Q. सुशांत रोहिल्ला मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय के आलोक में विश्लेषण कीजिए कि किस प्रकार कठोर उपस्थिति नीतियां निष्पक्षता और प्राकृतिक न्याय के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं। उपस्थिति और अनुशासनात्मक नीतियों को लागू करने के लिए छात्र-केंद्रित और जवाबदेह ढाँचा बनाने के लिए विश्वविद्यालय क्या उपाय अपना सकते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • कठोर उपस्थिति नीतियों के माध्यम से संवैधानिक निष्पक्षता और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन।
  • उपस्थिति नीतियाँ अभी भी क्यों आवश्यक हैं।
  • छात्र-केंद्रित और जवाबदेह विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए सुधार।

उत्तर

सुशांत रोहिल्ला मामला इस बात का दुखद उदाहरण है कि जब उपस्थिति नियमों को सहयोग के बजाय दंड के रूप में लागू किया जाता है, तो यह किस प्रकार गंभीर परिणाम उत्पन्न कर सकता है। इस संदर्भ में, दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि बिना सूचना या परामर्श के कठोर उपस्थिति प्रवर्तन संवैधानिक निष्पक्षता और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
इस निर्णय ने स्थापित किया कि शैक्षणिक स्वायत्तता छात्रों की गरिमा, विधिसम्मत प्रक्रिया और मानसिक कल्याण  पर अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के तहत हावी नहीं हो सकती।

संवैधानिक निष्पक्षता और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन

  • मनमानी बनाम अनुच्छेद 14: कठोर और स्वतः लागू डिबारमेंट (Debarment) नीति एक-समान नियम लागू करती है, जो व्यक्तिगत परिस्थितियों का आकलन नहीं करती यह गैर-मनमानी के सिद्धांत का उल्लंघन है।
    • उदाहरण: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुशांत रोहिल्ला केस में इस प्रकार की यांत्रिक डिबारमेंट को असंवैधानिक घोषित किया।
  • सुनवाई का अधिकार: छात्रों को बिना पूर्व सूचना, परामर्श या स्पष्टीकरण का अवसर दिए कक्षाओं से वंचित कर दिया गया।
    • उदाहरण: न्यायालय ने निर्देश दिया कि किसी भी डिबारमेंट से पहले नोटिस और प्रतिनिधित्व का अवसर देना आवश्यक है।
  • गरिमा और मानसिक कल्याण (अनुच्छेद 21): दंडात्मक निष्कासन तनाव बढ़ाता है और छात्र की गरिमा को ठेस पहुँचाता है, जिससे सम्मानजनक जीवन के अधिकार पर प्रभाव पड़ता है।
  • अपारदर्शिता और प्रशासनिक दुरुपयोग: अस्पष्ट उपस्थिति रिकॉर्ड मनमानी निर्णयों को बढ़ावा देते हैं।
  • वैध शैक्षणिक सहभागिता की अनदेखी:  कठोर नियम कक्षा के बाहर के शिक्षण (जैसे अनुसंधान या इंटर्नशिप) को मान्यता नहीं देते।
    • उदाहरण: न्यायालय ने कहा कि अनुभवात्मक शिक्षा को उपस्थिति में शामिल किया जाना चाहिए।

