प्रश्न की मुख्य माँग
- प्रतिक्रियावादी राजनीति से आगे बढ़ना क्यों आवश्यक है?
- व्यापार, प्रौद्योगिकी और वैश्विक शासन में रणनीतिक सहयोग क्यों आवश्यक है?
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उत्तर
भारत–कनाडा संबंध, जो साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और आर्थिक पूरकताओं पर आधारित हैं, हाल के वर्षों में राजनीतिक तनाव और प्रवासी समुदाय से जुड़ी विवादास्पद घटनाओं के कारण कमजोर पड़े हैं। वर्ष 2025 में हुई आधिकारिक-स्तर की पुनर्संलग्नता यह दर्शाती है कि अब समय आ गया है कि दोनों देश प्रतिक्रियात्मक राजनीति से आगे बढ़कर व्यापार, प्रौद्योगिकी और वैश्विक शासन के क्षेत्र में रणनीतिक, विषय-आधारित सहयोग पर ध्यान केंद्रित करें।
प्रतिक्रियात्मक राजनीति से आगे बढ़ना क्यों आवश्यक है
- राजनयिक विश्वास और संस्थागत निरंतरता बहाल करने के लिए: वर्ष 2023 में राजनयिकों का निष्कासन और वीजा निलंबन ने संस्थागत संवाद को कमजोर किया।
- उदाहरण: CEPA वार्ताओं में विराम और छात्र वीजा प्रतिबंधों ने दीर्घकालिक संबंधों को प्रभावित किया। वर्ष 2025 में प्रारंभ हुआ संरचित आधिकारिक संवाद विश्वास पुनर्निर्माण की दिशा में एक कदम है।
- घरेलू राजनीति को विदेश नीति पर हावी होने से रोकने के लिए: प्रवासी दबाव और कनाडा की चुनावी बयानवाजी ने द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित किया है।
- आर्थिक और निवेश हितों की रक्षा के लिए: प्रतिक्रियात्मक राजनीति ने निवेशक विश्वास और व्यापार संभावनाओं पर खतरा उत्पन्न कर दिया है।
- उदाहरण: कनाडा पेंशन फंड (CPPIB) ने वर्ष 2023 में भारत में निवेश रोक दिए थे, जो राजनीतिक अनिश्चितता के कारण था।
- जन–से–जन संबंधों को सुरक्षित रखने के लिए: 3 लाख से अधिक भारतीय छात्र कनाडा में अध्ययनरत हैं, जो दोनों देशों के बीच एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक–आर्थिक सेतु हैं।
- उदाहरण: वीजा में विलंब और उत्तेजक बयानों ने शिक्षा और प्रवासन सहयोग को खतरे में डाला।
- पश्चिमी देशों में भारत की रणनीतिक साख बनाए रखने के लिए: कनाडा के साथ स्थिर संबंध भारत की G7 देशों के साथ साझेदारी को मजबूत करते हैं।
- उदाहरण: भारत–कनाडा के सुचारु संबंध G20 और इंडो–पैसिफिक मंचों पर भारत की स्थिति को सशक्त बनाते हैं।
- साझा लोकतांत्रिक और सुरक्षा मूल्यों पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए: दोनों देशों को भ्रामक सूचना, जलवायु परिवर्तन, और आर्थिक अस्थिरता जैसी वैश्विक चुनौतियों से मिलकर निपटना चाहिए, टकराव से नहीं।
- भू-राजनीतिक अलगाव से बचने और बहुध्रुवीय सहयोग को मजबूत करने के लिए: कनाडा की इंडो–पैसिफिक रणनीति (वर्ष 2022) में भारत को प्रमुख साझेदार माना गया है; लगातार तनाव इस रणनीतिक समानता को कमजोर करता है।
व्यापार, प्रौद्योगिकी और वैश्विक शासन में रणनीतिक सहयोग क्यों आवश्यक है?
- व्यापार और निवेश विस्तार: दोनों देशों की आर्थिक पूरकताएँ विकास और लचीलापन बढ़ा सकती हैं।
- उदाहरण: द्विपक्षीय व्यापार (वर्ष 2023–24) में 9 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचा, CEPA वार्ताओं के पुनः प्रारंभ से वर्ष 2030 तक यह दोगुना हो सकता है।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार सहयोग: अनुसंधान और नवाचार में साझा क्षमता कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), विद्युत वाहन (EVs) और नवीकरणीय ऊर्जा में संयुक्त परियोजनाओं की माँग करती है।
- उदाहरण: भारत–कनाडा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग समझौता (वर्ष 2023) को स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान के लिए नवीनीकृत किया गया।
- ऊर्जा और जलवायु सहयोग: कनाडा के प्राकृतिक संसाधन और भारत की हरित ऊर्जा आवश्यकताएँ स्थिरता के लिए परस्पर पूरक हैं।
- उदाहरण: ग्रीन हाइड्रोजन, कार्बन कैप्चर, और नाभिकीय ऊर्जा सुरक्षा पर सहयोग।
- शिक्षा और मानव पूँजी संबंध: कनाडा का उच्च शिक्षा क्षेत्र भारतीय छात्रों से लाभान्वित होता है, संरचित गतिशीलता समझौते दोनों अर्थव्यवस्थाओं को सशक्त करते हैं।
- उदाहरण: भारतीय छात्र कनाडा की अर्थव्यवस्था में प्रति वर्ष C$10 अरब (StatCan 2024) का योगदान देते हैं।
- महत्वपूर्ण खनिज और आपूर्ति शृंखला सुरक्षा: कनाडा के लीथियम और कोबाल्ट भंडार भारत के ऊर्जा संक्रमण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
- उदाहरण: वर्ष 2023 में हस्ताक्षरित महत्त्वपूर्ण खनिज सहयोग समझौता (MoU) EV निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है।
- बहुपक्षीय सहयोग और वैश्विक शासन: G20, संयुक्त राष्ट्र (UN), और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे मंचों पर संयुक्त आवाज मध्यम शक्तियों के प्रभाव को सशक्त करती है।
- उदाहरण: जलवायु वित्त, डिजिटल समावेशन, और बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार पर समन्वय।
- इंडो–पैसिफिक में भू-राजनीतिक संतुलन: कनाडा की इंडो–पैसिफिक पहल भारत की “एक्ट ईस्ट” नीति और “सागर” दृष्टि (SAGAR Vision) को पूरक बनाती है, जो नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था को सशक्त करती है।
निष्कर्ष
भारत–कनाडा संबंधों के परिपक्व होने के लिए प्रतिक्रिया की राजनीति के स्थान पर व्यावहारिक साझेदारी की आवश्यकता है। व्यापार, नवाचार, और बहुपक्षीय सहयोग पर निरंतर ध्यान केंद्रित करके यह संबंध पारस्परिक विश्वास और रणनीतिक प्रासंगिकता पर आधारित इंडो–पैसिफिक युग की साझेदारी में परिवर्तित हो सकता है।
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