Q. मध्य प्रदेश और राजस्थान में हाल ही में कफ सिरप से संबंधित मौतों से उजागर हुई नियामक कमियों और विफलताओं पर चर्चा कीजिए। भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए भारत के औषधि नियामक ढाँचे को मजबूत करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • कफ सिरप से जुड़ी मौतों से उजागर हुई नियामक खामियाँ और विफलताएँ
  • भारत के औषधि नियामक ढाँचे को मजबूत करने के लिए कदम

उत्तर

मध्य प्रदेश और राजस्थान में विषाक्त कफ़ सिरप से हुई बच्चों की मौतों ने भारत की औषधि सुरक्षा प्रणाली  पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं।  ये घटनाएँ नियामक निगरानी, उत्पादन नैतिकता  और कार्यान्वयन प्रणाली में गहरे संरचनात्मक दोषों को उजागर करती हैं।  यह स्थिति घरेलू स्वास्थ्य सुरक्षा के साथ-साथ भारत की औषधीय विश्वसनीयता की रक्षा हेतु तत्काल सुधारों की माँग करती है।

खांसी की सिरप से जुड़ी मौतों से उजागर हुई नियामक कमियाँ और विफलताएँ 

नियामक कमियाँ 

  • अपर्याप्त गुणवत्ता नियंत्रण और परीक्षण तंत्र:  नियमित और कठोर परीक्षणों की कमी के कारण विषैले रसायन जाँच से बच निकलते हैं, जिससे गुणवत्ता मानकों के कमजोर अनुपालन का पता चलता है।
    • उदाहरण: ColdriF  सिरप में डायएथिलीन ग्लाइकॉल की मात्रा 48% पाई गई, जो निर्धारित सीमा से 480 गुना अधिक थी, यह पूर्व-बाजार परीक्षणों की गंभीर चूक को दर्शाता है।
  •  राज्य और केंद्र के नियामकों के बीच कमजोर समन्वय: भारत की विखंडित नियामक व्यवस्था के कारण जवाबदेही अस्पष्ट हो जाती है।
    • उदाहरण: राज्य औषधि नियंत्रकों और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) — दोनों ही उत्पादन और वितरण चरणों में प्रदूषण का पता लगाने में विफल रहे।
  • अपर्याप्त निगरानी और रिकॉल प्रणाली: दवाएँ संदूषण की आशंका के बाद भी बाजार में उपलब्ध रहती हैं क्योंकि रिकॉल प्रक्रियाएँ और निगरानी प्रणाली कमजोर हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2023 में WHO द्वारा गांबिया और उज्बेकिस्तान को निर्यातित भारतीय सिरप पर चेतावनी जारी होने के बावजूद, घरेलू फॉलो-अप जाँचें बेहद सीमित रहीं, जब तक कि नई मौतें नहीं हुईं।

नियामक विफलताएँ

  • लापरवाह निरीक्षण प्रथाएँ: कारखानों का नियमित निरीक्षण नहीं किया जाता, जिससे अनुपालन की विफलताएँ वर्षों तक बिना ध्यान दिए जारी रहती हैं।
  • सुरक्षा परामर्शों के क्रियान्वयन में विफलता: कमजोर निगरानी के कारण सरकारी चिकित्सा चेतावनियों का पालन नहीं होता।
    • उदाहरण: वर्ष 2023 की सलाह के बावजूद, जिसमें 4 वर्ष से कम आयु के बच्चों में उपयोग से मना किया गया था,  7 पीड़ित बच्चे इसी आयु वर्ग के थे, जिससे सुरक्षा सलाहों के अप्रभावी क्रियान्वयन का संकेत मिलता है।
  • प्रतिक्रियात्मक बजाय निवारक नियमन: अक्सर कार्रवाई त्रासदी के बाद की जाती है, न कि पहले से रोकथाम के लिए।
    • उदाहरण: केंद्र द्वारा 6 राज्यों में 19 यूनिट्स का निरीक्षण आदेश जारी करना “कैच-अप दृष्टिकोण (Catch-up Approach)” का उदाहरण है।

भारत की दवा नियामक रूपरेखा को सुदृढ़ करने के उपाय

  • एकीकृत राष्ट्रीय औषधि नियामक प्राधिकरण की स्थापना: राज्य और केंद्र एजेंसियों को एक डिजिटल रूप से एकीकृत प्रणाली में जोड़ा जाए, ताकि मानक एकसमान हों और डेटा रियल टाइम में साझा किया जा सके।
    • उदाहरण: नेशनल फार्मास्यूटिकल क्वालिटी ग्रिड  बैच-वार ट्रेसबिलिटी सुनिश्चित कर सकता है और गुणवत्ता विफलता पर तुरंत अलर्ट जारी कर सकता है।
  • अनिवार्य तृतीय-पक्ष परीक्षण और ऑडिट: स्वतंत्र प्रयोगशालाएँ आश्चर्य निरीक्षण (Surprise Checks) किए जा सकते है एवं परिणाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए।
    • उदाहरण: FSSAI मॉडल की तरह, तृतीय-पक्ष प्रमाणीकरण से इन-हाउस रिपोर्टों में हेर-फेर रोका जा सकता है।
  • राष्ट्रीय औषधि रिकॉल और ट्रैकिंग प्रणाली लागू करना
    प्रत्येक औषधि बैच को उत्पादन से खुदरा बिक्री तक डिजिटल रूप से ट्रैक किया जाए ताकि दूषित उत्पादों का तत्काल हटाएँ जा सके।

    • उदाहरण: अमेरिका के FDA के ड्रग सप्लाई चेन सिक्योरिटी एक्ट में प्रयुक्त बारकोड आधारित ट्रैकिंग प्रणाली को भारत में अपनाया जा सकता है।
  • औषधि निगरानी और सार्वजनिक रिपोर्टिंग प्रणाली को सशक्त बनाना: डॉक्टरों, फार्मासिस्टों और उपभोक्ताओं के लिए ऐसी प्रणाली बनाई जाए, जहाँ वे हानिकारक प्रतिक्रियाओं या गुणवत्ता संदेहों की रिपोर्ट कर सकें।
    • उदाहरण: AI-सक्षम उन्नत ADR (Adverse Drug Reaction) पोर्टल संभावित खतरनाक प्रवृत्तियों को समय रहते पहचान सकता है।
  • उल्लंघनों के लिए जवाबदेही और दंडात्मक कार्रवाई: नियम उल्लंघन पर कठोर दंड  दिए जाएँ, जिसमें निर्माण लाइसेंस निलंबन, आर्थिक जुर्माना और आपराधिक दायित्व शामिल हो।

निष्कर्ष

भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए भारत की दवा नियामक प्रणाली को प्रतिक्रियात्मक से निवारक बनाना अनिवार्य है। इस सुधार का आधार पारदर्शिता, जवाबदेही और डिजिटल निगरानी होना चाहिए। एक एकीकृत और सतर्क नियामक तंत्र न केवल नागरिकों के लिए सुरक्षित दवाएँ सुनिश्चित करेगा, बल्कि भारत की वैश्विक पहचान — “विश्व की फार्मेसी” को भी सुदृढ़ बनाए रखेगा।

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