उत्तर:
प्रश्न को हल करने की विधि:
- प्रस्तावना: प्रयोगशाला में विकसित मानव भ्रूण जैसे मॉडल को परिभाषित करें।
- मुख्य विषयवस्तु :
- पारंपरिक प्रजनन विधियों के बिना भ्रूण मॉडल के हालिया विकास का विवरण लिखें।
- गर्भपात, जन्म दोष और बांझपन की समस्या समझने में इसके अनुप्रयोग का वर्णन कीजिए।
- मॉडलों की विशिष्ट विशेषताओं; जैसे- कोष (yolk) और एमनियोटिक गुहा के समावेश की चर्चा करें।
- मॉडलों के बढ़ते गलत उपयोग को देखते हुए, नैतिक विचारों पर चर्चा करें और अधिक मजबूत तंत्र की आवश्यकता पर विचार करें।
- निष्कर्ष: उत्तरदायी प्रगति सुनिश्चित करने के लिए ऐसी प्रगति को नैतिक मानकों के साथ जोड़ने की अनिवार्यता पर जोर देते हुए निष्कर्ष लिखें।
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प्रस्तावना:
प्रयोगशाला में विकसित मानव भ्रूण जैसे मॉडल, प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से निर्मित संरचनाएँ हैं, ये संरचनाएँ विकास के प्रारंभिक चरण में मानव भ्रूण से काफी मिलती-जुलती हैं। ये मॉडल शुक्राणु या अंडाणु का उपयोग करने के पारंपरिक तरीकों के बिना स्टेम कोशिकाओं से प्राप्त किए जाते हैं, जो (स्टेम कोशिका) किसी भी प्रकार की कोशिका में बदलने की क्षमता रखती हैं। हालाँकि, इन नवाचारों में असंख्य चिकित्सा चुनौतियों का समाधान करने की क्षमता है, लेकिन साथ ही ये महत्वपूर्ण नैतिक चिंताओं को भी बढ़ाते हैं।
मुख्य विषयवस्तु:
वैज्ञानिक उन्नति:
- पारंपरिक साधनों के बिना निर्माण: वैज्ञानिकों ने शुक्राणु, अंडाणु या निषेचन के बिना मानव भ्रूण जैसी संरचनाओं को सफलतापूर्वक विकसित किया है।
- स्व-संगठित स्टेम कोशिकाएँ: पीयर-रिव्यू जर्नल नेचर में प्रकाशित वीज़मैन इंस्टीट्यूट के शोध में दिखाया गया है कि कैसे मानव भ्रूण स्टेम कोशिकाओं को एक प्रारंभिक भ्रूण जैसा दिखने वाले मॉडल में स्व-संगठित होने के लिए सेट किया जा सकता है।
- विकासात्मक अंतर्दृष्टि: उत्पादित मॉडल 14 दिनों के हो जाते हैं, तो उन पर कानूनी सीमा लागू हो जाती है। यही वह समयकाल होता है जब मस्तिष्क जैसे अंग अपना विकास शुरू करते हैं।
- रसायन-चालित प्रक्रिया: वीज़मैन इंस्टीट्यूट का मॉडल इस मायने में अलग है कि यह आनुवंशिक रूप से संशोधित भ्रूण स्टेम कोशिकाओं के बजाय रासायनिक रूप से संशोधित भ्रूण स्टेम कोशिकाओं का उपयोग करता है, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे मॉडल बनते हैं जो वास्तविक मानव भ्रूण के जैसे होते हैं। ये मॉडल अंडमध्य कोष और एमनियोटिक गुहा सहित होते हैं।
- अनुसंधान अनुप्रयोग: वास्तविक भ्रूण के समान होने के कारण, ये मॉडल गर्भपात, जन्म दोष और बांझपन पर शोध के लिए सहायक हो सकते हैं।
नैतिक पहलू(विचार):
- नियामक ग्रे एरिया (gray area): उदाहरण के लिए, वर्तमान ब्रिटिश कानून, प्रयोगशालाओं में 14 दिनों से अधिक समय तक मानव भ्रूण के संवर्धन को प्रतिबंधित करता है। हालाँकि, स्टेम कोशिकाओं से प्राप्त ये संरचनाएँ कृत्रिम रूप से बनाई जाती हैं, इसलिए ये स्पष्ट रूप से मौजूदा नियमों के अंतर्गत नहीं आती हैं। स्पष्ट नियमों के अभाव से अनिश्चितता रहती है।
- भ्रूण की स्थिति: डेवलपर्स (निर्माता) और तृतीय पक्ष वैज्ञानिक दोनों इस बात पर जोर देते हैं कि इन मॉडलों को मानव भ्रूण के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे केवल समान हैं, लेकिन गर्भाशय स्थितियों के समान नहीं हैं।
- सफलता दर और प्रामाणिकता: मॉडलों के निर्माण में सफलता दर कम होती है, क्योंकि स्टेम कोशिकाएं कभी-कभी ही सही ढंग से व्यवस्थित होती हैं। इसके अलावा, भले ही इन मॉडलों में विकासशील भ्रूणों में पायी जाने वाली अधिकांश कोशिकाएँ शामिल हैं, फिर भी वे पूर्ण प्रतिकृतियाँ नहीं होती हैं।
- मजबूत नियामक तंत्र का आह्वान: जैसे-जैसे ये भ्रूण मॉडल अधिक परिष्कृत (sophisticated) और वास्तविक विकासात्मक घटनाओं के करीब होते जा रहे हैं, अधिक व्यापक नियामक ढांचे की तत्काल आवश्यकता भी बढ़ रही है।
निष्कर्ष:
प्रयोगशाला में विकसित मानव भ्रूण जैसे मॉडल का विकास भ्रूण अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण छलांग है। हालाँकि, वे प्रारंभिक मानव विकास और संबंधित जटिलताओं को समझने के लिए नए रास्ते खोलते हैं, साथ ही वे नैतिक आयामों पर गहन चिंतन का भी आह्वान करते हैं। जैसे-जैसे विज्ञान इन जटिल क्षेत्रों में प्रवेश करता है, नवाचार और नैतिकता के बीच संतुलन सर्वोपरि हो जाता है।
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