प्रश्न की मुख्य माँग
- सैन्य और नागरिक संस्थाओं के बीच शक्ति संतुलन में बदलाव।
- संशोधन ने पाकिस्तान की संवैधानिक व्यवस्था को कैसे नया रूप दिया।
|
उत्तर
पाकिस्तान का 27वाँ संवैधानिक संशोधन उसके संवैधानिक विकास-पथ में एक निर्णायक मोड़ का संकेत देता है। यह संशोधन लोकतांत्रिक संस्थाओं से शक्ति को विमुक्त कर उभरती सैन्य संरचना के केंद्रीकृत नियंत्रण में स्थानांतरित करता है। सेना प्रमुख को आजीवन प्रतिरक्षा और एकीकृत कमान प्रदान करके यह संशोधन पाकिस्तान की शासन-व्यवस्था को उदार संवैधानिक ढाँचे से हटाकर एक सशक्त सैन्यीकृत शासन मॉडल की ओर मोड़ देता है।
सैन्य एवं नागरिक संस्थाओं के बीच शक्ति-संतुलन में परिवर्तन
- सैन्य सर्वोच्चता का संवैधीकरण: संशोधन सेना प्रमुख को एक सुरक्षा प्रमुख से ऊपर उठाकर सभी सशस्त्र सेवाओं पर संवैधानिक रूप से संरक्षित सर्वोच्च प्राधिकरण बना देता है।
- उदाहरण: रक्षा बलों का प्रमुख (Chief of Defence Forces) नई संवैधानिक संरचना में थलसेना, नौसेना और वायुसेना का एकीकृत कमांड होगा।
- आजीवन प्रतिरक्षा से नागरिक जवाबदेही का कमजोर होना: राष्ट्रपति और सेना प्रमुख को आजीवन प्रतिरक्षा देने से सैन्य नेतृत्व पर किसी भी प्रकार की नागरिक निगरानी या कानूनी जाँच समाप्त हो जाती है।
- उदाहरण: आजीवन पद, विशेषाधिकार और अभियोजन से सुरक्षा को “वर्दी में सीजर” कहा गया है।
- नागरिक संस्थाओं का अधीनस्थ हो जाना: वास्तविक अधिकार सैन्य कमान-संरचनाओं में स्थानांतरित होने से संसद एक प्रतीकात्मक संस्था बन जाती है; कार्यपालिका भी सैन्य पदानुक्रम के नीचे दब जाती है।
- सैन्य के राजनीतिक–आर्थिक प्रभुत्व का विस्तार: यह संशोधन पाकिस्तान की राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर सेना के दीर्घकालिक प्रभुत्व को मजबूत करता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा संकट के आधार पर सैन्यीकरण का औचित्य: विद्रोहों और बाहरी तनावों का हवाला देकर सेना स्वयं को एकमात्र स्थिरकारी शक्ति घोषित करती है, जिससे नागरिक शासन और अधिक हाशिए पर जाता है।
संशोधन पाकिस्तान के संवैधानिक ढाँचे को कैसे परिवर्तित करता है
- न्यायिक पुनरावलोकन का विनाश: संशोधन न्यायपालिका की संवैधानिक संशोधनों की समीक्षा-शक्ति समाप्त कर देता है, जिससे शक्तियों का पृथक्करण ढह जाता है।
- उदाहरण: संशोधनों पर न्यायालयों को प्रश्न उठाने से रोकने वाली धारा को “सबसे घातक” बताया गया है, क्योंकि यह न्यायिक सर्वोच्चता समाप्त करती है।
- नियंत्रित न्यायिक तंत्र: महत्त्वपूर्ण संवैधानिक मामलों को सर्वोच्च न्यायालय से हटाकर अन्य मंचों पर भेजा जाता है, जिससे न्यायपालिका कमजोर और नियंत्रित बनती है।
- उदाहरण: एक नया संघीय संवैधानिक न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार का स्थान लेगा, जिससे कार्यपालिका-सैन्य नियंत्रण संभव होगा।
- संविधान का सैन्यीकृत चार्टर में रूपांतरण: वर्ष 1973 का उदारवादी संविधान एक पदानुक्रमित, कमान-आधारित ढाँचे में बदल जाता है, जो सैन्य वैचारिकी को प्रतिबिंबित करता है।
- उदाहरण: “बैराक़्स कोड” एक उदार सामाजिक अनुबंध की जगह ले लेता है, जिसे “क्लासिकल संवैधानिकवाद का अंत” कहा गया है।
- विधि के शासन और नियंत्रण–संतुलन का क्षरण: आजीवन प्रतिरक्षा और न्यायिक निगरानी के अभाव में संवैधानिकता ध्वस्त होती है तथा सैन्य नेतृत्व वैधता का निर्धारक बन जाता है।
- प्रेटोरियन राज्य का औपचारीकरण: सेना एक संरक्षक की भूमिका छोड़कर संप्रभु सत्ता बन जाती है—यह पूर्ण सैन्य प्रभुत्व का संस्थागत रूप है।
निष्कर्ष
पाकिस्तान के संवैधानिक पतन को उलटने के लिए न्यायिक पुनरावलोकन की बहाली, संसद का पुनः सशक्तीकरण और सैन्य पर नागरिक सर्वोच्चता की पुनर्स्थापना आवश्यक है। यदि ये सुरक्षा-तंत्र पुनर्निर्मित नहीं किए गए, तो 27वाँ संशोधन लोकतांत्रिक क्षरण का स्थायी प्रतीक बन जाएगा, जहाँ संवैधानिक सहमति को सैन्य आदेश और दमनकारी कमान से प्रतिस्थापित कर दिया जाएगा।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments