Q. डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि धर्म में भक्ति मोक्ष का मार्ग हो सकती है, लेकिन राजनीति में यह 'पतन और अंततः तानाशाही का निश्चित मार्ग' है। इस कथन के आलोक में, भारतीय राजनीति में व्यक्ति-पूजा (Personality cults) के उदय और लोकतांत्रिक जवाबदेही एवं संवैधानिक नैतिकता पर उनके प्रभावों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारतीय राजनीति में व्यक्ति-पूजा (Personality cults) का उदय।
  • लोकतांत्रिक जवाबदेही और संवैधानिक नैतिकता पर प्रभाव।

उत्तर

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि राजनीति में अत्यधिक व्यक्तिगत भक्ति, संस्थानों को कमजोर कर सकती है और तानाशाही की ओर ले जा सकती है। भारत में व्यक्तित्व-पूजा (personality cults) का उदय कई बार पार्टी विचारधारा और संवैधानिक संस्थागत प्रक्रियाओं को पीछे छोड़ देता है, जिससे लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली और संवैधानिक नैतिकता  प्रभावित होती है।

भारतीय राजनीति में व्यक्तित्व-पूजा का उदय

  • करिश्माई नेतृत्व की ऐतिहासिक विरासत: नेताओं ने संस्थाओं से अधिक व्यक्तिगत नेतृत्व पर बल दिया।
    • उदाहरण: जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल राष्ट्रीय नेतृत्व के प्रतीक बने और व्यक्तित्व-पूजा (personality cults) को बढ़ावा मिला।
  • पार्टी सत्ता का केंद्रीकरण: राजनीतिक दलों में शक्ति एक नेता पर केंद्रित हो जाती है।
    • उदाहरण: कांग्रेस (इंदिरा गांधी काल) और AIADMK (एम.जी. रामचंद्रन, जयललिता)।
  • मतदाता मनोविज्ञान और प्रतीकवाद: मतदाता नेता को विचारधारा की बजाय प्रतीक के रूप में देखते हैं।
    • उदाहरण: ममता बनर्जी, पश्चिम बंगाल में, मतदाताओं में गहरी व्यक्तिगत निष्ठा व्याप्त हैं।
  • विचारधारा पर करिश्मा हावी: पार्टी विचारधारा, व्यक्तिगत व्यक्तित्व के अधीन हो जाती है।
    • उदाहरण: शिवसेना, बाल ठाकरे के करिश्माई व्यक्तित्व पर आधारित रही।
  • राजनीति में सेलिब्रिटी संस्कृति: फिल्म और खेल जगत की हस्तियाँ व्यक्तित्व-पूजा (personality cults)  को और बढ़ाती हैं।
    • उदाहरण: एम.जी. रामचंद्रन (तमिलनाडु), एन.टी. रामाराव (आंध्र प्रदेश)।

लोकतांत्रिक जवाबदेही पर प्रभाव

  • संस्थागत नियंत्रण व संतुलन का क्षरण: शक्ति का केंद्रीकरण विधायिका और न्यायपालिका को कमजोर करता है।
    • उदाहरण: इंदिरा गाँधी की आपातकाल अवधि (1975–77)।
  • पार्टी आंतरिक लोकतंत्र का ह्रास: आंतरिक असहमति को हतोत्साहित किया जाता है और केंद्रीय नेतृत्व हावी रहता है।
    • उदाहरण: जयललिता के निधन के बाद AIADMK में गुटबाजी।
  • सत्तावादी प्रवृत्तियों का जोखिम: अत्यधिक निष्ठा से शक्ति केंद्रित होती है और विपक्ष का दमन होता है।
    • उदाहरण: आपातकाल (वर्ष 1975–77) में व्यक्तिगत सत्ता ने लोकतांत्रिक मानदंडों को कमजोर किया।

संवैधानिक नैतिकता पर प्रभाव

  • कानून के शासन का क्षरण: व्यक्तिगत भक्ति अक्सर विधिक ढाँचों से ऊपर हो जाती है।
    • उदाहरण: विवादास्पद क्षमादान या प्रशासनिक निर्णय।
  • संस्थागत विशेषज्ञता का हाशियाकरण: नौकरशाहों और तकनीकी विशेषज्ञों की भूमिका निर्णय-प्रक्रिया में घट जाती है।
  • संवैधानिक नैतिकता पर प्रहार: किसी नेता के प्रति अत्यधिक निष्ठा समानता, पारदर्शिता और जवाबदेहिता के सिद्धांतों को कमजोर करती है। क्षेत्रीय दलों में व्यक्तित्व-पूजा संस्थागत अखंडता को और घटाती है।

निष्कर्ष

भारतीय राजनीति में व्यक्तित्व-पूजा, यद्यपि जन-समर्थन जुटाने में सहायक है, परंतु यह लोकतांत्रिक जवाबदेही और संवैधानिक नैतिकता के लिए गंभीर चुनौती है। आवश्यक है कि संस्थागत तंत्र को मजबूत किया जाए, पार्टी आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा दिया जाए, मीडिया की स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाए और नागरिक चेतना का विस्तार हो, ताकि राजनीतिक निष्ठा संवैधानिक शासन की पूरक बने, उसका विकल्प नहीं।

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