Answer:
दृष्टिकोण:
- भूमिका: असम में बार-बार आने वाली बाढ़ की समस्या की एक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये, जिसमें बढ़ती गंभीरता और लोगों पर पड़ने वाले इसके प्रभाव पर प्रकाश डाला जाए।
- मुख्य भाग:
- असम में बार-बार आने वाली बाढ़ के कारणों का उल्लेख कीजिये।
- असम में बाढ़ प्रबंधन और शमन के दीर्घकालिक उपायों पर चर्चा कीजिये।
- बेहतर पुष्टि के लिए प्रासंगिक डेटा और उदाहरण भी प्रदान कीजिये।
- निष्कर्ष: असम में वार्षिक बाढ़ के खतरे के प्रबंधन के लिए समग्र दृष्टिकोण और सामूहिक जिम्मेदारी के महत्व पर जोर देते हुए निष्कर्ष लिखिये।
|
भूमिका:
असम, जो पूर्वोत्तर भारत का एक सुरम्य राज्य है, हर साल एक गंभीर आवर्ती घटना का सामना करता है – भीषण बाढ़। पिछले कुछ वर्षों में, इनमें वृद्धि भी हुई है, इस नज़रिए से, पिछला वर्ष एक दशक में सबसे भीषण रहा, जिससे 8.8 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हुए और 181 मौतें भी हुईं। इस मुद्दे की गंभीर प्रकृति के लिए इसके कारणों की गहन समझ और इसके परिणामों को प्रभावी ढंग से कम करने और प्रबंधित करने के लिए निर्णायक दीर्घकालिक कार्रवाई की आवश्यकता है।
मुख्य विषयवस्तु:
असम में बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण
- भौगोलिक कारक: असम ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र के रूप में कार्य करता है, जिनकी उच्च मात्रा में मानसून अपवाह, क्षेत्र की निचली स्थलाकृति के साथ मिलकर, नियमित बाढ़ का कारण बनता है।
- वर्षा: असम की बंगाल की खाड़ी से निकटता और इसके मानसून पथ के कारण पर्याप्त वर्षा होती है। आईएमडी के आंकड़ों के अनुसार, असम में मौजूदा प्री-मॉनसून अवधि में 48.2 मिमी बारिश हुई है, जो औसत से 34% अधिक है।
- वनों की कटाई: जलग्रहण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई के कारण मिट्टी का कटाव बढ़ गया है, जिससे नदियों में गाद जमा हो जाती है और उनकी जल-धारण क्षमता कम हो जाती है, जिससे बाढ़ की स्थिति गंभीर हो जाती है।
- भूकंपीय गतिविधि: असम एक उच्च भूकंपीय गतिविधि वाला क्षेत्र है। यहाँ बार-बार आने वाले भूकंपों से नदी का मार्ग बदल जाता है, जिससे यह क्षेत्र बाढ़ के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
- मानवीय गतिविधियाँ: आर्द्रभूमियों, जल निकायों पर अतिक्रमण और अनुचित कृषि पद्धतियाँ बाढ़ के खतरे को और बढ़ाती हैं।
असम में बाढ़ प्रबंधन और शमन के लिए दीर्घकालिक उपाय
- उन्नत बाढ़ संबंधी पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: वास्तविक समय में बाढ़ की भविष्यवाणी और अलर्ट के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने से समय पर निकासी और तैयारी में सहायता मिल सकती है।
- बेहतर बाढ़-नियंत्रण बुनियादी ढाँचा: तटबंधों, जलाशयों और निकर्षण नदी तलों के निर्माण से नदी के प्रवाह और क्षमता को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे बाढ़ का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है।
- वनीकरण और जलविभाजक प्रबंधन: वनीकरण और जल-विभाजक प्रबंधन से जुड़ा हरित दृष्टिकोण मिट्टी के कटाव को कम कर सकता है और भूमि की जल-अवशोषण क्षमता को बढ़ा सकता है।
- बाढ़-प्रतिरोधी शहरी योजना: बाढ़-रोधी शहरी बस्तियों का विकास करने से बार-बार आने वाली बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
- पुनर्वास कार्यक्रम: व्यापक पुनर्वास पहल के साथ कमजोर आबादी को सुरक्षित क्षेत्रों में ले जाना, बाढ़ से होने वाली मानव हानि को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है।
- समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण: आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण के माध्यम से सामुदायिक कौशल बढ़ाने से बाढ़ परिदृश्यों पर अधिक प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित की जा सकती है।
- सीमा पार नदी प्रबंधन: चीन और बांग्लादेश जैसे देशों के साथ साझा नदियों का सहयोगात्मक प्रबंधन क्षेत्रीय बाढ़ प्रबंधन में सहायक हो सकता है।
निष्कर्ष:
हालाँकि, असम में बाढ़ प्रबंधन की चुनौती बहुत बड़ी है, लेकिन यह ज्यादा विकराल नहीं है। इन वार्षिक आपदाओं को कम करने के लिए एक समग्र, बहुआयामी दृष्टिकोण, जिसमें बेहतर पूर्वानुमान, बुनियादी ढांचे में वृद्धि, पर्यावरण संरक्षण और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शामिल है, बेहद सर्वोपरि हैं। एनडीआरएफ के तहत एचएलसी द्वारा स्वीकृत 520 करोड़ रुपये से अधिक की केंद्रीय सहायता इस दिशा में एक उचित कदम है। असम के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए सरकार, नागरिक समाज और स्थानीय समुदायों को एक साथ आना आवश्यक है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments