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राज्य निर्वाचन आयोगों को सशक्त बनाना

Lokesh Pal August 31, 2024 05:19 90 0

संदर्भ

वर्तमान में राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) की शक्तियाँ लगातार कम होती जा रही हैं और कुछ मामलों में तो वे अपनी राज्य सरकारों के साथ मुकदमेबाजी में भी उलझे हुए हैं।

राज्य निर्वाचन आयोग के बारे में

  • भारत के संघीय ढाँचे में जमीनी स्तर पर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए  राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) की स्थापना की गई थी।
    • भारत का राज्य निर्वाचन आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है, जो राज्यों में स्थानीय निकायों, जिनमें नगर पालिकाएँ, पंचायतें और अन्य स्थानीय सरकारी संस्थाएँ शामिल हैं, के चुनावों के लिए जिम्मेदार है।
    • वर्ष 1992 से पहले इन निकायों के चुनाव संबंधित राज्य सरकारों द्वारा आयोजित किए जाते थे।
  • स्थापना: स्थानीय स्वशासन को कानूनी मान्यता प्रदान करने के लिए संविधान में वर्ष 1992 में 73वें और 74वें संशोधन के माध्यम से संशोधन किया गया, जिससे स्थानीय स्वशासन को राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में उनका उचित स्थान मिला।
    • अनुच्छेद-243 (K) तथा अनुच्छेद-243 (ZA): इन अनुच्छेदों के तहत प्रत्येक राज्य में एक संवैधानिक निकाय के रूप में राज्य निर्वाचन आयोग स्थापित करना शामिल किया गया था।
  • नियुक्ति: इसमें एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होता है, जिसे राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • कार्यकाल और सेवा की शर्तें: उनकी सेवा की शर्तें तथा कार्यकाल भी राज्यपाल द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
    • नियुक्ति के पश्चात् उसकी सेवा की शर्तों में उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
  • महत्त्व: यह राजनीतिक दलों की सहमति से आदर्श आचार संहिता का कठोरता से पालन करके चुनाव में राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करता है।
  • शक्तियाँ और कार्य
    • उनके पास राज्य में पंचायतों तथा नगरपालिकाओं के सभी चुनावों के लिए मतदाता सूचियों की तैयारी और संचालन के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्तियाँ  हैं।
      • मतदाता सूची तैयार न करना: राज्य के विभिन्न स्थानीय निकाय अधिनियमों के प्रावधानों के अनुसार, राज्य निर्वाचन आयोग स्थानीय निकाय चुनावों के लिए अलग से मतदाता सूची तैयार नहीं करता है।
        • लेकिन संबंधित स्थानीय निकायों के प्रासंगिक वार्डों का प्रतिनिधित्व करने के लिए उसे विभाजित करके, भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के प्रावधानों के तहत तैयार की गई मतदाता सूचियों का उपयोग करता है।
    • परिसीमन शक्तियाँ: राज्य निर्वाचन आयोग सभी निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करने के लिए भी जिम्मेदार है, जो स्थानीय निकायों के प्रत्येक आम चुनाव से पहले यानी प्रत्येक 5 वर्ष बाद किया जाता है।
    • राजनीतिक दलों को पंजीकृत एवं अपंजीकृत करना: राज्य निर्वाचन आयोग को राज्य में राजनीतिक दलों को पंजीकृत एवं अपंजीकृत करने का भी अधिकार है।

SEC की प्रणालीगत सीमित शक्तियाँ

भारत में राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) की घटती शक्तियों के कारण स्थानीय निकायों के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

प्रणालीगत सीमित शक्तियों के प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं:-

