उत्तर:
दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना: भारतीय समाज की विविधता और वर्तमान चुनौतियों के बारे में संक्षेप में लिखिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- सामाजिक एकता को बढ़ावा देने और सामूहिक कर्तव्य की साझा भावना को प्रोत्साहित करने में नैतिकता के महत्व पर चर्चा कीजिए।
- इसकी कुछ सीमाएँ बताइये।
- आगे की राह लिखिए।
- निष्कर्ष: सकारात्मक नोट पर निष्कर्ष निकालिए।
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प्रस्तावना:
नैतिकता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
भारत का विविध ताना-बाना और विविधता में एकता सामाजिक एकता को बढ़ावा देती है, लेकिन सामाजिक-आर्थिक असमानताएं और सांप्रदायिक तनाव जैसी चुनौतियाँ सामाजिक कल्याण और समाज की प्रगति के प्रति सामूहिक कर्तव्य में बाधा बन रही हैं।
मुख्य विषयवस्तु
सामाजिक एकता को प्रोत्साहित करने एवं सामूहिक कर्तव्य को बढ़ावा देने में नैतिकता का महत्व:
- साझा मूल्य और विश्वास: नैतिकता साझा मूल्यों और विश्वास को बढ़ावा देती है, साथ ही समाज में सहयोग और एकता को प्रोत्साहित करती है। उदाहरण के लिए, मनरेगा रोजगार के अवसर प्रदान कर नैतिक सिद्धांतों के माध्यम से गरीबी को कम करके सामाजिक एकजुटता को बढ़ाता है।
- नैतिक जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व: नैतिकता सामाजिक जिम्मेदारी को बढ़ावा देती है। भारत का “स्वच्छ भारत” अभियान नैतिक प्रथाओं का उदाहरण है, जो स्वच्छता और स्थिरता के माध्यम से सामाजिक एकजुटता और प्रगति को बढ़ावा देता है।
- विविधता और समावेशन के लिए सम्मान: नैतिकता समावेशिता को बढ़ावा देती है व एक सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण करती है जहां सभी व्यक्तियों को महत्व दिया जाता है। धर्मनिरपेक्षता और बहुलवाद के प्रति भारत की प्रतिबद्धता सम्मान को बढ़ावा देती है और इसकी विविध आबादी के बीच सामाजिक सामंजस्य में योगदान करती है।
- नैतिक नेतृत्व और नागरिक जुड़ाव: नैतिक नेतृत्व नागरिक जुड़ाव को प्रेरित करता है व सामुदायिक कल्याण के लिए जिम्मेदारी को बढ़ावा देता है। भारतीय नौकरशाह अरुणा रॉय और हर्ष मंदर आरटीआई और भोजन के अधिकार जैसे सामाजिक न्याय आंदोलनों की वकालत के माध्यम से नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देकर इसका उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
- नैतिक निर्णय-निर्माण और संघर्ष का समाधान: भारतीय नौकरशाह शक्ति सिन्हा और राजीव महर्षि निष्पक्षता, न्याय और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देते हुए नैतिक निर्णय-निर्माण ढांचे का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। लोक अदालत प्रणाली में उनकी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ विवादों को सुलझाने और एक एकजुट, समावेशी समाज को बढ़ावा देने में इसकी प्रभावशीलता को दर्शाती हैं।
- नैतिक शिक्षा और नैतिक विकास: नैतिक शिक्षा व्यक्तियों को समाज में सकारात्मक योगदान देने के लिए सशक्त बनाती है। भारतीय नौकरशाह, रमेश गुप्ता, अपनी पहल में नैतिकता को एकीकृत करके, करुणा, एवं जिम्मेदारी को बढ़ावा देकर और सामाजिक चुनौतियों का समाधान करके इसका उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
सीमाएं
- मूल्य बहुलवाद: नैतिक विविधता साझा सामूहिक कर्तव्य और सामाजिक एकजुटता में बाधा बन सकती है।
- नैतिक सापेक्षवाद: व्यक्तिपरक नैतिक मानक एक सार्वभौमिक नैतिक ढांचे की स्थापना में बाधा डालते हैं।
- नैतिक निर्णय और पूर्वाग्रह: पूर्वाग्रह नैतिक निर्णय लेने को प्रभावित करते हैं, संभावित रूप से समाज को विभाजित करते हैं।
- शक्ति की गतिशीलता: शक्ति असंतुलन नैतिक विचारों और सामूहिक कर्तव्य को प्रभावित करता है, जिससे सामाजिक एकता प्रभावित होती है।
- वैश्वीकरण और सांस्कृतिक टकराव: वैश्वीकरण सांस्कृतिक और नैतिक दृष्टिकोणों के बीच टकराव पैदा कर सकता है, सामूहिक कर्तव्य को चुनौती दे सकता है।
आगे की राह
- नैतिक नेतृत्व: कर्तव्य की सामूहिक भावना को प्रेरित करने और बढ़ावा देने के लिए नैतिक नेतृत्व को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- संवाद और मध्यस्थता: नैतिक संघर्षों को संबोधित करने और समझ को बढ़ावा देने के लिए रचनात्मक संवाद की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।
- सामाजिक कार्यक्रम और पहल: उन पहलों का समर्थन करना चाहिए जो सामाजिक चुनौतियों का समाधान करती हैं और सामूहिक कल्याण को बढ़ावा देती हैं।
- नैतिक ढाँचे और नीतियाँ: उन ढाँचों और नीतियों को लागू करना चाहिए जो निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में नैतिकता को एकीकृत करते हैं।
- सामुदायिक सहभागिता: समाज को आकार देने और सामूहिक जिम्मेदारी बढ़ाने के लिए सक्रिय सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना जरूरी है।
निष्कर्ष:
ठोस एवं उचित प्रयासों और नैतिक प्रथाओं के प्रति प्रतिबद्धता के साथ, हम अपने सभी नागरिकों के लिए एक अधिक एकजुट, समावेशी और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकते हैं।
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