Q. भारत के संविधान की एक कानूनी रूपरेखा और एक सामाजिक घोषणापत्र, दोनों के रूप में चर्चा कीजिए। मौलिक अधिकारों और सामाजिक-आर्थिक शासन में अंबेडकर के योगदान संविधान के परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को कैसे मूर्त रूप देते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • संविधान एक कानूनी ढाँचे के रूप में।
  • संविधान एक सामाजिक घोषणापत्र के रूप में।
  • डॉ. अंबेडकर ने संविधान के परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को कैसे मूर्त रूप दिया।

उत्तर

भारतीय संविधान एक कानूनी चार्टर होने के साथ-साथ एक समान समाज के लिए नैतिक दृष्टि भी है। बी.एन. राव द्वारा प्रारूपित और डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा परिवर्तित इस संविधान ने संस्थागत व्यवस्था को सामाजिक न्याय के साथ जोड़ा। यह भारत की विभाजित स्वतंत्रता के बीच स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के ढाँचे के रूप में उभरा।

भारतीय संविधान एक कानूनी ढाँचा और सामाजिक घोषणापत्र दोनों के रूप में

कानूनी ढाँचे के रूप में

  • शासन की संस्थागत संरचना: संविधान विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के संगठन और शक्तियों को परिभाषित करता है, जिससे परस्पर नियंत्रण और संतुलन सुनिश्चित होता है।
    • उदाहरण: बी.एन. राव के प्रारूप ने संरचनात्मक संगति और अमेरिका, कनाडा तथा आयरलैंड जैसे संविधानों से तुलनात्मक अंतर्दृष्टियाँ प्रदान कीं।
  • अधिकारों और कर्तव्यों का संहिताकरण: यह मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक सिद्धांतों को कानूनी रूप से स्थापित करता है ताकि कानून के समक्ष न्याय, स्वतंत्रता और समानता बनी रहे।
  • कानून का शासन और संवैधानिक सर्वोच्चता: यह मनमानी शक्ति पर संवैधानिक कानून की सर्वोच्चता स्थापित करता है, जिससे लोकतांत्रिक शासन की रक्षा होती है।

सामाजिक घोषणापत्र के रूप में

  •  सामाजिक न्याय का उपकरण: यह जाति, वर्ग और लैंगिक असमानताओं को समाप्त करने की नैतिक दृष्टि को समाहित करता है ताकि गरिमा और समानता सुनिश्चित हो।
  • राजनीतिक और सामाजिक लोकतंत्र के बीच सेतु: यह राजनीतिक समानता को आर्थिक और सामाजिक समानता की आवश्यकता से जोड़ता है ताकि लोकतांत्रिक स्थिरता बनी रहे।
    • उदाहरण: डॉ. अंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि सामाजिक न्याय के बिना राजनीतिक लोकतंत्र ‘राजनीतिक लोकतंत्र को खतरे में डाल देगा।
  • समावेशन और नैतिक उद्देश्य का वादा: संविधान यह घोषित करता है कि सत्ता उन सभी की समान रूप से है जिन्हें ऐतिहासिक रूप से बहिष्कृत किया गया था।
    • उदाहरण: गांधीजी के आग्रह पर संविधान सभा में डॉ. अंबेडकर का समावेश सुनिश्चित किया गया, जिससे दलितों की राष्ट्र-निर्माण में भागीदारी संभव हुई।

कैसे डॉ. अंबेडकर का योगदान संविधान की परिवर्तनकारी दृष्टि को मूर्त रूप देता है

  • मौलिक अधिकारों के शिल्पकार: उन्होंने नागरिक स्वतंत्रता और कानून के समक्ष समानता की वकालत की ताकि व्यक्ति को राज्य या समाज के प्रभुत्व से स्वतंत्रता मिल सके।
    •  उदाहरण: मौलिक अधिकारों की उनकी रक्षा ने संविधान को स्वतंत्रता और न्याय के नैतिक तथा कानूनी चार्टर में परिवर्तित कर दिया।
  • सामाजिक और आर्थिक समानता का प्रोत्साहन: उन्होंने बल दिया कि यदि सामाजिक और आर्थिक जीवन में असमानता को संबोधित नहीं किया गया तो लोकतंत्र समाप्त हो जाएगा।
  • सकारात्मक भेदभाव का संस्थानीकरण: डॉ. अंबेडकर ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए शिक्षा, रोजगार और विधानमंडलों में आरक्षण सुनिश्चित किया।
  • नीति निदेशक सिद्धांतों का एकीकरण: उन्होंने इन्हें सामाजिक परिवर्तन के उपकरण के रूप में देखा, जो कल्याण, श्रम और आर्थिक न्याय पर नीतियों का मार्गदर्शन करते हैं।
    • उदाहरण: राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत इस विश्वास को दर्शाते हैं कि राज्य को सुधार के साधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
  • बंधुत्व और नैतिक लोकतंत्र: डॉ. अंबेडकर द्वारा बंधुत्व पर दिया गया जोर भारत के विविध समाज को न्याय और समानता के साझा आदर्शों के तहत एकजुट करने का प्रयास था।
    •  उदाहरण: उनकी दृष्टि ने संविधान को एक कानूनी दस्तावेज से ‘गणराज्य के जीवंत नैतिक दर्शन’ में परिवर्तित कर दिया।

निष्कर्ष

डॉ. अंबेडकर ने संविधान को केवल शासन का साधन नहीं, बल्कि न्याय और सामाजिक सुधार का उपकरण बना दिया। उनकी दृष्टि ने सुनिश्चित किया कि लोकतंत्र समानता और गरिमा पर आधारित रहे। इस प्रकार संविधान भारत के लिए कानूनी व्यवस्था और परिवर्तनकारी बदलाव का स्थायी ढाँचा बना हुआ है।

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