Q. दादाभाई नौरोजी को अक्सर "ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया" और भारतीय आर्थिक राष्ट्रवाद के जनक के रूप में जाना जाता है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में चर्चा कीजिए कि किस प्रकार उनके राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विचारों ने भारतीय राष्ट्रवाद के उदय की बौद्धिक नींव रखी। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • राजनीतिक विचार और राष्ट्रवाद को आकार देने में उनकी भूमिका।
  • आर्थिक विचार और राष्ट्रवाद को आकार देने में उनकी भूमिका।
  • सामाजिक विचार और राष्ट्रवाद को आकार देने में उनकी भूमिका।

उत्तर

दादाभाई नौरोजी, जिन्हें “भारत के ग्रैंड ओल्ड मैन” के रूप में जाना जाता है, ने नैतिक दृढ़ता और आर्थिक तर्कशक्ति के माध्यम से औपनिवेशिक शोषण को जनता के समक्ष लेकर आये उनके राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विचारों ने बिखरे असंतोष को संगठित राष्ट्रवाद में परिवर्तित कर दिया, जिससे भारत के स्वतंत्रता संग्राम की वैचारिक नींव पड़ी।

राजनीतिक विचार और राष्ट्रवाद के निर्माण में दादाभाई नौरोजी की भूमिका

  • स्वशासन की वकालत:  दादाभाई नौरोजी पहले भारतीय थे, जिन्होंने यह कहा कि भारतीयों को स्वयं शासन करना चाहिए, चाहे ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर हो या उससे बाहर।
  • ब्रिटिश संसद में प्रतिनिधित्व: वर्ष 1892 में ब्रिटिश संसद के लिए निर्वाचित होने वाले पहले भारतीय बनकर उन्होंने भारत की राजनीतिक चेतना और अंतरराष्ट्रीय वैधता को नया स्वरूप दिया।
  • उदार संवैधानिकवाद:  उन्होंने याचिकाओं, बहसों और संवाद के माध्यम से सुधार का मार्ग अपनाया, जिससे कांग्रेस की प्रारंभिक राजनीति तर्कसंगत विरोध और एकता पर आधारित रही।
  • राजनीतिक शिक्षा:  अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से उन्होंने भारतीयों में राजनीतिक जागरूकता और संगठनात्मक भावना को बढ़ावा दिया।

आर्थिक विचार और राष्ट्रवाद के निर्माण में भूमिका

  • धन-निकासी सिद्धांत:  उन्होंने ब्रिटिश नीतियों द्वारा भारत से संपत्ति की निकासी का विश्लेषण कर औपनिवेशिक शासन के आर्थिक शोषण को उजागर किया।
    • उदाहरण: अपनी रचनाओं “द वॉयस ऑफ इंडिया” और “द वांट्स एंड मीन्स ऑफ इंडिया”(वर्ष 1870)” में उन्होंने बताया कि कैसे ब्रिटिश शासन भारत की संपत्ति को बाहर ले जा रहा था।
  • आर्थिक राष्ट्रवाद: औपनिवेशिक अन्याय को उजागर कर उन्होंने तिलक, एम.जी. रानाडे और गांधी जैसे नेताओं को यह समझाया कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं बल्कि आर्थिक आवश्यकता भी है।
  • वित्तीय विकेंद्रीकरण:  उन्होंने भारतीयों को सार्वजनिक व्यय पर अधिक नियंत्रण और वित्तीय स्वायत्तता की वकालत की, जिससे राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता के बीच संबंध मजबूत हुआ।
  • प्रमाण-आधारित आलोचना:  ब्रिटिश आँकड़ों और रिपोर्टों का उपयोग कर उन्होंने भारतीय तर्कों को वैज्ञानिक और अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता प्रदान की।

सामाजिक विचार और राष्ट्रवाद के निर्माण में भूमिका

  • शिक्षा और सामाजिक सुधार को बढ़ावा: उन्होंने सर्व शिक्षा और महिलाओं के सशक्तीकरण का समर्थन किया, जिससे एक सामाजिक रूप से जागरूक नागरिक समाज का निर्माण हुआ।
    • उदाहरण: उन्होंने “रस्त गोफ्तार” की स्थापना महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक सुधार के प्रचार हेतु की।
  • धार्मिक और सांस्कृतिक समावेशिता:  उनका धर्मनिरपेक्ष और सुधारवादी दृष्टिकोण जाति और संप्रदाय से परे एकजुटता को बढ़ावा देता था, जिससे राष्ट्रीय एकता को बल मिला।
  • नैतिक राष्ट्रवाद की नींव:  उन्होंने राष्ट्रवाद को न्याय, समानता और मानव गरिमा के नैतिक सिद्धांतों पर आधारित किया, जो आगे चलकर गांधी जैसे नेताओं की नैतिक राजनीति का आधार बना।
  • सामाजिक उत्थान हेतु संस्थाओं की स्थापना:  उन्होंने पारसी फंड और बॉम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन जैसी संस्थाओं की स्थापना की, जिससे समानता और नागरिक जिम्मेदारी को बढ़ावा मिला।

निष्कर्ष

दादाभाई नौरोजी ने भारत के नैतिक आक्रोश को वैचारिक दृढ़ता और तर्कसंगत राष्ट्रवाद में परिवर्तित किया। उनके राजनीतिक दृष्टिकोण, आर्थिक विश्लेषण और सामाजिक सुधारों ने स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी। उनका योगदान भारत की राष्ट्रीय चेतना का अंतरात्मा स्वरूप बन गया, जहाँ सत्य, न्याय और आत्मनिर्भरता स्वतंत्रता के तीन स्तंभ बने।

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