प्रश्न की मुख्य माँग
- शासन व्यवस्था में खामियाँ और माओवाद का विकास
- जनजातीय स्वशासन को सुदृढ़ करने हेतु सुधार।
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उत्तर
यद्यपि गरीबी, भर्ती को आसान बनाती है, परंतु माओवादी विद्रोह मूलतः आदिवासी अधिकारों के व्यवस्थित हनन से उत्पन्न वैधता का संकट है। पाँचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में, संवैधानिक सुरक्षा उपायों को लागू करने में विफलता ने एक “शासनहीनता” उत्पन्न कर दी है, जिसका लाभ विद्रोही वैकल्पिक न्याय प्रदाताओं के रूप में उठाते हैं।
शासन व्यवस्था की कमियाँ और माओवाद का विकास
- PESA का कमजोर होना: पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम को प्रायः दरकिनार कर दिया जाता है और भूमि अधिग्रहण एवं खनन परियोजनाओं में ग्राम सभाओं की उपेक्षा की जाती है।
- उदाहरण: छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य आंदोलन और आदिवासी विरोध प्रदर्शन इस बात को प्रदर्शित करते हैं कि कॉरपोरेट खनन के लिए प्रायः “सूचित सहमति” को किस प्रकार फर्जी तरीके से प्राप्त किया जाता है।
- निष्क्रिय सलाहकार परिषदें: राज्यपालों को सलाह देने के उद्देश्य से गठित आदिवासी सलाहकार परिषदें (TAC) या तो निष्क्रिय हो गई हैं अथवा आदिवासी अभिव्यक्तियों के स्थान पर कार्यपालिका के अत्यधिक हस्तक्षेप से प्रभावित हैं।
- वन अधिकारों से वंचित करना: वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकारों (CFR) की विलंबित मान्यता आदिवासियों को वन नौकरशाही द्वारा बेदखली के प्रति संवेदनशील बनाती है।
- उदाहरण: लगभग 40% वन अधिकार, अधिनियम के दावों को पारदर्शी कारणों के बिना खारिज कर दिया जाता है, जिससे हाशिए पर स्थित युवा चरमपंथी विचारधाराओं की ओर धकेल दिए जाते हैं।
- न्यायिक पहुँच की कमजोरी: न्याय पंचायतों की अनुपस्थिति और औपचारिक अदालतों की उच्च लागत के कारण आदिवासियों के पास स्थानीय विवादों को निष्पक्ष रूप से हल करने का कोई साधन नहीं है।
- उदाहरण: माओवादी जन अदालतें उसी जगह लोकप्रियता हासिल करती हैं, जहाँ औपचारिक राज्य न्यायपालिका सुलभ और त्वरित न्याय प्रदान करने में विफल रहती है।
जनजातीय स्वशासन को मजबूत करने के लिए सुधार
- जनजातीय सलाहकार परिषदों के प्रत्यक्ष चुनाव: वास्तविक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए, जनजातीय सलाहकार परिषदों में सरकारी उम्मीदवारों के स्थान पर प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित जनजातीय प्रतिनिधियों को शामिल करके उनमें सुधार करना।
- ग्राम सभा सशक्तीकरण: लघु वन उपज (MFP) और भूमि उपयोग परिवर्तनों के लिए ग्राम सभाओं की पूर्व-सूचित सहमति को अनिवार्य और बाध्यकारी बनाना।
- उदाहरण: ‘बंधन विकास केंद्र’ एक मॉडल के रूप में, जहाँ जनजातीय सहकारी समितियाँ वन संसाधनों का प्रबंधन करती हैं, जिससे बिचौलियों पर निर्भरता कम होती है।
- प्रशासनिक संवेदनशीलता: राज्य और नागरिक के बीच विश्वास की कमी को दूर करने के लिए, जनजातीय भाषाओं और पारंपरिक कानूनों में प्रशिक्षित सिविल सेवकों का एक समर्पित कैडर स्थापित करना।
- उदाहरण: “जनजातीय-केंद्रित पुलिसिंग” का प्रयोग, यह सुनिश्चित करने के लिए कि सुरक्षा बलों को बाह्य अधिग्रहण बल के बजाय रक्षक के रूप में देखा जाए।
- डिजिटल भूमि अभिलेख: कानूनी सुरक्षा प्रदान करने और राज्य द्वारा मनमानी बेदखली को रोकने के लिए, वन सीमावर्ती क्षेत्रों में भूमि स्वामित्व के डिजिटलीकरण में तेजी लाना।
- उदाहरण: यदि ‘स्वामित्त्व’ योजना को आदिवासी क्षेत्रों में सख्ती से लागू किया जाए, तो माओवादी लामबंदी के प्राथमिक स्रोत (भूमि असुरक्षा) को समाप्त किया जा सकता है।
निष्कर्ष
आदिवासी समुदायों के भावनात्मक एकीकरण के बिना वामपंथी उग्रवाद के विरुद्ध सैन्य सफलता अस्थायी ही रहेगी। पाँचवीं अनुसूची को सुदृढ़ करना केवल एक कानूनी दायित्व नहीं बल्कि एक रणनीतिक आवश्यकता है। ग्राम सभा को एक संप्रभु इकाई के रूप में बहाल करके, भारत माओवादी प्रशासन को एक मजबूत, लोकतांत्रिक ढाँचे से प्रतिस्थापित कर सकता है, जो आदिवासी गरिमा और संवैधानिक वादों का सम्मान करता है।
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