उपस्थिति नीतियाँ अब भी क्यों आवश्यक हैं

  • शैक्षणिक सहभागिता और कक्षा शिक्षण सुनिश्चित करना: यह संवाद, समूह अध्ययन और सतत शैक्षणिक जुड़ाव को बढ़ावा देता है, जिसे केवल स्व-अध्ययन से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) “सक्रिय और सहभागितापूर्ण शिक्षण वातावरण” पर बल देती है, जिसके लिए नियमित उपस्थिति आवश्यक है।
  • व्यावसायिक अनुशासन और समय प्रबंधन का विकास: उपस्थिति नियम समय की पाबंदी और उत्तरदायित्व की भावना विकसित करते हैं जो पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन में आवश्यक हैं।
    • उदाहरण: भारतीय बार काउंसिल (BCI) ने न्यूनतम उपस्थिति को अनिवार्य किया है ताकि छात्र पेशेवर व्यवहार की आदत विकसित करें।
  •  ‘फ्री राइडिंग’ रोकना और शैक्षणिक मानक बनाए रखना: यह उन छात्रों को हतोत्साहित करता है जो भाग लिए बिना समूह कार्य या चर्चाओं से लाभ लेना चाहते हैं।
    • उदाहरण: NIRF रैंक वाले शीर्ष विधि विद्यालय उपस्थिति को सेमिनार सहभागिता और आंतरिक मूल्यांकन से जोड़ते हैं ताकि शैक्षणिक ईमानदारी बनी रहे।
  • सतत मूल्यांकन और मार्गदर्शन को समर्थन देना: नियमित उपस्थिति से शिक्षक छात्रों की प्रगति पर नजर रख सकते हैं और तनाव या सीखने की कठिनाइयों का समय रहते समाधान कर सकते हैं।
    • उदाहरण: UGC (वर्ष 2003) ने निरंतर आंतरिक मूल्यांकन को आवश्यक बताया है, जो नियमित उपस्थिति पर निर्भर करता है।
  • छात्र सुरक्षा और संस्थागत जिम्मेदारी को सशक्त बनाना: उपस्थिति रिकॉर्ड विश्वविद्यालयों को छात्रों की स्थिति और मानसिक स्वास्थ्य पर निगरानी रखने में मदद करता है तथा अनुपस्थिति की स्थिति में समय पर हस्तक्षेप सुनिश्चित करता है।

सुधार: छात्र-केंद्रित और जवाबदेह ढाँचा बनाना

  • डिबारमेंट से पहले विधिसम्मत प्रक्रिया: उपस्थिति की कमी पर दंडात्मक कार्रवाई के बजाय काउंसलिंग, शैक्षणिक सहयोग और सुनवाई होनी चाहिए।
    • उदाहरण: उच्च न्यायालय ने परामर्श और प्रतिनिधित्व को अनिवार्य किया।
  • पारदर्शी उपस्थिति निगरानी: विश्वविद्यालयों को नियमित उपस्थिति आँकड़े प्रकाशित करने चाहिए ताकि छात्रों को “अचानक डिबारमेंट” का सामना न करना पड़े।
    • उदाहरण: न्यायालय ने साप्ताहिक उपस्थिति प्रकटीकरण और मासिक कमी अलर्ट जारी करने का निर्देश दिया।
  • कक्षा से बाहर के शैक्षणिक कार्यों की गणना: इंटर्नशिप, अनुसंधान जैसी अनुभवात्मक शिक्षाओं को उपस्थिति में शामिल किया जाना चाहिए।
  • संस्थागत जवाबदेही और शिकायत निवारण: अनुशासनात्मक निर्णय कारणयुक्त (Reasoned) हों, अपील योग्य हों, और छात्र प्रतिनिधित्व वाली समितियों के माध्यम से पारित हों।
  • स्वास्थ्य संबंधी लचीलापन: चिकित्सकीय या मानसिक स्वास्थ्य कारणों से अनुपस्थिति के मामलों में अतिरिक्त कक्षाओं या असाइनमेंट का अवसर दिया जाना चाहिए।
    • उदाहरण: विश्वविद्यालयों को किसी भी दंड से पहले चिकित्सा/मानसिक स्थिति का रिकॉर्ड रखना चाहिए।

निष्कर्ष

सुशांत  रोहिल्ला निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि उपस्थिति केवल एक संख्या नहीं है यह गरिमा, निष्पक्षता और विधिसम्मत प्रक्रिया का प्रश्न है। विश्वविद्यालयों को दंडात्मक कठोरता से सहायक शैक्षणिक परिवेश की ओर बढ़ना चाहिए, जहाँ सहभागिता को प्रोत्साहित किया जाए, मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा की जाए, और शिक्षा का उद्देश्य नियंत्रण नहीं, बल्कि सीखना हो।

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