Q. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) को अक्सर "दंतविहीन बाघ" कहा जाता है, जो अल्पसंख्यक अधिकारों का प्रभावी गारंटर होने के बजाय केवल एक प्रतीकात्मक निकाय है। इसकी वैधानिक सीमाओं और संस्थागत इतिहास के आलोक में, आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए कि क्या राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अपने अधिदेश में पूरी तरह विफल रहा है। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) का सकारात्मक योगदान।
  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की सीमाएँ।
  • सुझावपूर्ण उपाय लिखिए।

उत्तर

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM), जिसकी स्थापना वर्ष 1978 में हुई और जिसे वर्ष 1992 में वैधानिक दर्जा (Statutory Status) मिला, का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना था। किंतु अपनी निगरानी और परामर्श की भूमिका के बावजूद, सीमित शक्तियाँ और कमजोर स्वायत्तता ने इसकी प्रभावशीलता को कमजोर किया है।

NCM के सकारात्मक योगदान

  • संवैधानिक अधिकारों की रक्षा:  आयोग ने अनुच्छेद-29–30 के अंतर्गत अल्पसंख्यक अधिकारों के उल्लंघन की निगरानी करते हुए सांस्कृतिक और शैक्षिक स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता बढ़ाई है।
  • सरकार को परामर्श प्रदान करना:  आयोग ने भेदभाव, प्रतिनिधित्व, और विकास जैसे विषयों पर नीतिगत सुझाव दिए हैं, जो अल्पसंख्यकों को प्रभावित करते हैं।
  • समन्वय तंत्र के रूप में भूमिका: यह आयोग अल्पसंख्यक समुदायों और सरकार के बीच सेतु के रूप में कार्य करता है, शिकायतों को सरकार तक पहुँचाने तथा उनके समाधान हेतु सुझाव देने में सहायता करता है।
  • लोक जवाबदेही का मंच:  यह एक नैतिक एवं परामर्शात्मक प्रहरी के रूप में अन्याय और असमानता पर ध्यान आकर्षित करता है, भले ही इसके पास दंडात्मक शक्तियाँ न हों।

NCM के कार्य में सीमाएँ

  • संवैधानिक दर्जे का अभाव: अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग जैसे संस्थानों के विपरीत, NCM केवल एक वैधानिक संस्था है, जिसके पास कोई संवैधानिक आधार नहीं है।
  • सीमित कानूनी शक्तियाँ:  यद्यपि आयोग के पास सिविल कोर्ट जैसी शक्तियाँ हैं, इसके निर्णय केवल परामर्शात्मक होते हैं, जिससे अनुपालन सुनिश्चित नहीं हो पाता।
  • राजनीतिक और नौकरशाही निर्भरता: नियुक्तियाँ और कार्यप्रणाली कार्यपालिका के प्रभाव में रहती हैं, जिससे आयोग की स्वायत्तता और निष्पक्षता प्रभावित होती है।
  • अधिकार क्षेत्र का ओवरलैप:  राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग (NCMEI) जैसी नई संस्थाओं के गठन से NCM का कार्यक्षेत्र बिखर गया है, जिससे इसका संस्थागत फोकस और एकरूपता कम हुई है।

सुझावात्मक उपाय

  • संवैधानिक दर्जा प्रदान करना: NCM को संविधान के तहत दर्जा देकर इसकी कानूनी स्थिति और प्रवर्तन क्षमता को मजबूत किया जा सकता है।
  • संस्थागत स्वायत्तता सुनिश्चित करना:  पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया, स्वतंत्र वित्तपोषण, और निश्चित कार्यकाल से राजनीतिक हस्तक्षेप कम होगा।
  • शक्तियों और दायरे का विस्तार: आयोग को जाँच करने और बाध्यकारी निर्देश जारी करने की शक्ति दी जानी चाहिए, जैसा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के पास है।
  • व्यापक शासन सुधारों से एकीकरण:  NCM, NCMEI और राज्य अल्पसंख्यक आयोगों के बीच समन्वय को मजबूत कर नीतिगत समानता और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकती है।

निष्कर्ष

हालाँकि NCM ने अल्पसंख्यक समुदायों की आवाज उठाने में भूमिका निभाई है, परंतु इसकी सीमित शक्तियाँ और सरकारी निर्भरता ने इसके प्रभाव को घटाया है। इसे संवैधानिक दर्जा, स्वायत्तता, और प्रवर्तन शक्तियाँ प्रदान करना आवश्यक है, ताकि यह अल्पसंख्यक अधिकारों का प्रभावी संरक्षक और समावेशी शासन व्यवस्था का सशक्त स्तंभ बन सके।

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