प्रश्न की मुख्य माँग
- एकदलीय प्रभुत्व ने संघीय ढाँचे पर कैसे दबाव उत्पन्न किया है (वित्तीय केंद्रीकरण + संस्थागत तंत्र)।
- तनाव केवल एकदलीय प्रभुत्व के कारण क्यों नहीं हो सकता।
- सहकारी संघवाद के समाधान।
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उत्तर
गठबंधन युग की समायोजन राजनीति ने केंद्र और राज्यों के बीच वार्ता, शक्ति-साझाकरण तथा संस्थागत संवाद को संभव बनाया। किंतु एक-दलीय प्रभुत्व के उभरने से यह चिंता पुनर्जीवित हुई है कि भारत की संघीय संरचना पर दबाव बढ़ रहा है, विशेषकर वित्तीय केंद्रीकरण के विस्तार और सहकारी सहभागिता की संस्थागत व्यवस्थाओं के कमजोर पड़ने के कारण।
एकल-दलीय आधिपत्य ने संघीय संरचना को किस प्रकार प्रभावित किया है
- GST संरचना के माध्यम से वित्तीय केंद्रीकरण: GST ने राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता को कमजोर किया, क्योंकि निर्णय-निर्माण का नियंत्रण केंद्र की ओर केंद्रित है।
- उदाहरण: GST परिषद की मतदान संरचना केंद्र को राज्यों पर वरीयता देने में सक्षम बनाती है।
- सेस और सरचार्ज में वृद्धि से कर-वितरण का क्षरण: गैर-विभाज्य सेस के बढ़ने से विभाज्य पूल कम हुआ है, जिससे अविश्वास गहरा हुआ है।
- केंद्र–राज्य वार्ता के संस्थागत मंचों का क्षरण: योजना आयोग का उन्मूलन एक प्रमुख सहकारी मंच को समाप्त कर चुका है।
- उदाहरण: वर्ष 2014 के बाद, वित्त मंत्रालय केंद्रीय योजना आवंटन तय करता है, जिससे संस्थागत परामर्श घट गया है।
- वित्त आयोग के सूत्रों से उत्पन्न पक्षपात की धारणा: क्षैतिज कर-वितरण के मानदंडों को उच्च-प्रदर्शन करने वाले राज्यों को “दंडित” करने वाला माना गया है।
- उदाहरण: दक्षिणी राज्यों ने तर्क दिया कि व्युत्क्रम-आय फार्मूला और जनसंख्या भार उत्तरी राज्यों को असमान रूप से लाभ पहुँचाते हैं।
- केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) में केंद्रीय प्रभुत्व: केंद्र CSS के डिजाइन और शर्तीय वित्तपोषण का उपयोग करके राज्य सूची के विषयों पर भी नीतिगत प्रभाव बढ़ाता है।
तनाव केवल एक पार्टी के प्रभुत्व के कारण क्यों नहीं हो सकता है
- संरचनात्मक क्षेत्रीय असमानता: वित्तीय विवाद लंबे समय से चले आ रहे क्षेत्रीय आय अंतर से उत्पन्न होते हैं।
- उदाहरण: गठबंधन काल में भी निर्धन राज्यों को वित्त आयोग के अनुसार अधिक अंतरण की आवश्यकता थी।
- GST एक सर्वसम्मितिपूर्ण ‘बड़ा सौदा’ था: राज्यों ने एकीकृत बाजार के लिए स्वेच्छा से कर-संप्रभुता का एक भाग छोड़ा।
- कांग्रेस युग का केंद्रीकरण: योजना आयोग द्वारा संचालित कमांड अर्थव्यवस्था ने क्षेत्रीय नियोजन में सीमित स्वायत्तता छोड़ दी।
- विकासगत आवश्यकताओं से उत्पन्न टकराव: तनाव अक्सर संसाधन कमी या आपदा राहत की माँगों से भी उत्पन्न होते हैं।
- क्षेत्रीय दलों का सतत् प्रभाव: केंद्र में गठबंधन संरचना में शक्तिशाली क्षेत्रीय दल मौजूद हैं।
- उदाहरण: TDP और JD(U) विशेष पैकेज या बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण जैसे मुद्दों पर सौदेबाजी को प्रभावित करते रहते हैं।
सहकारी संघवाद के लिए समाधान
- संरचित परामर्श मंच का पुनर्निर्माण: एक स्थायी “अंतर-सरकारी परिषद 2.0” का निर्माण।
- उदाहरण: ऐसा पुनर्कल्पित समन्वय निकाय CSS आवंटन को पारदर्शी रूप से योजनाबद्ध कर सकता है।
- GST परिषद के निर्णय नियमों में सुधार: निर्णय से पहले अनिवार्य विचार-विमर्श; राज्यों के मतदान भार में वृद्धि।
- उदाहरण: GST के प्रारंभिक वर्षों की तरह सर्वसम्मति-प्रथम सिद्धांत को अपनाना।
- सेस और सरचार्ज पर सीमा व तार्किकता: संवैधानिक सीमा या संसदीय आवधिक समीक्षा का प्रावधान।
- उदाहरण: विश्वास बहाल करने के लिए उपकर राजस्व के एक हिस्से को विभाज्य पूल में लाना।
- वित्त आयोग के सूत्रों पर पुनर्विचार करना: समानता + दक्षता + जनसांख्यिकीय लाभांश के मानकों को शामिल करना।
- राज्यों की राजकोषीय क्षमता को मजबूत करना: दीर्घकालिक बुनियादी ढाँचा अनुदान प्रदान करना, न कि योजनाएँ।
- उदाहरण: कलैयारासन द्वारा रेखांकित दक्षिणी-उत्तरी असमानताओं को कम करने के लिए रोजगार सृजन हेतु उत्पादक निवेश सहायता।
भारत के संघीय तनाव केवल राजनीतिक प्रभुत्व से उत्पन्न नहीं हैं, बल्कि गहरी संरचनात्मक असमानताओं और कमजोर समन्वय मंचों से भी जुड़े हैं। संस्थागत संवाद, न्यायसंगत वित्तीय संरचना और वास्तविक सहकारी संघवाद के प्रति नए सिरे से प्रतिबद्धता आवश्यक है ताकि केंद्रीय सत्ता संविधान द्वारा संतुलित संघीय भावना को कमजोर न करे।
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