Q. "लोक सेवक द्वारा कर्तव्य का पालन न करना भ्रष्टाचार का एक रूप है"। क्या आप इस दृष्टिकोण से सहमत हैं? अपने उत्तर का औचित्य सिद्ध कीजिए। (150 शब्द, 10 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: प्रासंगिक संदर्भ में कथन के विषय में बताइए या भ्रष्टाचार की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • सिविल सेवकों द्वारा कर्त्तव्य का पालन न करने के कुछ उदाहरणों का उल्लेख कीजिए, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक हित को महत्वपूर्ण रूप से नुकसान हुआ है।
    • अपने विचारों को पुष्ट करने के लिए उदाहरण लिखिए।
  • निष्कर्ष: आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष निकालिए।

परिचय:

एक लोक सेवक द्वारा अपने कर्त्तव्यों का पालन न करने को भ्रष्टाचार के रूप में संदर्भित किया जा सकता है क्योंकि यह जवाबदेही के मूल सिद्धांत का उल्लंघन करता है और इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक विश्वास का उल्लंघन होता है। जब कोई लोक सेवक अपना कर्त्तव्य निभाने में विफल रहता है, तो वे न केवल सार्वजनिक हित की सेवा करने में विफल रहते हैं, बल्कि जनता को उनके उचित अधिकारों से भी वंचित कर देते हैं। इसलिए, मैं इस विचार से सहमत हूं कि एक लोक सेवक द्वारा कर्त्तव्य का पालन न करना भ्रष्टाचार का एक रूप है।

मुख्य विषयवस्तु:

अपने विचारों को पुष्ट करने के लिए उदाहरण के तौर पर कुछ बिंदु दिए गए हैं 

  1. विश्वास का उल्लंघन: लोक सेवकों को सार्वजनिक हित की सेवा के लिए विशिष्ट भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ सौंपी जाती हैं। जब वे अपने कर्त्तव्यों का पालन करने में विफल होते हैं, तो इसे उन पर किते गए भरोसे के उल्लंघन के रूप में देखा जा सकता है।
    उदाहरण: दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामला (2012): एक पुलिस अधिकारी ने अपने कर्तव्य की उपेक्षा की, जिसके परिणामस्वरूप कार्रवाई में देरी हुई और जनता के विश्वास का उल्लंघन हुआ।
  2. सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी: लोक सेवकों द्वारा अपेक्षित प्रदर्शन न करने के कारण अकसर सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी होती है, क्योंकि आवंटित धन और संसाधनों का कुशलतापूर्वक या प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं किया जा सकता है।
    उदाहरण: राष्ट्रमंडल खेल घोटाला (2010): बुनियादी ढांचे के विकास के लिए आवंटित धन का दुरुपयोग किया गया, जिससे लागत में वृद्धि हुई और घटिया निर्माण हुआ।
  3. प्रगति और विकास में बाधा: कर्तव्यों का पालन करने में विफलता समाज की प्रगति और विकास में बाधा बन सकती है, क्योंकि सार्वजनिक सेवाएं प्रभावी ढंग से या समय पर वितरित नहीं की जा सकती हैं।
    उदाहरण: विलंबित मुंबई मेट्रो लाइन 2A: नौकरशाही की अक्षमताओं और समन्वय की कमी के कारण निर्माण में देरी हुई, जिससे परिवहन विकास में बाधा उत्पन्न हुई।
  4. भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना: कर्तव्य का पालन ना करना ,भ्रष्टाचार के पनपने के अवसर पैदा कर सकता है, क्योंकि लोक सेवक अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए रिश्वत की मांग कर सकते हैं या अन्य प्रकार की अवैध गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं।
    उदाहरण: व्यापम घोटाला (2013): सरकारी अधिकारियों ने प्रवेश परीक्षाओं में हेरफेर किया,साथ ही  रिश्वतखोरी और अनियमित प्रवेश के माध्यम से भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया।
  5. कानूनी और नैतिक दायित्वों का उल्लंघन: लोक सेवक कानूनों और नैतिक मानकों से बंधे होते हैं जिनके लिए उन्हें अपने कर्तव्यों को पूरा करना आवश्यक होता है। गैर-प्रदर्शन को इन दायित्वों के उल्लंघन के रूप में देखा जा सकता है।
    उदाहरण: 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला (2008): अधिकारियों ने दूरसंचार स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटित करने में नियमों का उल्लंघन किया, जिसके परिणामस्वरूप काफी वित्तीय नुकसान हुआ।

निष्कर्ष:

सिविल सेवकों द्वारा कर्तव्य का पालन न करना भ्रष्टाचार का एक रूप है जिसका सार्वजनिक हित पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक विश्वास का उल्लंघन, सार्वजनिक संसाधनों की हानि और नागरिकों को उनके उचित अधिकारों से वंचित किया जाता है। इसलिए, सार्वजनिक सेवा में अधिक जवाबदेही, पारदर्शिता और अखंडता की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सिविल सेवक अपने कर्तव्यों को लगन से निभाएं और प्रभावी ढंग से सार्वजनिक हित की सेवा करें।

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