प्रश्न की मुख्य माँग
- स्वच्छ प्रौद्योगिकी के माध्यम से ऊर्जा स्वतंत्रता के मार्ग।
- ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका।
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उत्तर
भारत की ऊर्जा माँग वर्ष 2047 तक तीन गुना होने की संभावना है, जिसका कारण जनसंख्या वृद्धि और औद्योगिकीकरण है। स्वच्छ प्रौद्योगिकी के माध्यम से ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करना जीवाश्म ईंधन आयात कम करने, सतत् विकास सुनिश्चित करने और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) के तहत जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए अनिवार्य है।
स्वच्छ प्रौद्योगिकी + जैव प्रौद्योगिकी → वर्ष 2047 तक ऊर्जा स्वतंत्रता
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स्वच्छ प्रौद्योगिकी के माध्यम से ऊर्जा स्वतंत्रता के मार्ग
- नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का विस्तार: सौर, पवन और जलविद्युत को बढ़ाकर जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करना।
- उदाहरण: वर्ष 2030 तक 500 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का भारत का लक्ष्य।
- ग्रीन हाइड्रोजन संक्रमण: उद्योगों, परिवहन और ऊर्जा उत्पादन हेतु हाइड्रोजन को स्वच्छ ईंधन के रूप में बढ़ावा देना।
- उदाहरण: राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (वर्ष 2023) वर्ष 2030 तक 5 MMT वार्षिक उत्पादन का लक्ष्य।
- ऊर्जा भंडारण और ग्रिड आधुनिकीकरण: बड़े पैमाने पर बैटरी भंडारण और स्मार्ट ग्रिड में निवेश कर नवीकरणीय ऊर्जा की अनिश्चितता का प्रबंधन।
- उदाहरण: नीति आयोग रोडमैप के तहत लीथियम-आयन और सोडियम-आयन बैटरी परियोजनाएँ।
- इलेक्ट्रिक मोबिलिटी क्रांति: EV और चार्जिंग ढाँचे का विस्तार कर तेल आयात में कटौती।
- उदाहरण: FAME-II योजना के तहत इलेक्ट्रिक बसों, दोपहिया वाहनों और चार्जिंग स्टेशनों को बढ़ावा।
- विकेंद्रित स्वच्छ ऊर्जा मॉडल: ग्रामीण क्षेत्रों में रूफटॉप सोलर, बायोएनेर्जी और माइक्रोग्रिड को प्रोत्साहित करना।
- उदाहरण: पीएम-कुसुम योजना के तहत किसानों के लिए सौर पंप।
जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका
- फसल और अपशिष्ट से बायोफ्यूल: कृषि अपशिष्ट, शैवाल और पौधों से एथेनॉल व बायोडीजल बनाकर पेट्रोल-डीजल की आवश्यकता कम करना।
- उदाहरण: इंडियन ऑयल का 2G एथेनॉल संयंत्र, पानीपत (फसल अवशेष से एथेनॉल उत्पादन)।
- सुधारित ऊर्जा फसलें: आनुवंशिक उपकरणों से गन्ना और ज्वार जैसी फसलों को तेजी से बढ़ने तथा अधिक जैव ईंधन उत्पादन हेतु विकसित करना।
- उदाहरण: ICAR द्वारा उच्च एथेनॉल उत्पादन हेतु गन्ना संकर विकसित करना।
- स्वच्छ ऊर्जा हेतु शैवाल: तालाबों या टैंकों में शैवाल उगाकर बायोडीजल और हाइड्रोजन ईंधन उत्पादन।
- उदाहरण: CSIR-IIP की शैवाल आधारित हाइड्रोजन ईंधन परियोजनाएँ।
- बायोगैस और बायो-CNG: विशेष सूक्ष्मजीव अपशिष्ट को तोड़कर गैस बनाते हैं, जिसे शुद्ध कर ईंधन या वाहन संचालन में उपयोग किया जा सकता है।
- उदाहरण: सतत् योजना के तहत बायो-CNG संयंत्र।
- बायोरिफाइनरी और हरित उत्पाद: जैव प्रौद्योगिकी ऐसे संयंत्र स्थापित करने में सक्षम बनाती है, जो एक ही कच्चे माल से बायोफ्यूल, इको-फ्रेंडली प्लास्टिक और रसायन बना सकें।
निष्कर्ष
जैव प्रौद्योगिकी – बायोफ्यूल, बायोगैस और ग्रीन हाइड्रोजन के माध्यम से – भारत की स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन को गति दे सकती है। नवीकरणीय ऊर्जा के साथ एकीकृत होकर यह पंचामृत लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक होगी और वर्ष 2047 तक ऊर्जा स्वतंत्रता सुनिश्चित करेगी, साथ ही वर्ष 2070 तक नेट जीरो लक्ष्य को प्राप्त करने में योगदान देगी।
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