Q. स्वाद में स्वाभाविक लाभ होने के बावजूद, भारत का चाय उद्योग वैश्विक बाजारों में श्रीलंका और नेपाल से पीछे है। इस अंतर के पीछे संरचनात्मक और नीतिगत कारकों का विश्लेषण कीजिए। साथ ही भारत के ब्रांड मूल्य को बढ़ाने के उपाय सुझाइए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • वैश्विक बाजारों में भारत के चाय क्षेत्र के श्रीलंका और नेपाल से पिछड़ने के संरचनात्मक कारक।
  • वैश्विक बाजारों में भारत के चाय क्षेत्र के श्रीलंका और नेपाल से पिछड़ने के नीतिगत कारक।
  • चाय क्षेत्र में भारत के ब्रांड मूल्य को बढ़ाने के उपाय।

उत्तर

भूमिका

भारत, जो असम और दार्जिलिंग जैसी विश्व प्रसिद्ध चायों का देश है, प्राकृतिक स्वाद के मामले में अद्वितीय लाभ रखता है। फिर भी, कमजोर ब्रांडिंग और विभिन्न अन्य कारणों से इसकी स्थिति संकट में है। इसके विपरीत, श्रीलंका की सीलोन टी और नेपाल की चाय मजबूत ब्रांडिंग और वैश्विक आकर्षण के सहारे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारत की हिस्सेदारी लगातार कम कर रही हैं।

मुख्य भाग

संरचनात्मक कारण: वैश्विक बाजारों में भारत की चाय का श्रीलंका और नेपाल से पिछड़ना

  • कमजोर ब्रांडिंग और वैश्विक छवि: श्रीलंका के सीलोन टी जैसी मजबूत पहचान भारत के पास नहीं है।
  • घरेलू बाजार पर निर्भरता: लंबे समय तक घरेलू ऊँचे दामों पर निर्भरता के कारण अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा की प्रेरणा कम रही।
    • उदाहरण: आयात प्रतिबंधों से भारतीय कंपनियाँ घरेलू स्तर पर लाभ कमाती रहीं, जबकि श्रीलंका ने निर्यात पर ध्यान केंद्रित किया।
  • विखंडित उत्पादन प्रणाली: असंख्य छोटे उत्पादकों और बागानों के कारण गुणवत्ता में असंगति बनी रहती है।
  • पैकेजिंग और मूल्य वर्द्धन में कमी: भारत ब्रांडेड, बाजार के लिए तैयार उत्पादों की तुलना में थोक चाय का अधिक निर्यात करता है।

नीतिगत कारण: भारत की चाय का श्रीलंका और नेपाल से पिछड़ना

  • संरक्षणवादी नीतियाँ: दशकों तक आयात प्रतिबंधों ने भारतीय उत्पादकों को वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा से बचाए रखा, जिससे नवाचार हतोत्साहित हुआ।
  • वैश्विक विपणन में कमी: सरकारी योजनाएँ श्रीलंका के समन्वित निर्यात बोर्ड जैसी मजबूत विपणन रणनीति विकसित नहीं कर पाईं।
  • निर्यात विविधीकरण की कमी: भारत लंबे समय तक रूस और पश्चिम एशिया जैसे पारंपरिक खरीदारों पर निर्भर रहा, जिससे वैश्विक पहुँच सीमित रही।
  • GI प्रवर्तन की कमजोरी: यद्यपि दार्जिलिंग जैसी चायों को भौगोलिक संकेत (GI) प्राप्त है, लेकिन वैश्विक स्तर पर प्रवर्तन सीमित है।

भारत की चाय के ब्रांड मूल्य को बढ़ाने के उपाय

  • एकीकृत वैश्विक ब्रांड निर्माण: राष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग पहल विकसित कर प्रामाणिकता और गुणवत्ता को प्रदर्शित करना।
  • जलवायु-सहिष्णु खेती: अनुसंधान और अनुकूलन उपायों में निवेश कर स्वाद और उपज को सुरक्षित रखना।
    • उदाहरण: असम में ऊँचाई वाले क्षेत्रों में खेती स्थानांतरित कर जलवायु दबाव कम किया जा सकता है।
  • पैकेज्ड और मूल्य वर्द्धित निर्यात को बढ़ावा: थोक चाय से हटकर ब्रांडेड, उपभोक्ता-तैयार उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करना।
  • जीआई सुरक्षा और प्रामाणिकता को मजबूत करना: नकली चाय के खिलाफ वैश्विक कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • उदाहरण: विदेशों में केवल असली दार्जिलिंग चाय पर ही GI टैग का प्रयोग सख्ती से लागू करना।
  • वैश्विक विपणन नेटवर्क का विस्तार: व्यापार मेलों, ई-कॉमर्स और वैश्विक साझेदारियों के माध्यम से दृश्यता बढ़ाना।

निष्कर्ष

भारत के चाय क्षेत्र में स्वास्थ्य और स्थिरता को बढ़ावा देकर, असम और दार्जिलिंग में चाय पर्यटन को विस्तार देकर, डिजिटल विपणन का लाभ उठाकर तथा सार्वजनिक-निजी साझेदारियों को प्रोत्साहित कर और सशक्त बनाया जा सकता है। इन उपायों से निर्यात और वैश्विक आकर्षण दोनों को बढ़ावा मिलेगा।

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