Q. [साप्ताहिक निबंध] सच्चा शासन पहले सुनता है, फिर नेतृत्व करता है। (1200 शब्द)

निबंध लिखने का प्रारूप

प्रस्तावना

  • किसी प्रेरक प्रसंग से  उत्तर की शुरुआत कीजिए; निबंध में  श्रवण / सुनने  को  केंद्रीय  दृष्टिकोण  के रूप   में स्थापित करें। 

मुख्य भाग:

  • शासन का अर्थ है नेतृत्व, आदेश नहीं
    • उत्तरदायित्व  की व्याख्या कीजिए; बताएँ कि किस प्रकार सुनने  से अधिकार वैधता में परिवर्तित हो जाता है(अशोक का उदाहरण दीजिए)। 
  • प्रणालियों से परे सुनना: एक सार्वभौमिक सिद्धांत 
    • यह बताइये कि सुनना ही  राजतंत्रों, लोकतंत्रों और सत्तावादी राज्यों (चीन के बेयरफुट डॉक्टर्स, सिंगापुर नगर परिषद) में शासन का आधार है। 
  • संस्थागत सुनवाई: जब राज्य शासन प्रणाली में फीडबैक का निर्माण करते हैं
    • ग्राम सभा, संसदीय समितियां, RTI, सार्वजनिक परामर्श जैसे औपचारिक मार्गों का विस्तृत विवरण दीजिए जो नीति में सुनवाई को शामिल करते हैं।
  • डेटा का अनुसरण करना: प्रौद्योगिकी एक सेतु के रूप में 
    • डैशबोर्ड, MyGov, CPGRAMS, आकांक्षी जिलों पर चर्चा कीजिए; डेटा-संचालित समानुभूति और बहु-हितधारक सहभागिता पर बल दीजिए। 
  • जब सुनने या श्रवण करने से स्थायी रूपांतरण होता है
    • ठोस परिणाम अर्जित करने के लिए अवनीश शरण के संगी /साँगी  एक्सप्रेस(आपातकालीन चिकित्सा सेवा) और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का उद्धरण दीजिए। 
  •  श्रवण न करने की कीमत
    • कृषि कानूनों की वापसी और CAA विरोध प्रदर्शनों पर प्रकाश डालिए; विश्वास का क्षरण और नीतिगत विफलता को रेखांकित कीजिए। 
  • नौकरशाह मुख्य श्रोता के रूप में
    • अग्रणी पंक्ति के लोक सेवकों को अपने मत को कार्रवाई में बदलते हुए दिखाएं; विनम्रता और जमीनी स्तर पर सहभागिता पर बल  दीजिए। 
  • चुनौतियाँ: लोकलुभावनवाद, विखंडन, डिजिटल विभाजन
    • प्रदर्शनात्मक श्रवण, बहुसंख्यकवाद, अतिभारित परामर्श और तकनीक बहिष्करण के खतरों का विश्लेषण कीजिए। 
  • बेहतर श्रवण क्षमता के लिए सहायक तत्व
    • गहन विकेन्द्रीकरण, सुदृढ़ शिकायत निवारण (CPGRAMS) और समावेशी तकनीकी प्लेटफॉर्म (MyGov, ADP डैशबोर्ड) का प्रस्ताव कीजिए। 

निष्कर्ष

  • श्रवण को एक रणनीतिक, नैतिक अनिवार्यता के रूप में पुनः पुष्ट कीजिए; 3Cs (संपर्क, सहयोग, करुणा) और साइमन सिनेक(SimonSinek) के उद्धरण को लिखिए। 

उत्तर

प्रस्तावना

हरियाणा के एक छोटे से गांव में आरती नाम की एक बुजुर्ग  अध्यापिका ने एक अजीब बात नोटिस की। प्रत्येक वर्ष दाखिले के समय उनकी कक्षा में लड़कों की संख्या स्थिर रहती , लेकिन लड़कियों की संख्या  लगातार घटती जाती । उन्होंने इस बात को संज्ञान लेने, शिकायत करने, व फटकार लगाने या सुधार करने में शीघ्रता नहीं दिखाई। इसके बजाय, उन्होंने सुनने का निर्णय  लिया । शांत संवाद के माध्यम से पता चला कि दहेज की चिंता, सामाजिक दबाव और पुत्र वरीयता जैसी समस्याएं  है। उन्होंने निर्णयात्मकता के बजाय सहानुभूति के साथ इन मुद्दों को सामुदायिक बैठकों में उठाया व परिवारों को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा और आपसी विश्वास का निर्माण किया। कुछ ही वर्षों में लड़कियां   फिर से  कक्षाओं में  लौट आईं व उनके माता-पिता सशक्त हुए एवं उन पर दबाव नहीं डाला गया। आरती ने निर्देश देकर नेतृत्व नहीं किया, बल्कि पहले श्रवण किया फिर नेतृत्व किया। इस प्रकार यही वास्तविक  शासन है। 

यह कहानी  एक गहरी वास्तविकता को उजागर करता है: श्रवण करना शासन के लिए सहायक नहीं है, बल्कि प्रत्येक चरण – निदान, रचना और वितरण – के लिए आधारभूत तत्व है। यह निबंध इस बात पर प्रकाश डालता है कि श्रवण करना  कोई सामरिक माध्यम  या लोकलुभावन उपकरण नहीं है, बल्कि यह एक मौलिक नैतिक दर्शन और प्रभावी शासन की कार्यात्मक आवश्यकता है। यह शासन तथा सेवा करने, प्रबंधन और परिवर्तन करने के बीच का अंतर है। 

शासन का अर्थ नेतृत्व है, आदेश नहीं

शासन को प्रायः नियमों, आदेशों और संस्थाओं की संरचना के रूप में माना जाता है। किन्तु  इसकी वास्तविक भावना प्रबंधन में निहित है, अर्थात् विनम्रता के साथ सत्ता को धारण करने की क्षमता, तथा आदेश की बजाय सेवा करने की क्षमता। श्रवण करना इस नैतिकता के मूल में है। जो राज्य या नेता अच्छी तरह श्रवण करता है, वह केवल समस्याओं पर प्रतिक्रिया ही नहीं करता, बल्कि वह आवश्यकताओं का अनुमान लगाता है, मानदंडों को अपनाता है, तथा विश्वास को सुदृढ़ करता है। 

चाहे राजतंत्र हो या लोकतंत्र, जनजातीय परिषद हो या नौकरशाही, श्रवण करने से अधिकार वैधता में परिवर्तित हो जाता है। उदाहरण के लिए, अशोक का धम्म विजय से नहीं, बल्कि चिंतन से उत्पन्न हुआ था। उन्होंने दूत भेजे, शिलालेख बनाए तथा राज्य की नीति में विभिन्न आध्यात्मिक लोगों  को आमंत्रित किया। उनकी श्रवण की क्षमता ने न केवल राजनीतिक शासन बल्कि नैतिक नेतृत्व को भी सक्षम बनाया। 

विभिन्न प्रणालियों में श्रवण करना: एक सार्वभौमिक सिद्धांत

वास्तविक शासन राजनीतिक प्रणालियों से परे होता है। सत्तावादी चीन में, 1950 के दशक के दौरान स्थानीय सर्वेक्षणों से यह पता चला कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की भारी कमी है, जिसके बाद गांव स्तर पर “बेयरफुट डॉक्टर्स(barefoot doctor)” मॉडल सामने आया। सिंगापुर में, नगर परिषदें शहरी नियोजन को दिशा देने के लिए नियमित रूप से संवाद और डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से नागरिकों से सुझाव एकत्र करती हैं। ये उदार लोकतंत्र नहीं हैं, फिर भी उनका शासन वहाँ फलता-फूलता है जहाँ श्रवण करने  को संस्थागत रूप दिया जाता है। 

इसलिए श्रवण  केवल लोकतंत्र का पर्याय नहीं है, बल्कि शासन का आधार भी है। यह उन सभी प्रणालियों की जीवन रेखा है जिनका लक्ष्य स्थिरता, प्रगति और न्याय है। वास्तविक शासन में लोगों के साथ सक्रिय सहभागिता, व्यक्तिगत हितों से ऊपर सार्वजनिक हित को प्राथमिकता देना तथा यह सुनिश्चित करना शामिल है कि संस्थागत तंत्र समाज के सबसे कमजोर वर्गों की सेवा करें।

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में श्रवण करना एक संवैधानिक आवश्यकता है। जो सरकारें वास्तव में अपने नागरिकों की बात सुनती हैं, उनकी विश्वसनीयता और सार्वजनिक विश्वास बढ़ता है। जो सरकार ऐसा करने में  विफल रहती हैं, उनकी वैधता और नैतिक प्राधिकार धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं। 

संस्थागत सुनवाई: जब राज्य शासन प्रणाली में फीडबैक का निर्माण करते हैं

श्रेष्ठ  शासन असहमति के फूट पड़ने का इंतजार नहीं करता। यह ऐसे  संरचित माध्यम  बनाता है जिसके जरिए लोगों की बात सुनना  एक सतत व संस्थागत प्रक्रिया बन जाती है। राज्य इसे तब प्राप्त करते हैं  जब वे  शासन की मूल संरचना में सुनने   को शामिल कर देते  हैं। जमीनी स्तर पर, ग्राम सभाएं सहभागी लोकतंत्र के लिए मंच के रूप में कार्य करती हैं, जिससे ग्रामीणों को कल्याणकारी योजनाओं, बजट और विकास संबंधी प्राथमिकताओं पर खुले तौर पर विचार-विमर्श करने में मदद मिलती है, जिससे प्राधिकार का विकेन्द्रीकरण होता है और जवाबदेही बढ़ती है। उच्च स्तर पर, संसदीय बहस, स्थायी समितियाँ तथा प्रश्नकाल व विपक्ष सहित निर्वाचित प्रतिनिधियों को चिंताएँ व्यक्त करने और निर्णयों को प्रभावित करने के लिए औपचारिक तंत्र प्रदान करते हैं। 

इसके अलावा, पर्यावरण मंजूरी या प्रमुख कानून बनाने से पहले सार्वजनिक परामर्श जैसे संस्थागत नवाचार अधिक नियमित हो गए हैं, जो राज्य द्वारा कार्य करने से पहले इसमें संलग्न होने की इच्छा को दर्शाता है। सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) इस यात्रा में मील का पत्थर साबित हुआ। इसने केवल  फाइलें ही नहीं खोलीं, बल्कि नागरिकों के प्रश्न करने और उत्तर पाने के अधिकार को भी मान्यता दी। 

डिजिटल युग में, राज्य सरकारें योजनाओं, शिकायतों और नीतियों पर वास्तविक समय में प्रतिक्रिया करने तथा सुनवाई के दायरे को बढ़ाने के लिए माईगव(MyGov), सीपीजीआरएएमएस(CPGRAMS) और ई-संवाद जैसे पोर्टलों का तेजी से उपयोग कर रही हैं। ये केवल फीडबैक बॉक्स नहीं हैं, बल्कि ये सुनने  /श्रवण वाले राज्य के संकेत हैं। वास्तविक शासन केवल भागीदारी को सहन नहीं करता, बल्कि इसे सक्षम बनाता है और उसकी अपेक्षा करता है। यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को अपनी बात कहने के लिए विनती न करनी पड़े, बल्कि उन्हें बोलने के लिए सशक्त और प्रोत्साहित किया जाए। 

डेटा का अनुसरण  करना: प्रौद्योगिकी एक सेतु है, बाधा नहीं

आज, श्रवण का अर्थ प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना, मौन की व्याख्या करना और व्यवहार को समझना भी है। डेटा, डैशबोर्ड और डिजिटल फीडबैक द्वारा संचालित शासन सुनने के नए तरीके प्रदान करता है। संस्थागत तंत्रों की इस नींव पर निर्माण करते हुए, आधुनिक शासन में सुनवाई के अधिक गतिशील और मात्रात्मक रूपों को शामिल किया गया है, जहां नागरिक सहभागिता को न केवल विचार-विमर्श के माध्यम से बल्कि डिजिटल फीडबैक और वास्तविक समय के आंकड़ों के माध्यम से भी सुदृढ़ किया जाता है। साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण की ओर यह परिवर्तन सेवा वितरण अंतराल की पहचान करने, हस्तक्षेप को प्राथमिकता देने और संसाधनों को अधिक प्रभावी ढंग से आवंटित करने में मदद करता है। माईगव(MyGov) जैसे प्लेटफॉर्म फीडबैक और सुझाव एकत्र करके प्रत्यक्ष रूप से नागरिक भागीदारी को सक्षम बनाते हैं, जिनमें से कई ने नीति डिजाइन और कार्यान्वयन को आकार दिया है, यह दर्शाता है कि डेटा और फीडबैक को सुनना कैसे अधिक उत्तरदायी और समावेशी शासन में परिवर्तित हो सकता है। 

हालाँकि, प्रौद्योगिकी को मानवीय कार्य का स्थान नहीं लेना चाहिए। वास्तविक शासन केवल आंकड़ों को नहीं, बल्कि भावनाओं को भी समझता  है। इसे सिर्फ़ स्वरूप को नहीं, बल्कि पीड़ा को भी समझना चाहिए। इस संबंध में, समावेशी और आवश्यकता आधारित नीति निर्माण सुनिश्चित करने के हेतु शासन को समाज के सभी हितधारकों के साथ निरंतर संवाद करने की आवश्यकता है। नागरिक समाज, उद्योग निकायों, किसान एवं युवा समूहों तथा हाशिए पर पड़े समुदायों को शामिल करने से वास्तविकताओं पर आधारित समाधान निकालने में मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, नीति आयोग के बहु-हितधारक मॉडल ने योजना आयोग का स्थान ले लिया है, जो गैर सरकारी संगठनों, राज्य सरकारों, निजी कंपनियों और शिक्षाविदों से जानकारी प्राप्त कर रहा है। 

जो सरकार सचमुच सुनती है, वह अपने लोगों को समझती है तथा उनकी वास्तविकताओं के अनुसार ढलती है, साथ ही स्थायी वैधता अर्जित करती है। बिना श्रवण शासन एकालाप, दूरस्थ और असंबद्ध बनकर रह जाने का खतरा है। इसके विपरीत, प्रभावी शासन में सदैव संवाद होता है, जो विश्वास और साझा उद्देश्य पर आधारित होता है। 

जब श्रवण करने से स्थायी रूपांतरण होता है

इसलिए, सुनना आदर का कार्य नहीं है; यह परिवर्तन का एक साधन है। छत्तीसगढ़ के कबीरधाम में आईएएस अधिकारी अवनीश शरण ने जनजातीय समुदायों के साथ मिलकर स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच की समस्या का समाधान किया। महंगे आधारभूत ढांचे बनाने के बजाय, उन्होंने संगी एक्सप्रेस नामक बाइक एम्बुलेंस का बेड़ा शुरू किया, जिसे स्थानीय लोगों द्वारा संचालित किया जाता है। इससे लागत में 90% की कमी आई, स्वास्थ्य परिणामों में सुधार हुआ, तथा प्रशासन में विश्वास बढ़ा। यह कोई चतुराईपूर्ण नीति नहीं है, किन्तु यह श्रवण पर आधारित शासन है। 

एक अन्य उदाहरण बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान है, जो क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं, माताओं और शिक्षकों से गहन परामर्श के बाद ही शुरू हुआ। अभियान की सफलता टॉप-डाउन आदेशों में नहीं, बल्कि बॉटम-अप सहानुभूति में निहित थी।

न सुनने की कीमत

जब शासन सुनने में विफल हो जाता है, तो नीति और जनता के बीच की दूरी बढ़ जाती है। परामर्श के बिना लिए गए निर्णय प्रायः जमीनी हकीकत को नजरअंदाज कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अशांति, नीति वापसी या अकुशल कार्यान्वयन होता है। इस प्रकार औचित्यपूर्णता समाप्त हो जाती है। उदाहरण के लिए 2020 के कृषि कानून कागज पर तो नीतिगत रूप से प्रभावी थे, लेकिन जमीनी स्तर पर ये असफल रहे। इस कानून के निर्माण में किसानों से संपर्क नहीं किया गया व उनकी आशंकाओं पर भी ध्यान नहीं दिया गया साथ ही उनका विश्वास भी हासिल नहीं किया जा सका। इसके परिणामस्वरूप एक वर्ष तक विरोध प्रदर्शन चला और अंततः उसे सरकार द्वारा निरस्त कर दिया गया।

इसी प्रकार, सामाजिक अशांति के उदाहरण प्रायः तब उत्पन्न होते हैं जब लोग महसूस करते हैं कि सत्ता में बैठे लोग उनकी बात नहीं सुनते, उन्हें अलग-थलग कर देते हैं या उनकी उपेक्षा करते हैं। जब नागरिकों को लगता है कि उनके सरोकारों पर विचार किए बिना निर्णय लिए जा रहे हैं, तो इससे अलगाव और हताशा पैदा होती है। इससे विरोध प्रदर्शन, आंदोलन और यहां तक ​​कि लंबे समय तक चलने वाले आंदोलन भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, देश भर में हुए CAA-NRC (2019) विरोध प्रदर्शनों ने समानता और बहिष्कार को लेकर गहरी आशंकाओं को दर्शाया। अंततः, इसकी कीमत न केवल नीतिगत विफलता है, बल्कि वैधता का क्षरण, नागरिक अलगाव, तथा लोकतांत्रिक और सामाजिक सामंजस्य का कमजोर होना भी है।

नौकरशाह मुख्य श्रोता के रूप में

शासन की अग्रिम पंक्ति में लोक सेवक  होते हैं, जो नीतियों को वास्तविकता में बदलते हैं। सच्चे नौकरशाह केवल कार्यान्वयनकर्ता नहीं होते बल्कि लोगों की आवश्यकताओं के व्याख्याता होते हैं। जमीन से जुड़े होना उन्हें प्रथम श्रोता और अंतिम प्रत्युत्तरकर्ता बनाती है। एक उत्तरदायी अधिकारी केवल नीति का क्रियान्वयन ही नहीं करता बल्कि वह आवश्यकताओं की भी व्याख्या करता है साथ ही विवादों में मध्यस्थता करता है तथा ऐसे समाधान निर्मित करता है जो वास्तविक वास्तविकताओं को प्रतिबिम्बित करते हैं। उदाहरण के लिए, कबीरधाम में आईएएस अधिकारी अवनीश शरण की संगी एक्सप्रेस पहल (बाइक एम्बुलेंस) आदिवासी समुदायों के साथ जुड़ने से उभरी है। प्रभावी लोक सेवा विनम्रता से सुनती है और निष्ठा से कार्य करती है। ऐसा करने से, यह शासन को दूरस्थ आदेश से जमीनी दायित्व में परिवर्तित कर देता है, तथा यह सुनिश्चित करता है कि राज्य की कार्रवाइयां नागरिकों की आवश्यकताओं के अनुरूप हों। 

श्रवण करने की चुनौतियाँ: सत्ता, लोकलुभावनवाद तथा विशेषाधिकार

यद्यपि लोगों की बात सुनना, बेहतर शासन का आधार है, फिर भी इसमें कई कठिनाइयां भी हैं। तात्कालिकता और लोकलुभावन दबावों से प्रेरित समय में, अल्पकालिक मांगें प्रायः विशेषज्ञ अंतर्दृष्टि और दीर्घकालिक नीति लक्ष्यों पर हावी हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, जनता के दबाव में आवश्यक लेकिन अलोकप्रिय सुधारों को वापस लेने से संरचनात्मक प्रगति अवरुद्ध हो सकती है। 

इसके अतिरिक्त, विखंडित और परस्पर विरोधी स्वर निर्णय लेने की प्रक्रिया को पंगु बना सकते हैं, खास तौर पर विविधतापूर्ण लोकतंत्रों में। प्राथमिकता निर्धारण के लिए किसी ढांचे के बिना, राज्य को भिन्न-भिन्न हितों के मध्य सामंजस्य बिठाने में संघर्ष करना पड़ सकता है। 

श्रवण करना भी प्रदर्शनात्मक हो सकता है। ठोस कार्रवाई के बिना अंतहीन विचार-विमर्श से प्रशासनिक निर्णायकता कमजोर हो जाती है, तथा शासन परिणामों की बजाय दिखावे तक सीमित हो जाता है। जब आवाज उठाने की बहुत कोशिश होती है, लेकिन किसी पर कार्रवाई नहीं होती, तो विश्वास की जगह निराशावाद आ जाता है। 

इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि सहानुभूति को साक्ष्य के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है। अत्यधिक श्रवण करने  से, जिसमें तर्कसंगत निस्पंदन का अभाव होता है, तुष्टीकरण हो सकता है साथ ही यह न्यायसम्य नहीं हो सकता।  इससे भावनात्मक निवेदन संवैधानिक सिद्धांतों या डेटा-आधारित निर्णय को दरकिनार कर सकती है। 

इसके अतिरिक्त संस्थागत बाधाएं भी हैं। शीर्ष-स्तर की नौकरशाही संस्कृतियां प्रायः भागीदारी की तुलना में प्रक्रिया को प्राथमिकता देती हैं, जिससे निर्णयकर्ता जमीनी हकीकत से दूर हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, झारखंड में भुखमरी से होने वाली मौतें राशन वितरण में विलंब के कारण हुईं।  इस प्रकार इसका कारण नीतिगत विफलता नहीं, बल्कि फीडबैक और शिकायत तंत्र की विफलता है। 

इसके अतिरिक्त, डिजिटल प्लेटफॉर्म, जिनका उद्देश्य श्रवण को लोकतांत्रिक बनाना है, बड़े वर्ग को अपवर्जित कर सकता है। केवल 55-60% भारतीयों के पास ही स्थिर इंटरनेट पहुंच होने के कारण, शिकायत पोर्टल और ऑनलाइन परामर्श के अभिजात्य वर्ग का डोमेन बनने का खतरा है। जब पहुंच, साक्षरता या विश्वास की कमी होती है तो नागरिक सहभागिता के रूप में जो दिखाई देता है वह वह दिखावा मात्र रह जाती है। 

इसलिए, सच्ची सुनवाई का अर्थ सिर्फ़ मंच स्थापित करना नहीं है। इसका उद्देश्य पहुंच सुनिश्चित करना, भागीदारी को सक्षम बनाना तथा स्वर को कार्रवाई में परिवर्तित करना है। इन शर्तों के बिना, सबसे अच्छे इरादे से की गई सुनवाई भी प्रतीकात्मक बन जाती है, परिवर्तनकारी नहीं। 

शासन में सुनवाई को सुदृढ़ करने के लिए सहायक उपाय

शासन में श्रवण क्षमता को सही मायने में समाहित करने के लिए, विकेन्द्रीकरण को गहन किया जाना चाहिए तथा सार्थक ढंग से क्रियान्वित किया जाना चाहिए। निर्णय लेने की प्रक्रिया को लोगों के करीब लाकर, पंचायती राज संस्थाओं (PRI) और शहरी स्थानीय निकायों (ULB) जैसी सशक्त संस्थाएं जमीनी हकीकतों पर अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया दे सकती हैं। कई राज्य केरल के जन योजना अभियान से प्रेरणा ले सकते हैं, जहां राज्य योजना निधि का लगभग 40% स्थानीय निकायों को हस्तांतरित किया गया, जिससे वास्तविक भागीदारीपूर्ण नियोजन  बनाना संभव हुआ। 

इसके अतिरिक्त, एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली सुनवाई-आधारित शासन की आधारशिला है। यह नागरिकों को समस्याओं को  संसूचित करने और जवाबदेही के लिए एक सीधा चैनल प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली (CPGRAMS) को प्रतिवर्ष 25 लाख से अधिक शिकायतें प्राप्त होती हैं, तथा 2023 तक इसकी समाधान दर 85% से अधिक है(TRAIReport2023; DARPG Dashboard 2024), जो इसकी बढ़ती उपयोगिता को दर्शाता है। 