  • विधायी अस्पष्टताएँ: राज्य निर्वाचन आयोगों को नियंत्रित करने वाले कानूनी ढाँचे में अस्पष्टताएँ और राज्य चुनाव निर्वाचन एवं राज्य सरकार की शक्तियों के बीच ओवरलैप भ्रम और संघर्ष उत्पन्न कर सकते हैं।
    • कुछ मामलों में: राज्य सरकारों ने ऐसे कानून पारित किए हैं, जो SEC की शक्तियों को कम करते हैं, जिससे इसकी संवैधानिक जिम्मेदारियों को निभाने की क्षमता सीमित हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2020 में आंध्र प्रदेश SEC तथा कई अन्य द्वारा दायर मामलों में, उच्चतम न्यायालय ने आंध्र प्रदेश के एक अध्यादेश को खारिज कर दिया, जिसने पंचायत राज संस्थाओं के चुनावों में बाधा उत्पन्न की थी।
  • न्यायिक समर्थन का अभाव: हालाँकि SEC को संवैधानिक दर्जा प्राप्त है, लेकिन ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ न्यायपालिका ने राज्य सरकारों के साथ विवादों में SEC की स्वायत्तता को मजबूती से बरकरार नहीं रखा है।
    • मजबूत न्यायिक हस्तक्षेप का अभाव राज्य सरकारों को SEC को और अधिक कमजोर करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
      • उदाहरण के लिए: हाल ही में कर्नाटक SEC ने कर्नाटक सरकार के खिलाफ एक अवमानना ​​याचिका दायर की, जो SEC द्वारा पहले दायर की गई याचिका के जवाब में थी, जिसमें उसे पंचायत राज संस्थाओं के परिसीमन तथा चुनाव कराने की अनुमति देने की माँग की गई थी (जो पहले ही साढ़े तीन वर्ष से अधिक विलंबित हो चुका है)।
      • कर्नाटक सरकार ने दिसंबर 2023 में उच्च न्यायालय को आश्वासन दिया था कि वह SEC को चुनाव कराने में सक्षम बनाने के लिए दो सप्ताह के भीतर परिसीमन तथा आरक्षण विवरण प्रकाशित करेगी।
  • 74वें संविधान (संशोधन) अधिनियम का कार्यान्वयन: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा 18 राज्यों में किए गए लेखापरीक्षण से पता चलता है कि 2,240 शहरी स्थानीय सरकारों में से 1,560 (70%) के पास निर्वाचित परिषद नहीं थी।
    • CAG ने अपनी कर्नाटक रिपोर्ट में कहा है कि CAG का अशक्त होना अक्सर समय पर चुनाव में देरी का कारण बनता है।
  • चुनाव कराने में देरी: राज्य सरकारें प्रशासनिक या तार्किक कारणों का हवाला देकर स्थानीय निकाय चुनाव कराने में विलंब कर सकती हैं।
    • इस तरह की देरी प्रशासकों की नियुक्ति करके या मौजूदा पदाधिकारियों के कार्यकाल को बढ़ाकर, चुनावी प्रक्रिया को दरकिनार करके स्थानीय निकायों पर नियंत्रण बनाए रखने की एक रणनीति हो सकती है।
  • राज्य सरकारों द्वारा हस्तक्षेप: कुछ मामलों में, राज्य सरकारों ने अपनी स्वतंत्रता से समझौता करते हुए SEC पर अनुचित प्रभाव डालने का प्रयास किया है।
    • यह विभिन्न रूपों में प्रकट हो सकता है, जैसे राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में देरी करना, चयन प्रक्रिया को प्रभावित करना या चुनाव कराने में राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकार को कमजोर करना।
      • उदाहरण के लिए: जनाग्रह के भारतीय नगर प्रणाली के वार्षिक सर्वेक्षण (ASICS), 2023 से पता चलता है कि 34 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 11 ने वार्ड परिसीमन करने के लिए SEC को अधिकार दिया है।
      • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, इन राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों (अर्थात् अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, अरुणाचल प्रदेश, बिहार, दादरा और नागर हवेली, दमन और दीव, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, केरल, लद्दाख, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल) में भारत की जनसंख्या का केवल 35% हिस्सा है।

प्रणालीगत सीमित शक्तियों के निहितार्थ

  • स्थानीय लोकतंत्र का पतन: SEC को शक्तिहीन करने से स्थानीय स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर होती है तथा जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है।
    • स्थानीय निकाय कम जवाबदेह हो सकते हैं तथा राज्य सरकार के नियंत्रण के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।
  • सार्वजनिक विश्वास को कमजोर करना: जब SEC की स्वायत्तता से समझौता किया जाता है, तो इससे चुनावी प्रक्रिया में जनता का विश्वास खत्म हो सकता है।
  • चुनावी अखंडता में कमी: मजबूत और स्वतंत्र SEC के बिना, स्थानीय निकाय चुनावों की अखंडता से समझौता किया जा सकता है, जिससे अनुचित व्यवहार, धाँधली या अन्य चुनावी कदाचार हो सकते हैं।
  • सत्ता का केंद्रीकरण: SEC की प्रणालीगत सीमित शक्तियाँ राज्य सरकारों के तहत सत्ता के केंद्रीकरण में योगदान देता है, जो स्थानीय शासन को बाधित कर सकता है और विकेंद्रीकृत निर्णय लेने की प्रभावशीलता को कम कर सकता है।

राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) बनाम भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI): सशक्तीकरण/स्वतंत्रता का स्तर 

यहाँ राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) तथा भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) की शक्तियों और भूमिकाओं की तुलना करने वाली एक तालिका दी गई है:

