बाद माँग में गिरावट आ जाती है।
- उदाहरण: श्रम प्रतिस्थापन, दीर्घकालिक स्थिरता को हानि पहुँचाता है।
रोजगार-विहीनता-असमानता के विरोधाभास का समाधान: आगे की राह
- रोजगार-आधारित वृद्धि: केवल उत्पादन नहीं, बल्कि रोजगार में वृद्धि से समग्र उत्पादन अधिक स्थिर तथा सतत् होता है।
- समावेशी क्षेत्रीय वृद्धि: ऐसे क्षेत्रों पर ध्यान देना, जो विभिन्न कौशल स्तरों पर रोजगार सृजित करते हैं—जैसे विनिर्माण, कृषि-प्रसंस्करण, और सेवा क्षेत्र।
- संतुलित प्रौद्योगिकी अपनाना: विशुद्ध रूप से पूँजी-प्रधान विकास के स्थान पर श्रम-अनुकूल मशीनीकरण को प्रोत्साहित करना।
- उदाहरण: श्रम प्रतिस्थापन वाला मशीनीकरण माँग, वृद्धि के बिना सतत सिद्ध नहीं होता।
- सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करना: स्वचालन या उत्पादकता परिवर्तन से विस्थापित श्रमिकों हेतु सुरक्षा जाल, वेतन सहायता और पुनः प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करना।
नीतिगत कदम: उत्पादकता को समावेशी और सतत् रोजगार से जोड़ना
- वेतन-संबद्ध उत्पादकता नीति: उत्पादकता वृद्धि का लाभ श्रमिकों तक वेतन वृद्धि के माध्यम से पहुँचना चाहिए।
- उदाहरण: रोजगार और वेतन वृद्धि से दीर्घकालिक माँग स्थिरता सुनिश्चित।
- कौशल विकास कार्यक्रम: PMKVY जैसी योजनाओं को सुदृढ़ कर श्रमिकों को उभरते उत्पादकता-आधारित क्षेत्रों के अनुरूप कौशल प्रदान करना।
- श्रम-प्रधान नवाचार को प्रोत्साहन: ऐसे उत्पादकता-उन्मुख नवाचारों हेतु कर लाभ/सब्सिडी देना, जो रोजगार को बनाए रखे।
- एमएसएमई को बढ़ावा: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को सहयोग देना ताकि वे मध्यम स्तर पर उत्पादकता सुधार अपनाएँ और रोजगार न घटें।
- सामाजिक समानता का एकीकरण: यह सुनिश्चित करना कि उत्पादकता लाभ सभी सामाजिक-आर्थिक वर्गों तक न्यायसंगत वेतन और अवसरों के रूप में पहुँचे।
निष्कर्ष
भारत का विकास केवल पूँजी-प्रधान उत्पादकता पर आधारित नहीं हो सकता क्योंकि इससे रोजगारविहीनता और असमानता का खतरा है। रोजगार वृद्धि से माँग स्थिर रहती है और उत्पादन सतत् बनता है। अतः आवश्यक है कि उत्पादकता को वेतन वृद्धि, कौशल विकास और समानता-आधारित नीतियों से जोड़ा जाए ताकि तीव्र GDP वृद्धि को समावेशी तथा सतत् विकास में रूपांतरित किया जा सके।
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