Q. डिजिटल पशुधन पहचान गरीबी कम करने का एक साधन बन सकती है। भारत में छोटे और सीमांत पशुधन-आश्रित परिवारों के संदर्भ में कथन का मूल्यांकन कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • डिजिटल पशुधन पहचान कैसे गरीबी को कम करती है।
  • डिजिटल पशुधन पहचान का उपयोग करने में चुनौतियाँ।

उत्तर

भारत के पास 535 मिलियन से अधिक पशुधन है, और कई ग्रामीण परिवारों के लिए कुछ जानवर ही उनकी एकमात्र उत्पादक संपत्ति होते हैं। नेशनल डिजिटल लाइवस्टॉक मिशन के तहत भारत पशुधन प्लेटफॉर्म के माध्यम से डिजिटल पशुधन आईडी स्वास्थ्य, बीमा और व्यापार रिकॉर्ड को जोड़ती है, जिससे बेहतर कीमतें और बाजार तक पहुँच संभव होती है और पशुधन डेटा को गरीबी कम करने वाली आय में परिवर्तित किया जा सकता है।

कैसे डिजिटल पशुधन पहचान गरीबी को कम करती है

  • पशु स्वास्थ्य और उत्पादकता में सुधार:  डिजिटल आईडी टीकाकरण, उपचार, प्रजनन चक्र को ट्रैक करती है, जिससे रोग-हानि कम होती है और दूध उत्पादन बढ़ता है।
    • उदाहरण: NDLM FMD और ब्रुसेलोसिस के टीकाकरण को डिजिटल रूप से रिकॉर्ड करता है, जिससे रोग प्रकोप से आय-हानि को रोका जाता है।
  • बाजार तक पहुँच और बेहतर मूल्य खोज: ट्रेसबिलिटी खरीदारों का भरोसा बढ़ाती है और उच्च-गुणवत्ता वाले उत्पादों के लिए प्रीमियम मूल्य सुनिश्चित करती है।
    • उदाहरण: ट्रेसबिलिटी सुविधाएँ घी और पश्मीना जैसे उत्पादों को निर्यात प्रमाणन में मदद कर रही हैं।
  • ऋण और बीमा तक तेज़ पहुँच: डिजिटल रिकॉर्ड कागजी कार्य को कम करते हैं, जिससे पशु बैंकों के लिए मान्यता प्राप्त संपत्ति बन जाते हैं।
    • उदाहरण: प्रत्येक टैग किया हुआ पशु बीमा और ऋण से जुड़ा होता है, जिससे दावों का निपटान तेज़ी से होता है।
  • व्यापार के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म से एकीकरण: किसान भारत पशुधन प्लेटफॉर्म पर पशु खरीद-फरोख्त कर सकते हैं, जिससे बिचौलियों पर निर्भरता घटती है।
    • उदाहरण: 9 करोड़ से अधिक पशुपालक पहले से ही प्लेटफॉर्म पर लेन-देन कर रहे हैं।
  • छोटे जंतुओं वाले सबसे गरीब परिवारों का समर्थन: इसमें बकरी और भेड़ शामिल हैं, जो भूमिहीन एवं छोटे किसानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
    • उदाहरण: भारत की बड़ी बकरी-भेड़ आबादी का डिजिटल पंजीकरण हो रहा है, जिससे सबसे गरीब परिवारों की आय सुरक्षित हो रही है।

डिजिटल पशुधन पहचान के उपयोग में चुनौतियाँ

  • पैरा-वेट और किसानों में डिजिटल साक्षरता की कमी: अपर्याप्त प्रशिक्षण प्लेटफॉर्म को सशक्तिकरण के बजाय केवल डेटा-एंट्री उपकरण में बदल सकता है।
    • उदाहरण: पैरा-वेट्स में डिजिटल कौशल की कमी है, जिससे निम्न-गुणवत्ता डेटा का जोखिम बनता है।
  • रिकॉर्ड-कीपिंग बनाम निर्णय-निर्माण का जोखिम: डेटा एकत्र तो हो सकता है, पर योजना निर्माण के लिए उसका विश्लेषण न किया जाए।
    • उदाहरण: इसका मूल्य इस बात पर निर्भर है कि डेटा सेट को रोग पूर्वानुमान और नीति-निर्णय में बदला जा सके।
  • संस्थागत सीमाएँ: धीमी प्रशासनिक प्रक्रियाएँ अपनाने में देरी करती हैं, क्योंकि प्लेटफॉर्म की प्रभावशीलता जमीनी स्तर पर प्रशिक्षित जनशक्ति पर निर्भर है।
  • दूरदराज़ क्षेत्रों में असमान डिजिटल पहुँच: कनेक्टिविटी के अंतर वास्तविक-समय अपडेट में बाधा डालते हैं, विशेषकर दूरस्थ क्षेत्रों में जहाँ छोटे जंतुओं के मालिकों के पास विश्वसनीय डिजिटल संरचना नहीं है।
  • व्यवहारिक प्रतिरोध:  पारंपरिक तरीकों के आदी किसान डिजिटल टैगिंग अपनाने में झिझक सकते हैं।

निष्कर्ष

डिजिटल पशुधन पहचान को स्थायी गरीबी-उन्मूलन में बदलने के लिए भारत को फील्ड-स्तर प्रशिक्षण, बीमा-ऋण एकीकरण और वास्तविक-समय रोग विश्लेषण पर ध्यान देना होगा।
डिजिटल पहुँच सुदृढ़ करना, पैरा-वेट क्षमता बढ़ाना, और यह सुनिश्चित करना कि डेटा केवल रिकॉर्ड नहीं बल्कि निर्णय-निर्माण में सक्रिय रूप से उपयोग हो पशु आईडी को रिकॉर्ड-कीपिंग से ग्रामीण मूल्य सृजन का साधन बना देगा।

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