पहलू  राज्य निर्वाचन आयोग (SEC)  भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI)
संवैधानिक प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-243K तथा 243ZA संविधान का अनुच्छेद-324
अधिकार क्षेत्र स्थानीय निकाय चुनाव (पंचायत और शहरी स्थानीय निकाय) संसदीय एवं राज्य विधानसभा चुनाव
स्वायत्तता सीमित, अक्सर राज्य सरकारों से प्रभावित उच्च, केंद्र सरकार से स्वतंत्र
शक्तियाँ स्थानीय चुनावों की देखरेख करना, स्थानीय निकायों के लिए मतदाता सूची तैयार करना। राष्ट्रीय तथा राज्य चुनावों की देखरेख, मतदाता सूची तैयार करना।
संसाधनों का आवंटन संसाधनों तथा वित्तपोषण के लिए राज्य सरकारों पर निर्भर केंद्र सरकार से प्रत्यक्ष वित्तपोषण प्राप्त होता है।
आयुक्तों को हटाना अपेक्षाकृत आसान, राज्य सरकार के प्रभाव के अधीन मुश्किल, संविधान द्वारा संरक्षित
विवाद समाधान अक्सर राज्य न्यायालयों के माध्यम से जाना पड़ता है, जिससे देरी हो सकती है। समाधान के लिए सीधे उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है।
कानूनी प्राधिकार निर्णयों को लागू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। निर्णयों को लागू करने के लिए मजबूत कानूनी समर्थन।

SEC को मजबूत करने के लिए सुझाए गए सुधार

  • पारदर्शिता और स्वतंत्रता के मामले में SECs को सशक्त बनाना: SEC को स्थानीय सरकार के चुनावों के सभी मामलों पर भारत के चुनाव आयोग के बराबर पूरी तरह से सशक्त बनाया जाना चाहिए, जैसा कि वर्ष 2006 के किशन सिंह तोमर बनाम अहमदाबाद शहर के नगर निगम तथा अन्य मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था।
    • सुझाव: इसमें नियुक्ति भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) की तरह की जानी चाहिए। एक तीन सदस्यीय SEC जिसे एक समिति द्वारा नियुक्त किया जाता है जिसमें मुख्यमंत्री, विधानसभा में विपक्ष के नेता और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं।
  • संशोधन: राज्य सरकार द्वारा नियुक्त SEC कार्य नहीं कर रहा है। केंद्र सरकार को इस संदर्भ में 74वें संविधान (संशोधन) अधिनियम में संशोधन करना चाहिए।
    • निश्चित अंतराल संशोधन: वार्ड की सीमाओं का परिसीमन तथा सीटों का आरक्षण केवल निश्चित अंतराल पर, जैसे कि 10 वर्षों में एक बार, अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।
    • इस जाँच के अभाव में राज्य सरकारें मनमाने ढंग से कार्य कर सकती हैं, जिससे स्थानीय सरकारों के चुनावों में अनावश्यक देरी हो सकती है।
  • SEC की शक्ति को मजबूत किया जाना चाहिए: वार्ड परिसीमन तथा स्थानीय सरकारों के लिए सीटों के आरक्षण की शक्तियाँ SEC में निहित की जानी चाहिए।
    • इसके अलावा, स्थानीय सरकारों के महापौर/अध्यक्ष, उप-महापौर/उपाध्यक्ष के पदों पर आरक्षण का कार्य SEC को सौंपा जाना चाहिए, जैसे कि 10 वर्षो में एक बार, जहाँ लागू हो।
    • स्थानीय चुनावों के बाद इन पदों के लिए चुनाव में अत्यधिक देरी होती है, क्योंकि राज्य सरकारें इन पदों के लिए आरक्षण रोस्टर को समय पर प्रकाशित करने में विफल रहती हैं।
  • महापौर, अध्यक्ष, चेयरपर्सन और स्थायी समितियों के चुनाव का कार्य SEC को सौंपना: राज्य सरकारों द्वारा नियुक्त पीठासीन अधिकारियों द्वारा भी कदाचार सामने आया है, इसका एक उदाहरण वर्ष 2024 में चंडीगढ़ नगर निगम परिषद में महापौर का चुनाव है। 
    • इसलिए, संभवतः SEC को महापौर, अध्यक्ष, चेयरपर्सन और स्थायी समितियों के चुनाव का कार्य सौंपा जाना चाहिए।
  • पर्याप्त संसाधन तथा वित्तपोषण
    • प्रत्यक्ष फंडिंग: सुनिश्चित करना कि राज्य सरकारों पर वित्तीय निर्भरता को रोकने के लिए SEC को राज्य के बजट से सीधे फंडिंग मिले, ठीक उसी तरह जैसे ECI को केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
    • बुनियादी ढाँचा और कर्मचारी: स्थानीय चुनावों को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने के लिए SEC को पर्याप्त बुनियादी ढाँचा, प्रौद्योगिकी और कुशल कर्मचारी प्रदान करना।
  • सशक्त न्यायिक निरीक्षण
    • त्वरित न्यायिक समीक्षा (Expedited Judicial Review): SEC से जुड़े विवादों का समाधान निकालने के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट या विशेष पीठ स्थापित करना, जिससे स्थानीय चुनावों से संबंधित मुद्दों का समय पर समाधान सुनिश्चित हो सके।
    • राज्य सरकार के हस्तक्षेप से सुरक्षा: SEC के लिए कानूनी सुरक्षा को मजबूत करना, जिससे उन्हें ECI द्वारा प्राप्त सुरक्षा के समान, राज्य सरकारों के अनुचित हस्तक्षेप के बिना कार्य करने की अनुमति मिल सके।

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