प्रश्न की मुख्य माँग
- UPSC की विश्वसनीयता और दक्षता को खतरा उत्पन्न करने वाली चुनौतियाँ।
- UPSC को एक विश्वसनीय और प्रभावी संस्थान बनाए रखने के उपाय।
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उत्तर
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), जिसकी स्थापना वर्ष 1926 में हुई और जिसे संविधान के अनुच्छेद-315–323 के अंतर्गत संवैधानिक दर्जा प्राप्त है, भारत की योग्यता-आधारित सिविल सेवा भर्ती प्रणाली का आधार रहा है। अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश करते समय इसकी विश्वसनीयता और दक्षता गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही हैं, जिससे “सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर” (अनुच्छेद-16) का संवैधानिक सिद्धांत खतरे में पड़ सकता है।
UPSC की विश्वसनीयता और दक्षता को प्रभावित करने वाली चुनौतियाँ
A. विश्वसनीयता संबंधी चुनौतियाँ
- नियुक्तियों में निष्पक्षता पर खतरा: यदि UPSC की नियुक्ति अनुशंसाओं में राजनीतिक हस्तक्षेप की आशंका होती है, तो इसकी स्वतंत्रता संदिग्ध हो जाती है।
- उदाहरण: भारत संघ बनाम आर. सुब्रमण्यम (वर्ष 1975) में सर्वोच्च न्यायालय ने UPSC की स्वायत्तता को मनमाने कार्यपालिका हस्तक्षेप से बचाने की पुष्टि की (अनुच्छेद-315 व 320)।
- संस्थागत कार्यप्रणाली में पारदर्शिता की कमी: साक्षात्कार मूल्यांकन और विवेकाधीन चयन में स्पष्टता का अभाव संदेह उत्पन्न करता है।
- उदाहरण: दिशा पांचाल बनाम भारत संघ (वर्ष 2018) में याचिकाकर्ताओं ने इंटरव्यू मूल्यांकन मानकों के खुलासे की माँग की, यह अनुच्छेद-14 और 16 में निहित निष्पक्षता व समानता को रेखांकित करता है।
- क्षेत्रीय और सामुदायिक पहुँच की असमानताएँ: शहरी, अंग्रेजी माध्यम अभ्यर्थियों को बढ़त, जबकि ग्रामीण और भारतीय भाषाओं के उम्मीदवारों का प्रतिनिधित्व कम।
- उदाहरण: तनु प्रिया बनाम भारत संघ (वर्ष 2019) में सर्वोच्च न्यायालय ने दिव्यांग अभ्यर्थियों के अधिकारों की रक्षा पर बल दिया (अनुच्छेद-16)।
B. दक्षता संबंधी चुनौतियाँ
- लंबी परीक्षा एवं चयन प्रक्रिया: विलंबित भर्ती से शासकीय पद रिक्त रहते हैं, जिससे प्रशासन प्रभावित होता है। अनुच्छेद-320(3) में परीक्षाओं का समय पर आयोजन अपेक्षित है।
- उभरती शासकीय आवश्यकताओं से असंगति: UPSC का पाठ्यक्रम व मूल्यांकन नए क्षेत्रों जैसे- AI, डेटा गवर्नेंस, जलवायु नीति से पीछे है।
- उदाहरण: UK सिविल सेवा परीक्षा में डिजिटल गवर्नेंस शामिल; प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ (वर्ष 2006) में सर्वोच्च न्यायालय ने आधुनिक व कुशल संस्थानों पर बल दिया।
- संस्थागत भार और प्रशासनिक बाधाएँ: अभ्यर्थियों की अत्यधिक संख्या और सीमित संसाधन UPSC की क्षमता पर दबाव डालते हैं।
- उदाहरण: वर्ष 2022 में 11.3 लाख अभ्यर्थी ~1000 पदों के लिए; मूल्यांकन में विलंब से नियुक्तियाँ बाधित (अनुच्छेद-320(3))।
UPSC को विश्वसनीय एवं प्रभावी बनाए रखने हेतु उपाय
- संस्थागत स्वायत्तता सुदृढ़ करना: नियुक्तियों व नीतिगत सलाह में कार्यपालिका हस्तक्षेप से संरक्षण।
- उदाहरण: पंजाब राज्य बनाम सलिल सभलोक (वर्ष 2013) में सर्वोच्च न्यायालय ने UPSC की स्वतंत्रता की पुष्टि की।
- पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना: इंटरव्यू मानक, मूल्यांकन दिशा-निर्देश व परीक्षा उपरांत रिपोर्ट प्रकाशित करना।
- उदाहरण: SSC व JEE उत्तरकुंजी तुरंत जारी करते हैं, जिससे विवाद कम होते हैं (अनुच्छेद-14 व 16)।
- प्रौद्योगिकी आधारित सुरक्षा उपाय: AI-आधारित पेपर एन्क्रिप्शन, सुरक्षित ट्रांसमिशन, डिजिटल मूल्यांकन।
- उदाहरण: CAT परीक्षा और AI-सुरक्षित प्रश्नपत्र लीक रोकने में सहायक; सर्वोच्च न्यायालय ने निष्पक्षता पर बल दिया।
- आवधिक संस्थागत समीक्षा: विशेषज्ञ समितियों द्वारा UPSC की प्रासंगिकता व निष्पक्षता की समीक्षा।
- उदाहरण: कोठारी समिति (वर्ष 1976) और इंद्रा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सतत् समीक्षा पर बल दिया।
निष्कर्ष
एक संवैधानिक संस्था के रूप में UPSC की विश्वसनीयता और दक्षता केवल भर्ती तक सीमित नहीं है, बल्कि शासन की वैधता का आधार भी है। अनुच्छेद-315–323, 14 और 16 के अनुरूप स्वायत्तता, पारदर्शिता, समावेशिता और आधुनिकीकरण को सुदृढ़ बनाना आवश्यक है ताकि शताब्दी वर्ष और उसके बाद भी UPSC एक विश्वसनीय, निष्पक्ष और प्रभावी संस्था बनी रहे।
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