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Q. प्रोजेक्ट टाइगर ने भारत में टाइगर की आबादी को बचाने में कैसे योगदान दिया है। चर्चा करें। साथ ही परियोजना के समक्ष आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिए तथा इसकी प्रभावशीलता को और बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं। (250 शब्द, 15 अंक)।

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: प्रोजेक्ट टाइगर का परिचय देते हुए इसकी स्थापना वर्ष और इसके लॉन्च के पीछे उद्देश्य का वर्णन करें।
  • मुख्य विषयवस्तु :  
    • बाघ अभ्यारण्यों की स्थापना एवं संख्या में वृद्धि पर प्रकाश डालें।
    • प्रासंगिक डेटा का उपयोग करके बाघों की आबादी में सुधार पर चर्चा करें।
    • परियोजना के पारिस्थितिक और आर्थिक प्रभावों की व्याख्या करें।
    • प्राथमिक चुनौतियों की सूची बनाएं, जैसे अवैध शिकार, आवास विखंडन, जलवायु परिवर्तन, वित्तीय बाधाएं और सामुदायिक संघर्ष।
    • चुनौतियों के अनुरूप समाधान प्रस्तुत करें।
  • निष्कर्ष: इस पहल की निरंतर सफलता के लिए सभी हितधारकों के सामूहिक प्रयासों के महत्व पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकालें।

परिचय:

बाघों की आबादी को संरक्षित करने के लिए प्रोजेक्ट टाइगर 1973 में शुरू किया गया था। प्रोजेक्ट टाइगर भारत के सबसे प्रमुख संरक्षण प्रयासों में से एक है। इस प्रकार बड़े पैमाने पर अवैध शिकार और निवास स्थान के नुकसान के कारण बाघों की घटती संख्या के मद्देनजर यह परियोजना शुरू की गई थी।  

मुख्य विषयवस्तु:

 प्रोजेक्ट टाइगर का योगदान:

  • टाइगर रिजर्व की स्थापना:
    • प्रोजेक्ट टाइगर के कारण देश भर में कई बाघ अभ्यारण्यों का निर्माण हुआ।
    • 1973 में 9 टाइगर रिजर्व से शुरू होकर, 2021 में यह संख्या 50 से अधिक हो गई है।
    • ये अभ्यारण्य न केवल बाघों बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करते हैं।
  • जनसंख्या पुनर्प्राप्ति:
    • बाघों की आबादी, जो 1970 के दशक की शुरुआत में 1,200 अनुमानित थी, में उल्लेखनीय सुधार हुआ।
    • 2018 की जनगणना के अनुसार, भारत लगभग 2,967 बाघों का घर है, जो वैश्विक बाघों की आबादी का 70% है।
    • भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा दिये गए डेटा से पता चलता है कि कैमरा-ट्रैप्ड और गैर-कैमरा-ट्रैप्ड बाघ उपस्थिति क्षेत्रों पर प्रति वर्ष 6.1% की वार्षिक वृद्धि दर के साथ बाघों की अनुमानित आबादी 3,925 हो गई।
  • पारिस्थितिक प्रभाव:
    • इन अभयारण्यों ने वन भूमि के विशाल हिस्से को सुरक्षित रखा है, जिससे पारिस्थितिक संतुलन, भूजल पुनर्भरण और बफर जोन में मानव-पशु संघर्ष कम हुआ है।
    • इस संबंध में बेहतर केस स्टडी के रूप में मध्य प्रदेश में स्थित पन्ना टाइगर रिजर्व है।
  • पर्यटन और आर्थिक लाभ:
    • बाघ अभयारण्यों की लोकप्रियता ने पर्यावरण-पर्यटन को बढ़ावा दिया है, जिससे स्थानीय रोजगार और संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ी है।

प्रोजेक्ट टाइगर के समक्ष चुनौतियाँ:

  • अवैध शिकार: कई संरक्षण प्रयासों के बावजूद  बाघों के अंगों के लिए काला बाजार में मांग को देखते हुए अवैध शिकार एक महत्वपूर्ण खतरा बना हुआ है।
  • पर्यावास विखंडन: सड़कों, बांधों और शहरी विस्तार जैसी बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं के कारण आवास विखंडित हो गए हैं, जिससे मानव-बाघ संघर्ष बढ़ गया है।
  • जलवायु परिवर्तन: समुद्र के बढ़ते स्तर, विशेष रूप से सुंदरबन में, बंगाल टाइगर के आवास को खतरे में डाल रहा है।
  • धन और संसाधन: अपर्याप्त धन और संसाधन कभी-कभी बाघ अभयारण्यों के प्रभावी प्रबंधन में बाधा डालते हैं।
  • स्थानीय सामुदायिक संघर्ष: मुख्य क्षेत्रों से समुदायों के पुनर्वास और संसाधन निष्कर्षण पर प्रतिबंध के कारण कभी-कभी स्थानीय निवासियों और वन अधिकारियों के बीच घर्षण पैदा हो जाता है।

प्रोजेक्ट टाइगर की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए कदम:

  • अवैध शिकार विरोधी उपायों को मजबूत करें: उन्नत निगरानी, ड्रोन जैसी प्रौद्योगिकी-संचालित निगरानी और बेहतर सुसज्जित वन रक्षक शिकारियों को रोक सकते हैं।
  • पर्यावास कनेक्टिविटी: पृथक बाघ आवासों को जोड़ने, आनुवंशिक विविधता सुनिश्चित करने और मानव-बाघ संघर्ष को कम करने के लिए वन्यजीव गलियारे स्थापित करें।
  • समुदाय की भागीदारी: स्थानीय समुदायों को बाघों के संरक्षण प्रयासों में शामिल करें, साथ ही उन्हे वैकल्पिक आजीविका प्रदान करें और वन्यजीवों से होने वाले नुकसान की भरपाई करें।
  • अनुसंधान और निगरानी: नियमित बाघ जनगणना, स्वास्थ्य जांच और आवास गुणवत्ता मूल्यांकन बेहतर संरक्षण रणनीतियों के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: पड़ोसी देशों के साथ सहयोगात्मक प्रयास बाघों के अंगों के अवैध व्यापार को रोकने और सीमा पार आवास कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि प्रोजेक्ट टाइगर ने भारत में बाघों की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि की है, लेकिन मौजूदा चुनौतियों के लिए बहुआयामी और अनुकूलनीय समाधान की आवश्यकता है। सरकार, स्थानीय समुदायों और अंतरराष्ट्रीय निकायों के संयुक्त प्रयासों से, भारत के जंगलों में बाघ की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि की जा सकती है।

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