प्रश्न की मुख्य माँग
- यूरोप की उभरती रणनीतिक स्वतंत्रता के कारण भारत के राजनयिक और आर्थिक जुड़ाव के अवसर।
- यूरोप की उभरती रणनीतिक स्वतंत्रता के कारण भारत के राजनयिक और आर्थिक जुड़ाव के लिए चुनौतियाँ।
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उत्तर
बहुध्रुवीय पश्चिम (Multi-polar West) के उदय ने यूरोप को सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रणनीतिक स्वतंत्रता की दिशा में अग्रसर किया है। अमेरिका-केंद्रित गठबंधनों से आगे बढ़ते हुए अब यूरोप स्वतंत्र वैश्विक सहभागिता की खोज में है। भारत के लिए यह परिवर्तन सहयोग के नए अवसरों के साथ-साथ कूटनीतिक और आर्थिक चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करता है।
भारत के लिए कूटनीतिक और आर्थिक सहभागिता के अवसर
- कूटनीतिक लचीलापन: अमेरिकी प्रभुत्व से यूरोप की स्वायत्तता भारत को मुद्दा-आधारित सहयोग की अनुमति देती है, न कि गुटीय राजनीति की।
- उदाहरण: रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत का संतुलित रुख, जो वाशिंगटन के दबाव-आधारित दृष्टिकोण से भिन्न रहा।
- व्यापार और निवेश का विविधीकरण: यूरोप की चाइना प्लस वन (China-plus-one) रणनीति भारत की निर्माण और डिजिटल विकास आकांक्षाओं के अनुरूप है।
- उदाहरण: भारत-यूरोप मुक्त व्यापार समझौता (India-EU FTA) और इन्वेस्टमेंट प्रोटेक्शन ट्रीटी का पुनर्जीवन एवं वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार $130 अरब डॉलर से अधिक पहुँचा।
- रक्षा और रणनीतिक-प्रौद्योगिकी सहयोग: स्वावलंबी रक्षा पर यूरोप का ध्यान संयुक्त अनुसंधान और सह-उत्पादन के नए अवसर खोलता है।
- उदाहरण: फ्राँस-भारत जेट इंजन सहयोग।
- हरित और डिजिटल परिवर्तन में साझेदारी: जलवायु कार्रवाई, नवीकरणीय ऊर्जा और डेटा शासन पर समान दृष्टिकोण आपसी हितों को मजबूत करता है।
- उदाहरण: इंडिया-EU कनेक्टिविटी पार्टनरशिप (2021), जो यूरोप के ग्लोबल गेटवे और भारत के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को पूरक बनाती है।
- इंडो-पैसिफिक सहयोग: यूरोप की इंडो-पैसिफिक रणनीतियाँ भारत की समुद्री सुरक्षा दृष्टि के अनुरूप हैं।
- उदाहरण: फ्राँस, जर्मनी और नीदरलैंड ने “मुक्त और खुले समुद्रों” का समर्थन करते हुए इंडो-पैसिफिक नीतियाँ अपनाई हैं।
भारत की कूटनीतिक और आर्थिक सहभागिता की चुनौतियाँ
- रणनीतिक मुद्दों पर नीति-भिन्नता: रूस, चीन और पश्चिम एशिया पर दृष्टिकोणों में अंतर बना हुआ है।
- उदाहरण: रूस पर यूरोपीय संघ (EU) के प्रतिबंध बनाम भारत के मॉस्को से तेल आयात।
- विनियामक और जलवायु-संबंधी व्यापार बाधाएँ: यूरोप के हरित और डिजिटल नियम भारतीय निर्यात को प्रभावित कर सकते हैं।
- उदाहरण: कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) भारत के इस्पात और एल्युमिनियम उद्योग की प्रतिस्पर्द्धा को खतरा पहुँचाता है।
- यूरोपीय निर्णय-प्रक्रिया का विखंडन: आंतरिक मतभेदों के कारण भारत-संबंधी मुद्दों पर सामूहिक EU कार्रवाई में देरी होती है।
- उदाहरण: पूर्वी यूरोप का अमेरिका-केंद्रित दृष्टिकोण बनाम फ्राँस की स्वायत्तता-आधारित सोच।
- उभरते क्षेत्रों में प्रतिस्पर्द्धात्मक दबाव: ग्रीन डील इंडस्ट्रियल प्लान के अंतर्गत यूरोपीय सब्सिडियाँ भारतीय सौर और इलेक्ट्रिक वाहन निर्यात को कमजोर कर सकती हैं।
- भारत में कार्यान्वयन संबंधी बाधाएँ: धीमी वार्ताएँ और नीतिगत कठोरता गति को सीमित करती हैं।
- उदाहरण: भारत-EU FTA वार्ताएँ वर्ष 2007 से जारी हैं, परंतु शुल्क और डेटा प्रवाह से संबंधित मुद्दों के कारण गतिरोध बना हुआ हैं।
आगे की राह
- भारत-EU मुक्त व्यापार समझौते को तीव्रता से आगे बढ़ाना: FTA और निवेश संरक्षण संधि (Investment Protection Treaty) को शीघ्र अंतिम रूप देकर स्थिर व्यापार, डिजिटल सेवाएँ और बाजार पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है।
- उदाहरण: यूरोप की चाइना प्लस वन (China-plus-one) रणनीति के अनुरूप भारत वार्ताओं में गति ला सकता है।
- यूरोप की हरित और डिजिटल नीति से तालमेल: नवीकरणीय ऊर्जा, डेटा और परिपत्र अर्थव्यवस्था के मानकों का समन्वय भारत को यूरोप के हरित-डिजिटल परिवर्तन में प्रमुख भागीदार बना सकता है।
- उदाहरण: भारत के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन और डिजिटल इंडिया को EU के ग्रीन डील और डिजिटल कैंपस 2030 से जोड़ा जा सकता है।
- रणनीतिक और रक्षा साझेदारी को गहरा करना: अंतरिक्ष, समुद्री सुरक्षा और महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में दीर्घकालिक सहयोग को बढ़ावा दिया जाए।
- उदाहरण: भारत-फ्राँस रणनीतिक साझेदारी को क्वांटम, AI, और अंडरसी अवेयरनेस तक विस्तारित किया जाए।
- भारत-यूरोप संवाद मंचों का संस्थानीकरण: नियमित 2+2 मंत्रीस्तरीय संवाद तथा व्यापार-प्रौद्योगिकी मंचों की स्थापना से द्विपक्षीय और EU-स्तरीय समन्वय सुदृढ़ होगा।
निष्कर्ष
यूरोप की रणनीतिक स्वायत्तता भारत को व्यापार, प्रौद्योगिकी और वैश्विक शासन में संबंधों को गहरा करने का अवसर प्रदान करती है। परंतु सफलता इस पर निर्भर करेगी कि भारत नीतिगत मतभेदों के साथ-साथ सहयोग के अवसरों का संतुलन कैसे बनाए रखता है और अपनी भागीदारी को यूरोप की बदलती प्राथमिकताओं के अनुरूप कैसे ढालता है — जिससे वह उभरती बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में एक प्रभावी साझेदार के रूप में उभरे।
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