प्रश्न की मुख्य माँग
- पशु कल्याण भारत के विकास दृष्टिकोण का अभिन्न अंग क्यों होना चाहिए।
- पशु कल्याण को नीति और विकास ढाँचे में एकीकृत करना।
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उत्तर
विकसित भारत 2047 का विजन एक समतामूलक, टिकाऊ और नैतिक समाज के निर्माण का है। फिर भी, भारत का विकासात्मक विमर्श मुख्यतः मानव-केंद्रित बना हुआ है, जिसमें अक्सर पशु कल्याण को नजरअंदाज कर दिया जाता है। पशुओं को केवल आर्थिक संपत्ति नहीं, बल्कि संवेदनशील प्राणी के रूप में मान्यता देना, संविधान के अनुच्छेद-48A और अनुच्छेद-51A(g) के तहत परिकल्पित पारिस्थितिकी संतुलन, नैतिक प्रगति और स्थिरता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।
पशु कल्याण भारत के विकास दृष्टिकोण का अभिन्न अंग क्यों होना चाहिए
- संवैधानिक और नैतिक दायित्व: भारत का संविधान राज्य और नागरिकों दोनों को जीवित प्राणियों की रक्षा करने और उनके प्रति करुणा का दृष्टिकोण रखने की अपेक्षा रखता है।
- उदाहरण: पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की स्थापना की गई; सर्वोच्च न्यायालय ने ए. नागराजा बनाम भारत संघ (2014) मामले में पशुओं की गरिमा को जीवन के अधिकार का हिस्सा माना।
- पारिस्थितिकी संतुलन और जैव विविधता की स्थिरता: स्वस्थ पशुओं की संख्या परागण, बीज प्रसार और खाद्य शृंखलाओं को बनाए रखती है।
- उदाहरण: डाइक्लोफेनेक के उपयोग से गिद्धों की संख्या में कमी आई, जिससे मृत जीवों के अपघटन की प्राकृतिक प्रक्रिया बाधित हुई और पारिस्थितिकी असंतुलन एवं जूनोटिक (जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाली) बीमारियों के खतरे में वृद्धि हुई है।
- जलवायु परिवर्तन और सतत् कृषि: नैतिकतापूर्ण पशुपालन और संसाधनों के अति-दोहन में कमी से मेथेन उत्सर्जन और भूमि क्षरण घटता है।
- उदाहरण: पादप-आधारित आहार अपनाने और बेहतर चारे के प्रबंधन से भारत के कृषि क्षेत्र से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य और जूनोटिक जोखिम में कमी: पशुओं की खराब देखभाल मनुष्यों में बीमारियों के संक्रमण का खतरा बढ़ाती है।
- उदाहरण: कोविड-19 महामारी और निपाह वायरस के प्रकोप यह दर्शाते हैं कि मानव, पशु और पारिस्थितिकी तंत्र को जोड़ने वाला ‘वन हेल्थ’ (One Health) दृष्टिकोण कितना आवश्यक है।
- आर्थिक और आजीविका की स्थिरता: पशु कल्याण आधारित पशुपालन, उत्पादकता बढ़ाता है और ग्रामीण आय को दीर्घकालिक रूप से सुदृढ़ करता है।
- उदाहरण: राष्ट्रीय पशुधन मिशन और पशु आरोग्य केंद्र (पशु आरोग्य केंद्र) मानवीय पशु देखभाल को पशु-चिकित्सा नवाचारों से जोड़ते हैं।
- पर्यटन और सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण: भारत को नैतिक वन्यजीव पर्यटन और पारिस्थितिकी पर्यटन के माध्यम से और मजबूत किया जा सकता है।
- उदाहरण: प्रोजेक्ट एलिफेंट और प्रोजेक्ट टाइगर स्थानीय आजीविकाओं को प्रजाति संरक्षण से जोड़ते हैं।
- विकसित भारत की नैतिक और आध्यात्मिक नींव: भारतीय दर्शन जैसे अहिंसा और वसुधैव कुटुंबकम् सभी जीवों के साथ सह-अस्तित्व पर बल देते हैं, जो मिशन लाइफ के उद्देश्यों के अनुरूप है।
नीति और विकास ढाँचे में पशु कल्याण का एकीकरण
- विकास योजना में पशु कल्याण का मुख्यधारा में समावेशन: पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) और ग्रामीण विकास योजनाओं में पशु कल्याण संकेतकों को शामिल किया जाए।
- उदाहरण: मनरेगा (MGNREGA) या स्मार्ट विलेज कार्यक्रमों में मानवीय पशुपालन प्रबंधन को एकीकृत करना।
- कानूनी और संस्थागत सशक्तीकरण: प्राचीन पशु संरक्षण कानूनों को अद्यतन किया जाए।
- उदाहरण: पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में संशोधन कर दंडों में वृद्धि और कठोर प्रवर्तन सुनिश्चित करना।
- एक स्वास्थ्य और अंतर-मंत्रालयी समन्वय: जूनोटिक रोगों और आवास तनाव के प्रबंधन के लिए पर्यावरण, कृषि और स्वास्थ्य मंत्रालयों के बीच समन्वय को संस्थागत रूप देना।
- पशु संवेदनशीलता के साथ शहरी और बुनियादी ढाँचा नियोजन: शहरी नियोजन में वन्यजीव गलियारे, अंडरपास और आवारा पशु प्रबंधन को शामिल करना।
- उदाहरण: दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर वन्यजीव क्रॉसिंग; आवारा कुत्तों के लिए शहरी नसबंदी अभियान।
- सतत् पशु-आधारित उद्योग: पर्यावरण-लेबल और सार्वजनिक खरीद मानकों के माध्यम से डेयरी, चमड़ा और सौंदर्य प्रसाधनों में क्रूरता-मुक्त उत्पादन को प्रोत्साहित करना।
- सामुदायिक और शैक्षिक सहभागिता: स्कूली पाठ्यक्रम और स्थानीय शासन में पशु नैतिकता को शामिल करना।
- उदाहरण: केरल के पीपल फॉर एनिमल्स क्लब और FIAPO जैसे गैर-सरकारी संगठन जमीनी स्तर पर जागरूकता को बढ़ावा देते हैं।
- तकनीकी और वैज्ञानिक नवाचार: वन्यजीव संरक्षण और बचाव कार्यों के लिए एआई-आधारित ट्रैकिंग और स्मार्ट निगरानी का उपयोग करना।
- उदाहरण: काजीरंगा में ई-निगरानी ने अवैध शिकार पर काफी सीमा तक अंकुश लगाया है।
निष्कर्ष
विकसित भारत 2047 के लिए, प्रगति को न केवल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से, बल्कि सभी जीवों के नैतिक संरक्षण से भी मापा जाना चाहिए। आर्थिक विकास नीति में पशु कल्याण को शामिल करने से पर्यावरणीय नैतिकता, जन स्वास्थ्य और सतत् आजीविका का पोषण होता है, जो भारत के सभ्यतागत लोकाचार “सर्व भूत हित” अर्थात् सभी प्राणियों के कल्याण के सच्चे सार को मूर्त रूप देता है।
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