उत्तर:
दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना: भारत की आर्थिक वृद्धि और अंतर-राज्यीय आय असमानताओं जैसे मुद्दे पर चर्चा कीजिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- ऐतिहासिक और सामाजिक मुद्दे, कृषि पर निर्भरता, अनौपचारिक रोजगार, क्षेत्रीय विकास से जुड़ी असमानताएं, वैश्वीकरण के प्रभाव और बदलती शैक्षिक और घरेलू स्थितियों जैसे कारकों पर चर्चा कीजिए।
- लक्षित सामाजिक योजनाओं, समावेशी नीतियों, शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश, संतुलित क्षेत्रीय विकास, कृषि सहायता और डेटा-संचालित जैसी नीतिगत सुधारों का सुझाव दीजिए।
- निष्कर्ष: सम्पूर्ण भारत में आर्थिक असमानताओं को कम करने और समान विकास सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दीजिए।
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प्रस्तावना:
हाल के दशकों में भारत की महत्वपूर्ण आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ इसके राज्यों में लगातार और व्यापक आय से संबंधित असमानताएं भी बढ़ी हैं। यह असमान विकास भारत के आर्थिक परिदृश्य की जटिलता को उजागर करता है, जहां कुछ क्षेत्र फलते-फूलते हैं वहीं कई अन्य पीछे रह जाते हैं।
मुख्य विषयवस्तु:
अंतर-राज्य आर्थिक और आय संबंधी असमानताओं के कारण:
- ऐतिहासिक और सामाजिक कारक: कुछ सामाजिक वर्गों के खिलाफ भेदभाव ने ऐतिहासिक रूप से शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य अवसरों तक पहुंच सीमित कर दी है। उदाहरण के लिए, महिलाओं की शिक्षा और रोजगार के अवसर परंपरागत रूप से पिछड़ रहे हैं।
- कृषि पर निर्भरता: जनसंख्या की एक बड़ी आबादी अभी भी कृषि कार्यों पर निर्भर है, जो अन्य क्षेत्रों की तुलना में सकल घरेलू उत्पाद में कम योगदान देता है। कृषि विकास में क्षेत्रीय असमानताओं, जैसे हरित क्रांति के असमान लाभ, के कारण यह विसंगति और बढ़ गयी है।
- बड़े पैमाने पर अनौपचारिक रोजगार: भारतीय श्रम शक्ति का लगभग 80% अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जिसमें नौकरी की असुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा का अभाव और औपचारिक क्षेत्र की तुलना में व्यापक वेतन में अंतर है।
- वृद्धि और विकास में अंतर-राज्य असमानताएँ: विभिन्न क्षेत्रों में आसमान वृद्धि दरों ने असमानताओं में योगदान दिया है। उदाहरण के लिए, औद्योगिक और तकनीकी प्रगति ने कुछ राज्यों को दूसरों की तुलना में असमान रूप से लाभान्वित किया है।
- वैश्वीकरण और आर्थिक नीतियां: वैश्वीकरण और आर्थिक नीतियों ने अमीरों को लाभ पहुंचाया है, जिससे आय का अंतर बढ़ गया है। वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता ने प्रायः स्थानीय निवेशकों और उत्पादकों पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।
- शिक्षा और घरेलू स्थितियाँ: हालाँकि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के कारण शिक्षा और घरेलू स्थितियों में सुधार हुआ है, फिर भी राज्यों में इन क्षेत्रों में असमानताएँ अभी भी मौजूद हैं।
- समग्र सामाजिक-आर्थिक कारक: सामाजिक-आर्थिक विकास, जिसमें आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा और रोजगार शामिल है, राज्यों के बीच काफी भिन्न होता है। सामाजिक-आर्थिक विकास असमानताओं को मापने के लिए समग्र सूचकांकों का उपयोग करने वाले अध्ययनों से इस पर प्रकाश डाला गया है।
विकास संबंधी अंतरालों को दूर करने के उपाय:
- लक्षित सामाजिक सुरक्षा योजनाएं: स्वच्छता, पानी की उपलब्धता और बिजली तक पहुंच पर केंद्रित योजनाओं के माध्यम से शिक्षा और घरेलू स्थितियों में सुधार से असमानताओं को कम करने में मदद मिल सकती है।
- समावेशी आर्थिक नीतियां: नीतियों को समावेशी होना चाहिए, औपचारिक और अनौपचारिक दोनों क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और प्रत्येक राज्य की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करना चाहिए।
- शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश: मूलभूत शिक्षा और स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में दीर्घकालिक निवेश अंतर्निहित सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को दूर कर सकता है।
- संतुलित क्षेत्रीय विकास: संसाधनों के समान वितरण और पिछड़े राज्यों में निवेश सहित संतुलित क्षेत्रीय विकास की रणनीतियाँ।
- उन्नत कृषि सहायता: प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, बेहतर बाजार पहुंच और वित्तीय सहायता के माध्यम से, विशेष रूप से कम विकसित क्षेत्रों में कृषि क्षेत्र को मजबूत करना।
- असमानता डेटा पर आधारित नीतिगत सुधार: लक्षित सुधार रणनीतियों को तैयार करने और लागू करने के लिए आय और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं पर डेटा का उपयोग करना।
निष्कर्ष:
गौरतलब है कि भारत की आर्थिक वृद्धि सराहनीय है, ऐसे में समावेशी और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए अंतर-राज्य आर्थिक और आय असमानताओं को संबोधित करना महत्वपूर्ण है। इन अंतरालों को पाटने और सभी राज्यों में समान विकास हासिल करने के लिए लक्षित नीतियों, सामाजिक बुनियादी ढांचे में निवेश और संतुलित क्षेत्रीय विकास से जुड़ा एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है।
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