इसके आधार पर, पारंपरिक शिकायत निवारण प्रणालियों को आधुनिक तकनीकी प्लेटफार्मों के साथ एकीकृत करके शासन के प्रति अधिक संवेदनशील, समावेशी और डेटा-संचालित दृष्टिकोण तैयार किया जा सकता है। MyGov जैसे प्लेटफॉर्म, जिनके 2 करोड़ से अधिक पंजीकृत उपयोगकर्ता हैं, मसौदा नीतियों, अभियानों और शासन संबंधी मुद्दों पर जनता के सुझाव आमंत्रित करते हैं। इसी प्रकार, आकांक्षी जिला कार्यक्रम 112 अविकसित जिलों में स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के परिणामों की निगरानी के लिए वास्तविक समय डैशबोर्ड का उपयोग करता है, जिससे प्रदर्शन डेटा के आधार पर सुधार की सहूलियत मिलती है। साथ मिलकर, ये तंत्र एक ऐसे शासन मॉडल को आकार देने में मदद करते हैं जो समावेशी, अनुकूलनीय और वास्तव में लोगों की आवाज़ को प्रतिबिंबित करता है, जिससे एक उत्तरदायी, नागरिक-प्रथम राज्य की नींव रखी जाती है। 

निष्कर्ष

वास्तविक शासन एकालाप नहीं है; यह एक सार्थक संवाद है। यह नेतृत्व करने से पहले सुनता है, आदेश देने से पहले जुड़ता है। इसकी वैधता केवल अधिकार पर आधारित नहीं है, बल्कि लोगों की रोजमर्रा की वास्तविकताओं, उनकी आशाओं, भय और आकांक्षाओं के करीब रहने की इसकी क्षमता पर आधारित है। चाहे यह किसी गांव की पंचायत में हो, डिजिटल पोर्टल पर हो या स्कूल के बरामदे में शांत संवाद के माध्यम से हो, श्रवण करना राज्य का यह कहने का तरीका है कि: “आप मायने रखते हैं। मैं यहाँ हूँ। मैं सीख रहा हूँ।”

जैसे-जैसे शासन विकसित होता है, नेतृत्व को कमांड-एंड-कंट्रोल मॉडल से आगे बढ़ना चाहिए और संपर्क, सहयोग और करुणा के 3C मॉडल को अपनाना चाहिए। इस प्रकार श्रवण करना एक रणनीतिक, नैतिक और नागरिक जिम्मेदारी है। जब नागरिकों को यह महसूस होता है कि उनकी बात वास्तव में सुनी जा रही है, तो विश्वास गहन होता है, जवाबदेही बढ़ती  है, तथा लोक सेवा की नींव नवीनीकृत होती है। 

जैसा कि साइमन सिनेक हमें याद दिलाते हैं,कि “नेतृत्व का अर्थ प्रभारी होना नहीं है। इसका तात्पर्य अपने प्रभार में आने वाले लोगों का ध्यान रखना है।” और वास्तविक शासन इसी कार्य से, अर्थात् श्रवण से शुरू होता है। 

संबंधित उद्धरण:

  • ग्राम स्वराज कोई सपना नहीं है, वह भारत की आत्मा है।” — महात्मा गांधी
  • “नेता के कानों में जनता की आवाज गूंजनी चाहिए।” — वुडरो विल्सन
  • “हमें शासक बनने के लिए नहीं, सेवा करने के लिए चुना गया है।” — जॉन एफ. केनेडी
  • “नेतृत्व का मतलब हुकूमत करना नहीं, बल्कि अपने अधीन लोगों की देखभाल करना है।” — साइमन सिनेग
  • “यदि लोगों का नेतृत्व करना हो, तो उनके पीछे चलो।” — लाओ त्ज़ू
  • “लोग बोलते हैं, नेता सुनते हैं — लोकतंत्र ऐसे ही आगे बढ़ता है।” — बराक ओबामा

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