उत्तर:
दृष्टिकोण:
- परिचय : ब्रिक्स और इसकी संरचना की संक्षिप्त परिभाषा से शुरुआत कीजिये।
- मुख्य विषयवस्तु:
- भारत के लिए ब्रिक्स के आर्थिक और भूराजनीतिक महत्व पर चर्चा कीजिये।
- पश्चिमी संस्थानों के प्रतिकार के रूप में ब्रिक्स के महत्व और वैकल्पिक विकास प्रतिमानों की पेशकश में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- एनडीबी, सीआरए और ब्रिक्स भुगतान प्रणाली जैसी महत्वपूर्ण पहलों को बताइये और उनका संक्षेप में वर्णन कीजिये ।
- शैक्षणिक और व्यावसायिक मंचों की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- आर्थिक, सुरक्षा और भू-राजनीतिक चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए, ब्रिक्स के साथ अपने जुड़ाव में भारत के सामने आने वाली चुनौतियों पर गौर कीजिये ।
- निष्कर्ष: अंतर्निहित चुनौतियों का समाधान करते हुए ब्रिक्स से भारत को जिस संतुलन को बनाए रखना चाहिए, उस पर विचार करते हुए निष्कर्ष निकालिए।
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परिचय:
ब्रिक्स, ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका का संक्षिप्त रूप है, यह प्रमुख रूप से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के समूह का प्रतिनिधित्व करता है। अपनी स्थापना के बाद से ब्रिक्स विभिन्न क्षेत्रों में सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देते हुए प्रमुखता से उभरा है। भारत के लिए, ब्रिक्स के साथ उसका जुड़ाव महत्वपूर्ण है, जो भारत को कई गुना रणनीतिक और आर्थिक लाभांश प्रदान करता है।
मुख्य विषयवस्तु:
भारत के लिए ब्रिक्स की प्रासंगिकता:
- आर्थिक सहयोग:
- ब्रिक्स देशों का विश्व की जनसंख्या में 40% से अधिक और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 23% योगदान है।
- इस समूह में शामिल होने से भारत को एक विशाल बाजार में प्रवेश करने और व्यापार को बढ़ावा देने में सुविधा मिलती है।
- भूराजनीतिक महत्व:
- ब्रिक्स भारत के लिए पश्चिमी प्रभुत्व वाले संस्थानों के दायरे से बाहर प्रमुख वैश्विक खिलाड़ियों के साथ जुड़ने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है, जिससे इसकी राजनयिक और रणनीतिक गतिविधियों में विविधता लाने में मदद मिलती है।
- वैकल्पिक विकास मॉडल:
- ब्रिक्स राष्ट्र सतत विकास में सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान के लिए एक मंच प्रदान करते हैं, जो भारत को पश्चिमी मॉडल से अलग वैकल्पिक विकास प्रतिमान प्रदान करते हैं।
- पश्चिमी संस्थानों का प्रतिकार:
- ब्रिक्स ब्रेटन वुड्स संस्थानों के लिए एक चुनौती है, जिससे भारत को वैश्विक वित्तीय वास्तुकला के पुनर्गठन में एक आवाज मिल रही है।
ब्रिक्स रूपरेखा के अंतर्गत प्रमुख पहल:
- न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी):
- 2014 में स्थापित, न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) ब्रिक्स और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बुनियादी ढांचे और सतत विकास परियोजनाओं को वित्तपोषित करता है।
- ब्रिक्स भुगतान प्रणाली:
- पश्चिमी वित्तीय प्रणालियों पर निर्भरता कम करने के लिए ब्रिक्स अपनी स्वयं की भुगतान प्रणाली बनाने पर विचार कर रहा है, जो व्यापार सुरक्षा के लिहाज से भारत के लिए फायदेमंद होगी।
- आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था (सीआरए):
- आईएमएफ के समान, सीआरए(Contingent Reserve Arrangement) सदस्य देशों को भुगतान संतुलन संकट से निपटने में मदद करता है, जिससे भारत की आर्थिक लचीलापन मजबूत होती है।
- ब्रिक्स अकादमिक फोरम और बिजनेस काउंसिल:
- ये मंच क्रमशः अकादमिक संवाद और व्यावसायिक सहयोग को प्रोत्साहित करते हैं, जिससे भारत को गहरे संबंधों को बढ़ावा देने की अनुमति मिलती है।
ब्रिक्स के साथ भारत के जुड़ाव में प्रतिस्पर्धी कारक:
- अलग अलग आर्थिक हित:
- चीन की प्रमुख आर्थिक स्थिति को देखते हुए इस बात की अंतर्निहित आशंका है कि बीजिंग इस समूह के एजेंडे को आकार दे रहा है, जो संभावित रूप से भारत के हितों को कमजोर कर रहा है।
- सुरक्षा चिंताएं:
- भारत हमेशा पाकिस्तान से उत्पन्न होने वाले आतंकवाद से संबंधित सुरक्षा संबंधी चिंता व्यक्त करता है, किन्तु चीन के रुख के कारण ब्रिक्स के भीतर उसकी आवाज सीमित हो जाती है ।
- भूराजनीतिक प्रतिद्वंद्विता:
- अमेरिका और क्वाड समूह के साथ भारत की बढ़ती निकटता, ब्रिक्स के साथ उसके जुड़ाव के लिए एक विरोधाभास (counter-narrative) प्रस्तुत करती है। भारत का क्वाड से जुड़ाव रूस और चीन के साथ संभावित रूप से विश्वास के मुद्दे पैदा होते हैं। ।
निष्कर्ष:
ब्रिक्स के साथ भारत का जुड़ाव उसकी बहुआयामी विदेश नीति पहुंच में सर्वोपरि है। जबकि ब्रिक्स मंच आपसी सहयोग और वैश्विक स्थिति के लिए कई अवसर प्रस्तुत करता है, ऐसे में अंतर्निहित चुनौतियों के लिए एक सुव्यवस्थित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे वैश्विक गतिशीलता विकसित होगी, ब्रिक्स के साथ भारत की भागीदारी निस्संदेह इसकी रणनीतिक का एक महत्वपूर्ण घटक होगी, जो इस संगठन द्वारा प्रस्तुत संभावनाओं और चुनौतियों दोनों को संतुलित करेगी।
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