Q. औषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के बावजूद, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर चिकित्सीय दावों के भ्रामक विज्ञापन प्रसारित किए जा रहे हैं। बिग टेक और सीमा-पार डिजिटल मीडिया के युग में भारतीय औषधि विज्ञापन कानूनों को लागू करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। (10 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • बिग टेक के युग में भारतीय दवा विज्ञापन कानूनों को लागू करने में चुनौतियाँ।
  • सीमा पार डिजिटल मीडिया में कानूनों को लागू करने में चुनौतियाँ।

उत्तर

यद्यपि औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 (DMRA) तथाकथित चमत्कारी उपचारों के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाता है, फिर भी डिजिटल प्लेटफॉर्मों ने अप्रमाणित चिकित्सीय दावों के समानांतर बाजार को जन्म दिया है। बिग टेक (Big Tech) और सीमापार डिजिटल मीडिया के युग में, लाभ-प्रेरित एल्गोरिदम नियामक ढाँचों से तेज गति से कार्य करते हैं, जिससे भ्रामक स्वास्थ्य दावे भारतीय निगरानी से बचकर जनता का शोषण करते हैं।

बिग टेक के युग में भारतीय औषधि विज्ञापन कानूनों को लागू करने में चुनौतियाँ

  • ‘मध्यस्थ प्रतिरक्षा’ का दुरुपयोग:  डिजिटल कंपनियाँ स्वयं को “मात्र मध्यस्थ” बताकर उन भुगतान किए गए विज्ञापनों की जिम्मेदारी से बच जाती हैं, जिन्हें वे स्वयं अनुमोदित करती हैं।
    • उदाहरण: कई प्लेटफॉर्मों ने पहले पीएनडीटी अधिनियम (PNDT Act) के तहत लैंगिक चयन विज्ञापनों की अनुमति देने पर भी स्वयं को मध्यस्थ बताकर दायित्व से बचा लिया।
  • DMRA-विशिष्ट जाँच प्रणाली का अभाव:  प्लेटफॉर्म DMRA में प्रतिबंधित चिकित्सीय दावों की सूची के अनुसार कोई स्वचालित जाँच या फिल्टरिंग नहीं करते।
    • उदाहरण: “आयुर्वेद + ब्लड प्रेशर टैबलेट्स” या “होम्योपैथी + डायबिटीज” जैसे सर्च पर स्पॉन्सर्ड विज्ञापन मिलते हैं, जो DMRA का सीधा उल्लंघन है।
  • लाभ को सार्वजनिक स्वास्थ्य से ऊपर रखना:  प्लेटफॉर्म राजस्व के लिए चमत्कारी उपचारों वाले विज्ञापन प्राथमिकता से दिखाते हैं।
    • उदाहरण: कई मार्केटिंग अनुबंध ऐसे आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक दावे करते हैं, जिनकी कोई वैज्ञानिक पुष्टि नहीं होती।
  • कमजोर प्रवर्तन और लंबी न्यायिक प्रक्रिया: दंडात्मक कार्रवाई दुर्लभ है; आपराधिक अभियोजन का अभाव निवारक प्रभाव को समाप्त कर देता है।
    • उदाहरण: PNDT अधिनियम पर दायर एक जनहित याचिका (PIL) 9 वर्षों तक चली, अंततः केवल समिति गठन के साथ समाप्त हुई कोई जवाबदेही तय नहीं हुई।
  • नियामकीय दोहरे मापदंड:  विकसित देशों में प्लेटफॉर्म कड़े विज्ञापन मानक अपनाते हैं, परंतु भारत में कानून की अनदेखी करते हैं।
    • उदाहरण: अमेरिका में भ्रामक चिकित्सीय विज्ञापन रोक दिए जाते हैं, जबकि भारत में “गौमूत्र से कैंसर उपचार” जैसे विज्ञापन आसानी से दिखाई देते हैं।

सीमापार डिजिटल मीडिया में कानून प्रवर्तन की चुनौतियाँ

  • क्षेत्राधिकार संबंधी सीमाएं: प्लेटफॉर्म विदेशों से विज्ञापन नीति निर्णयों का संचालन और प्रबंधन करते हैं और भारतीय नियामक आसानी से जवाबदेही लागू नहीं कर सकते हैं।
    • उदाहरण: भारत में दिखने वाले विज्ञापनों का संचालन अक्सर अमेरिका से होता है।
  • निर्णय लेने वालों तक कानूनी पहुँच का अभाव:  विज्ञापन नीति प्रबंधक भारत के बाहर स्थित होते हैं, अतः कानूनी जवाबदेही तय करना कठिन हो जाता है।
  • कॉरपोरेट संरचना द्वारा दायित्व से बचाव: भारतीय सहायक कंपनियाँ कहती हैं कि वे प्लेटफॉर्म की मालिक या संचालक नहीं हैं और सारी जिम्मेदारी विदेशी मूल कंपनी पर डाल देती हैं।
  • एल्गोरिदमिक लक्ष्य निर्धारण से निगरानी कठिन:  विज्ञापन गतिशील रूप से बदलते रहते हैं, जिससे निगरानी, साक्ष्य संग्रह और हटाने की प्रक्रिया जटिल हो जाती है।
    • उदाहरण: “हर बीमारी का इलाज” बताने वाले इन्फ्लुएंसर या कथावाचक के वीडियो स्वतः यूजर फीड में आते रहते हैं।
  • शक्ति असंतुलन और आर्थिक निर्भरता:  भारत की डिजिटल पारिस्थितिकी पर निर्भरता नियामक शक्ति को कमजोर बनाती है, जिससे प्रभावी प्रवर्तन कठिन हो जाता है।

निष्कर्ष

सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा हेतु भारत को प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई से आगे बढ़कर दायित्व-आधारित प्रवर्तन अपनाना होगा। डिजिटल प्लेटफॉर्मों को केवल मध्यस्थ नहीं बल्कि प्रकाशक के रूप में मान्यता देनी चाहिए। DMRA उल्लंघन को मध्यस्थ प्रतिरक्षा की समाप्ति और प्रबंधकीय कर्मियों के आपराधिक अभियोजन से जोड़ना, डिजिटल प्रशासन को संविधान प्रदत्त ‘स्वास्थ्य के अधिकार’ के अनुरूप बनाएगा।

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