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चीन की आक्रामक गतिविधियाँ

Lokesh Pal September 02, 2024 01:01 104 0

संदर्भ 

हाल के महीनों में चीन ने दक्षिण चीन सागर में तीन प्रमुख चट्टानों एवं द्वीपों से फिलीपींस के जहाजों की आवाजाही को रोकने के लिए सैन्य तथा तट रक्षक जहाजों को तैनात किया है।

संबंधित तथ्य

  • चीन ने मिसाइल प्रणालियों एवं लड़ाकू विमानों के लिए रनवे से सुसज्जित कृत्रिम द्वीप बनाए हैं तथा जहाजों को तैनात किया है। 
    • इस संबंध में फिलीपींस सरकार का कहना है कि चीन उसके जहाजों के आवागमन को अवरोधित करता है एवं उसके मछुआरों द्वारा किए जा रहे मत्स्यन को प्रभावित करता  है।
  • हालिया घटनाएँ तब सामने आई हैं, जब फिलीपींस ने पारंपरिक सहयोगी के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंध मजबूत किए हैं:
    • सबीना शोल (Sabina Shoal)
      • यह पलावन के फिलीपीन द्वीप से सिर्फ 140 किलोमीटर पश्चिम में अवस्थित है।
      • इसमें चीन के जहाजों एवं फिलीपींस के तट रक्षक जहाजों के बीच संघर्ष देखा गया है।

    • सेकेंड थॉमस शोल (Second Thomas Shoal)
      • जून 2024 में, इस विवादित द्वीप के पास चीनी तट रक्षक जहाजों और फिलीपींस के जहाजों के बीच टकराव उत्पन्न हुआ था।
    • स्कारबोरो शोल (Scarborough Shoal)
      • वर्ष 2012 में, बीजिंग ने फिलीपींस के करीब एक और विवादित क्षेत्र स्कारबोरो शोल पर कब्जा कर लिया।

दक्षिण चीन सागर (South China Sea) के बारे में

  • दक्षिण चीन सागर, पश्चिमी प्रशांत महासागर का एक सीमांत सागर (एक प्रकार का समुद्र जो आंशिक रूप से भूमि से घिरा हुआ है एवं एक बड़े महासागर या समुद्र से जुड़ा हुआ है) है।
    • यह ताइवान जलडमरूमध्य (Taiwan Strait) द्वारा पूर्वी चीन सागर से एवं लूजॉन जलडमरूमध्य (Luzon Strait) द्वारा फिलीपीन सागर (Philippine Sea) से जुड़ा हुआ है।
  • सीमावर्ती राष्ट्र एवं क्षेत्र: पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान), फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर एवं वियतनाम।
    • थाईलैंड की खाड़ी (Gulf of Thailand) एवं टोंकिन की खाड़ी (Gulf of Tonkin) भी दक्षिण चीन सागर का भाग हैं।
  • वर्ष 2016 में UNCLOS ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाया कि दक्षिण चीन सागर में नाइन-डैश लाइन के भीतर चीन के दावे गैर-कानूनी हैं एवं फिलीपींस के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) का उल्लंघन किया है।
    • नाइन-डैश लाइन 1940 के दशक के चीनी मानचित्रों पर एक U-आकार की सीमा है, जिसके माध्यम से चीन अपनी सुविधाओं के हिसाब से दक्षिण चीन सागर के लगभग 90% हिस्से पर दावा करता है।

चीन की मजबूत रणनीति

  • क्षेत्रीय दावे एवं सैन्यीकरण
    • ताइवान के आसपास गहन सैन्य अभ्यास: चीन ने ताइवान के आसपास अपने सैन्य अभ्यास तेज कर दिए हैं, जिसमें ताइवान जलडमरूमध्य एवं आसपास के हवाई क्षेत्र में युद्धक विमान तथा नौसैनिक जहाज भेजना भी शामिल है।
    • सेनकाकू/डियाओयू द्वीपों (Senkaku/Diaoyu Islands) के आसपास गतिविधियाँ बढ़ीं हैं: चीन ने विवादित पूर्वी चीन सागर द्वीपों के आसपास समुद्री एवं हवाई अभियान तेज कर दिया है, जिस पर जापान भी दावा करता है।
  • बुनियादी ढाँचा विकास
    • कृत्रिम द्वीप एवं सैन्य प्रतिष्ठान: चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप एवं सैन्य प्रतिष्ठान बनाए हैं।
    • वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैन्य बुनियादी ढाँचे में वृद्धि: वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) पर सैन्य बुनियादी ढाँचे एवं सैनिकों की तैनाती में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के जरिए अफ्रीका में विस्तार: चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के जरिए अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।
  • कूटनीतिक एवं आर्थिक दबाव
    • दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में प्रभाव: चीन सोलोमन द्वीप एवं पापुआ न्यू गिनी जैसे देशों के साथ राजनयिक तथा आर्थिक समझौते हासिल करके दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।
    • लिथुआनिया पर आर्थिक प्रतिबंध: लिथुआनिया के ताइवान प्रतिनिधि कार्यालय के फैसले के जवाब में चीन ने आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं।
    • प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर कार्रवाई: चीन ने अलीबाबा (Alibaba), टेनसेंट (Tencent) एवं दीदी (Didi) जैसी प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनियों पर जुर्माना लगाया है।
  • कानूनी ढाँचे का लाभ उठाना
    • अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढाँचे का चयनात्मक उपयोग: चीन अपने कार्यों को उचित ठहराने के लिए चुनिंदा रूप से अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढाँचे का लाभ उठाता है, जबकि उसके हितों के विपरीत फैसलों की अवहेलना करता है, जैसे कि दक्षिण चीन सागर पर वर्ष 2016 के स्थायी मध्यस्थता न्यायालय का फैसला।

चीन की रणनीति का महत्त्व

  • क्षेत्रीय प्रभुत्व: संयुक्त राज्य अमेरिका एवं भारत जैसी अन्य प्रमुख शक्तियों के प्रभाव को चुनौती देते हुए स्वयं को एशिया में प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करना।
  • सामरिक संसाधनों पर नियंत्रण: मत्स्यपालन, हाइड्रोकार्बन एवं खनिज भंडार जैसे महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच प्राप्त करना, जो इसकी आर्थिक सुरक्षा के लिए अत्यावश्यक  हैं।
  • समुद्री मार्गों को सुरक्षित करना: प्रमुख शिपिंग लेन को नियंत्रित करना, जो इसके व्यापार एवं ऊर्जा आयात के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • क्षेत्रीय व्यवस्था को आकार देना: अपने रणनीतिक हितों का समर्थन करने के लिए, संभावित रूप से उन बहुपक्षीय संस्थानों को दरकिनार करना, जो इसके कार्यों का विरोध करते हैं।

आगे की राह

  • गठबंधनों को मजबूत करना: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता के जवाब में क्वाड्रीलेटरल सिक्यूरिटी डायलाॅग (Quadrilateral Security Dialogue) को मजबूत करने की आवश्यकता है।
    • अपनी रणनीतिक अवधारणा के हिस्से के रूप में NATO द्वारा हाल ही में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर जोर दिया गया है।
  • नियम आधारित आदेश को बढ़ावा देना: समुद्री कानूनों को लागू करने एवं गैर-कानूनी समुद्री दावों के खिलाफ कानूनी तंत्र के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए UNCLOS तथा वर्ष 2016 के मध्यस्थता फैसले के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन बढ़ाना।
    • दक्षिण चीन सागर में विवादों के प्रबंधन के लिए आसियान आचार संहिता (ASEAN Code of Conduct) की स्थापना के लिए वार्ता में तेजी लाई जानी चाहिए।
  • आर्थिक विविधीकरण: यूरोप के भीतर सेमीकंडक्टर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए यूरोपियन चिप्स एक्ट (European Chips Act)।
    • ऑस्ट्रेलिया अपने निर्यात बाजारों का विविधीकरण कर रहा है, विशेष रूप से रेअर अर्थ एवं कोयले जैसे खनिजों में।
  • रणनीतिक संवादों को पुनर्स्थापित करना: द्विपक्षीय मुद्दों को संबोधित करने एवं आपसी समझ को बढ़ावा देने, क्षेत्रीय संघर्षों तथा आर्थिक चिंताओं को प्रबंधित करने में मदद करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका-चीन रणनीतिक एवं आर्थिक संवाद जैसे प्लेटफॉर्मों को सुदृढ़ करना।

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