Q. संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख आतंकवाद-रोधी समितियों में पाकिस्तान का उत्थान आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक ढाँचे में विश्वसनीयता की कमियों को उजागर करता है। सुझाव दीजिये कि भारत को अपनी सुरक्षा और राजनयिक हितों की रक्षा के लिए कौन से सुरक्षात्मक उपाय अपनाने चाहिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • वैश्विक आतंकवाद-रोधी ढाँचे में विश्वसनीयता की कमी।
  • भारत को अपनी सुरक्षा और राजनयिक हितों की रक्षा के लिए अपनाए जाने वाले प्रति उपाय।

उत्तर

हाल ही में पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख आतंकवाद-निरोधी समितियों में शामिल किया जाना वैश्विक आतंकवाद-निरोध शासन की विडंबना को उजागर करता है। ऐसे राज्य, जिनके आतंकी नेटवर्क से प्रमाणित संबंध हैं, जब अंतरराष्ट्रीय नीति निर्धारण का हिस्सा बनते हैं, तो यह न केवल संयुक्त राष्ट्र प्रणाली की विश्वसनीयता को कमजोर करता है, बल्कि भारत के सीमा पार आतंकवाद से निपटने के प्रयासों को भी जटिल बनाता है। इससे मजबूत राष्ट्रीय और बहुपक्षीय रणनीतियों की आवश्यकता और अधिक स्पष्ट हो जाती है।

वैश्विक आतंकवाद-निरोध ढाँचे में विश्वसनीयता की खामियाँ

  • आतंकी संबंध वाले राज्यों की नियुक्ति: पाकिस्तान जैसे देशों को आतंकवाद-निरोध समितियों में स्थान देना समितियों की वैधता को कमजोर करता है।
    • उदाहरण: UN रिपोर्ट और FATF ग्रे-लिस्टिंग  ने पाकिस्तान को जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों का समर्थन करने वाला बताया है।
  • प्रतिबंधों का असंगत प्रवर्तन: वैश्विक निकाय दंडात्मक उपायों को समान रूप से लागू करने में विफल रहते हैं, जिससे निवारण क्षमता घटती है।
  • राजनीतिक प्रभाव का वर्चस्व: समिति नियुक्तियों में भू-राजनीति अक्सर विश्वसनीयता पर हावी रहती है।
    • उदाहरण: UN निकायों में चीन के समर्थन से पाकिस्तान ने FATF ग्रे-लिस्ट में होने के बावजूद महत्त्वपूर्ण स्थान बनाए रखे।
  • जवाबदेही तंत्र की कमी: UN समितियों में मजबूत फॉलो-अप तंत्र नहीं है।
    • उदाहरण: UNSC प्रस्ताव 1267 और 1373 के बावजूद पाकिस्तान कश्मीर में सीमापार आतंकवाद जारी रखता है।
  • वैश्विक सहयोग का विखंडन: महाशक्तियों के बीच असहमति सामूहिक कार्रवाई को बाधित करती है।
    • उदाहरण: अमेरिका–चीन मतभेदों ने पाकिस्तान-आधारित आतंकी संगठनों पर वैश्विक प्रतिबंधों को कमजोर किया।

भारत द्वारा अपनाए जाने योग्य प्रतिरोधक कदम

  • कूटनीतिक वकालत: UN, FATF और G20 में लॉबिंग बढ़ाना ताकि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को उजागर किया जा सके।
    • उदाहरण: भारत ने पाकिस्तान को FATF ग्रे-लिस्ट (वर्ष 2018–2022) में बनाए रखने में प्रमुख भूमिका निभाई।
  • UNSC एवं UN सहयोग सुदृढ़ करना: समितियों में जवाबदेही और योग्यता-आधारित सदस्यता सुनिश्चित करने हेतु सुधारों की पैरवी।
    • उदाहरण: भारत का स्थायी UNSC सीट अभियान जिम्मेदार वैश्विक सहभागिता पर जोर देता है।
  • खुफिया साझाकरण और बहुपक्षीय मंचों का उपयोग: साझेदार देशों के साथ सटीक खुफ़िया जानकारी साझा कर आतंक वित्तपोषण रोकना।
    • उदाहरण: भारत के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका व UAE के साथ मिलकर जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े खातों को फ्रीज कराया।
  • लक्षित आतंक-रोधी अभियान और सीमा सुरक्षा: सीमा पर निगरानी और आतंकी खतरों से निपटने की तैयारी बढ़ाना।
    • उदाहरण: सर्जिकल स्ट्राइक (वर्ष 2016) और सीमा-पार खुफ़िया अभियानों से खतरों को कम किया गया।
  • घरेलू कानूनी व वित्तीय ढाँचा सुदृढ़ करना: धनशोधन विरोधी कानून, आतंक वित्तपोषण कानून और UAPA का कठोर प्रवर्तन।
    • उदाहरण: NGO और हवाला नेटवर्क के जरिए आतंक वित्तपोषण से संबंधित खातों को जब्त किया गया।
  • रणनीतिक गठबंधन: समान विचारधारा वाले देशों के साथ सुरक्षा सहयोग, खुफ़िया साझाकरण, संयुक्त अभ्यास और प्रौद्योगिकी सहयोग।
    • उदाहरण: भारत–अमेरिका, भारत–इजरायल और भारत–फ्राँस सहयोग।

निष्कर्ष

संयुक्त राष्ट्र की आतंकवाद-निरोध समितियों में पाकिस्तान की भागीदारी, वैश्विक आतंकवाद-निरोध प्रयासों की विश्वसनीयता संकट को उजागर करती है। भारत को कूटनीतिक दबाव, खुफिया साझाकरण, घरेलू कानूनी उपायों और रणनीतिक गठबंधनों के बहुआयामी दृष्टिकोण को अपनाना होगा, ताकि अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद-निरोध मानदंडों की अखंडता को बनाए रख सके।

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