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Q. भारत में उदारीकरण के बाद की अवधि में राज्यों के बीच विकास दर और समृद्धि के स्तर में लगातार अंतर देखा गया है। इसके आलोक में, बढ़ती स्थानिक असमानता को रेखांकित करने वाले प्रमुख कारणों का विश्लेषण कीजिए। इस विकासात्मक असंतुलन को दूर करने के लिए नीतिगत उपाय भी सुझाएं। (15 अंक, 250 शब्द)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना: उदारीकरण के बाद भारत के आर्थिक परिवर्तन और स्थानिक असमानता के उद्भव के अवलोकन से शुरुआत कीजिए।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • बढ़ती स्थानिक असमानता के प्रमुख कारणों पर चर्चा कीजिए।
    • विकासात्मक असंतुलन को दूर करने के लिए नीतिगत उपायों की रूपरेखा तैयार कीजिए।
  • निष्कर्ष:  भारत की स्थानिक असमानता को संबोधित करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण के महत्व को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष निकालिए।

 

प्रस्तावना:

भारत के उदारीकरण के बाद के युग को महत्वपूर्ण आर्थिक विकास द्वारा चिह्नित किया गया है, लेकिन इसमें राज्यों के बीच विकास दर और समृद्धि के स्तर में बढ़ती भिन्नता भी देखी गई, जिससे स्थानिक असमानता पैदा हुई।

मुख्य विषयवस्तु:

बढ़ती स्थानिक असमानता के प्रमुख कारण:

  • निवेश में असमानताएँ: राज्यों में निजी और सार्वजनिक निवेश में भिन्नता के कारण असमान विकास हुआ है।
  • विविध भौगोलिक और सामाजिक स्थितियाँ: भारतीय राज्यों की विविध भूगोल, जनसांख्यिकी और सामाजिक मानदंड विभिन्न आर्थिक विकास स्तरों में योगदान करते हैं।
  • आर्थिक नीतियों का प्रभाव: 1991 के बाद की उदारीकरण नीतियों ने मौजूदा क्षेत्रीय असमानताओं को बढ़ा दिया, विशेषकर राज्य-स्तरीय नीतिगत पहलों के माध्यम से।
  • आय और विकास संबंधी असमानताएं: धनी राज्य आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से धन सृजित की ओर उन्मुख हैं जबकि गरीब व पिछड़े राज्य असमान विकास के कारण धन का अपेक्षाकृत सृजन नहीं कर पाते हैं।
  • आर्थिक विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँ: कुछ राज्यों में त्वरित विकास देखा गया है, जबकि पहले से ही आर्थिक रूप से पिछड़े हुए राज्यों ने मंदी का सामना किया है।

विकासात्मक असंतुलन को दूर करने के लिए नीतिगत उपाय:

  • संसाधन का हस्तांतरण और विशेष दर्जा: योजना और वित्त आयोगों के माध्यम से केंद्र सरकार के संसाधन का हस्तांतरण, जिसमें विशेष श्रेणी का दर्जा भी शामिल है, का उद्देश्य आय असमानताओं को दूर करना है।
  • विकास संबंधी कार्यक्रम: सूखाग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम और सामुदायिक विकास कार्यक्रम जैसी बुनियादी जरूरतों और सेवाओं को संबोधित करने वाली पहल।
  • पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास: नर्मदा बांध और केन-बेतवा इंटरलिंक परियोजना जैसी परियोजनाएं पिछड़े क्षेत्रों में औद्योगिक विकास को लक्षित करती हैं।
  • ग्रामीण और लघु उद्योगों को बढ़ावा देना: स्थानीय आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे उद्योगों को बढ़ावा देना।
  • औद्योगिक गतिविधि का प्रसार और बुनियादी ढांचा: सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं को लागू करना और पिछड़े क्षेत्रों में निवेश के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए योजनाएं: पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि और प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना विशिष्ट जिला-स्तरीय विकास पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
  • प्रतिस्पर्धी संघवाद: राज्यों को निवेश और व्यापार को आकर्षित करने, प्रशासनिक दक्षता और विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष:

भारत की स्थानिक असमानता को संबोधित करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें क्षेत्र-विशिष्ट विकास, संसाधन आवंटन और बुनियादी ढांचे में वृद्धि के लिए लक्षित नीतियां शामिल हैं। इन नीतियों को लागू करने और सभी क्षेत्रों में संतुलित और समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग महत्वपूर्ण है।

 

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