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Q. विभिन्न हितधारकों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों के बारे में चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों की संक्षिप्त परिभाषा देते हुए शुरुआत करें। साथ ही, विभिन्न हितधारकों के हितों पर जोर देते हुए भारत में इन फसलों से संबन्धित मुद्दों पर प्रकाश डालें ।  
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • जीएम फसलों के समर्थन पर चर्चा करें।
    • हितधारकों द्वारा उठाई गई चिंताओं पर प्रकाश डालें।
    • सरकार की भूमिका और नियामक उपायों का उल्लेख करें।
    • प्रासंगिक उदाहरण अवश्य प्रदान करें।
  • निष्कर्ष: भारत के कृषि परिदृश्य में जीएम फसलों की क्षमता का सारांश प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष निकालें। 

परिचय:

आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलें कृषि में उपयोग किए जाने वाले वे पौधे हैं, जिनके डीएनए को आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीकों का प्रयोग  करके बदला जाता है। इन संशोधनों का उद्देश्य पौधे में एक नया गुण लाना है जो सामान्य पौधों की प्रजातियों में स्वाभाविक रूप से नहीं होता है। भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों को लेकर बहस जारी है, जो किसानों, शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और पर्यावरणविदों को इस जटिल चर्चा में एक साथ मंच पर लाती है। आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों को लेकर की जा रही यह बहस जीएम प्रौद्योगिकी के कारण सामाजिक-आर्थिक और पारिस्थितिक प्रभाव का आकलन करती है।

मुख्य विषयवस्तु:

जीएम फसलों के समर्थन में प्रमुख बिन्दु

  • कृषि उत्पादकता:
    • 2002 में प्रारम्भ किए गए बीटी कपास ने भारत में कपास उत्पादन को तेजी से बदल दिया, इसने पैदावार में वृद्धि की और कीटनाशकों के उपयोग को कम किया।
    • आज, भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक है, जिसका 90% से अधिक कपास जीएम है।
  • आर्थिक लाभ:
    • गुजरात में किसानों ने बीटी कपास को अपनाने के बाद प्रति एकड़ कपास की पैदावार में 24% की वृद्धि और प्रति एकड़ कपास के लाभ में 50% की वृद्धि दर्ज की।
  • खाद्य सुरक्षा को संबोधित करना:
    • सूखा प्रतिरोधी मक्का या बाढ़-सहिष्णु चावल जैसी जीएम फसलों में भारत की खाद्य जरूरतों को पूरा करने की क्षमता है, खासकर जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित मौसम पैटर्न को देखते हुए ।
  • पोषण संवर्धन:
    • गोल्डन राइस, हालांकि भारत में अभी तक इसे नहीं अपनाया गया है, विटामिन A की मात्रा को बढ़ाने के लिए विकसित किया गया है, जो संभावित रूप से खाद्य में व्यापक कमियों को दूर कर सकता है।
  • कीटों के प्रति प्रतिरोध:
    • पिंक बॉलवर्म कीट, जिसने कभी कपास की फसल को बर्बाद कर दिया था, बीटी जीन के कारण जीएम कपास की फसल में इसका प्रभाव कम देखा गया है।

हितधारकों द्वारा उठाई गई चिंताएँ:

  • पर्यावरणीय चिंता:
    • महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में, बीटी कपास के बढ़ते रोपण से कथित तौर पर मधुमक्खियों जैसे लाभकारी कीड़ों की आबादी कम हो गई है, और दूसरे कीटों में वृद्धि हुई है।
  • स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ:
    • भारत में जीएम सरसों(GM mustard) को लेकर चिंताएं दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों से जुड़ी आशंकाओं से उपजी हैं, कुछ अध्ययनों से पता चला है कि कुछ जीएम खाद्य पदार्थों से संभावित रूप से यकृत और गुर्दे खराब हो सकते हैं।
  • आर्थिक निर्भरता:
    • बीटी कपास के बीज की बढ़ती कीमतों के कारण पंजाब क्षेत्र में संकट की सूचना मिली है, कुछ बहुराष्ट्रीय निगमों के बीजों पर अत्यधिक निर्भरता से समस्याएँ उत्पन्न होने लगी हैं।  
  • पारंपरिक किस्में:
    • केरल में जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है, लेकिन जीएम फसलों के साथ संभावित क्रॉस-परागण(cross-pollination) के कारण स्वदेशी चावल की किस्मों के नुकसान होने का डर है।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक चिंताएँ:
    • बिहार में, जीएम बैंगन (बीटी बैंगन) के संभावित प्रयोग को देशी बैंगन किस्मों के सांस्कृतिक और रसोई घरों में इसके विशेष महत्व के कारण प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।

सरकार की भूमिका और नियामक उपाय:

    • जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) एक नियामक संस्था के रूप में कार्य करती है, जिसने सार्वजनिक परामर्श के बाद 2010 में बीटी बैंगन पर रोक लगा दी थी।
    • जीएम फसलों को व्यावसायिक रूप से शुरू किए जाने से पहले कड़े जैव सुरक्षा परीक्षण अनिवार्य हैं, जैसा कि जीएम सरसों के साथ देखा गया है।
    • भारत के पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 का उद्देश्य जीएम बीजों से संबंधित किसानों के अधिकारों को सुनिश्चित करना है।
    • राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority) संभावित प्रतिकूल प्रभावों से भारत की समृद्ध जैव विविधता की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
    • सार्वजनिक परामर्श के माध्यम से इस मुद्दे पर निर्णय लेने की कोशिश हो रही है, उदाहरण के लिए बीटी बैंगन के संबंध में सार्वजनिक परामर्श से निर्णय लेने की कोशिश की गयी है।

निष्कर्ष

जीएम फसलें भारत की कुछ प्रमुख कृषि चुनौतियों का आशाजनक समाधान प्रदान करती हैं, ऐसे में विभिन्न हितधारकों की चिंताओं को दूर करना महत्वपूर्ण है। इस प्रकार खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए वैज्ञानिक प्रगति का लाभ उठाने और स्वास्थ्य, जैव विविधता और सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना देश के लिए जरूरी है।

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