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भ्रामक विज्ञापन और नकली दवा

Lokesh Pal September 02, 2024 03:41 50 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रामक विज्ञापन के आधार पर, आयुष मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी, जिसमें औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 को हटा  दिया गया था।

भ्रामक विज्ञापनों के मुद्दे की पृष्ठभूमि

सर्वोच्च न्यायालय इस वर्ष के प्रारंभ से ही भ्रामक विज्ञापनों के आरोपों पर सुनवाई कर रहा है।

  • प्रारंभिक चिंताएँ: 15 मार्च, 2018 को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 108वीं रिपोर्ट में भ्रामक विज्ञापनों के बारे में चिंता जताई थी।
  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम 1945 के अंतर्गत नियम 170: 21 दिसंबर, 2018 को आयुष मंत्रालय ने नियम 170 को पेश करते हुए एक अधिसूचना जारी की थी।
    • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम 1945 के अंतर्गत नियम 170 के अधिदेश
      • कोई भी निर्माता या उनका एजेंट किसी रोग, विकार, सिंड्रोम या स्थिति के निदान, इलाज, शमन, उपचार अथवा रोकथाम के लिए आयुर्वेद, सिद्ध या यूनानी (ASU) दवाओं का विज्ञापन नहीं कर सकता है।
      • जिन विज्ञापनों पर रोक नहीं लगाई गई है, उनके लिए निर्माताओं को राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण या औषधि नियंत्रक से विशिष्ट पहचान संख्या प्राप्त करनी होगी।
  • कानूनी चुनौतियाँ तथा नियम पर रोक
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने 15 जनवरी, 2019 को इस नियम पर सबसे पहले रोक लगाई थी। 
    • इसी तरह, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 11 फरवरी, 2019 को और केरल उच्च न्यायालय ने 29 अप्रैल, 2019 को इस पर रोक लगाई थी।
  • समिति का गठन: आयुर्वेद, सिद्ध या यूनानी दवाओं से संबंधित संशोधन पर विचार करने के लिए समिति का गठन किया गया है।
    • सिफारिशें: 15 मार्च, 2021 को यह सिफारिश आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड के समक्ष रखी गई, जो औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत एक वैधानिक निकाय है।
      • इसने नियम 170 को हटाने की सिफारिश की गई।
      • औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 में संशोधन पर भी विचार किया जा रहा है तथा भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम के संबंध में सुझाव दिए गए हैं।
  •  कार्रवाई: आयुष मंत्रालय ने वर्ष 2021 में औषधि तथा प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के संशोधित मसौदा नियमों को प्रसारित किया, जिसमें नियम 170 को हटा दिया गया था।
    • हालाँकि, 27 जून, 2022 को ‘आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड’  की एक बैठक में यह निर्णय लिया गया, कि नियम 170 को हटाने की आवश्यकता नहीं है।
    • मामले को चुनौती: 1 मई, 2023 को, दिल्ली उच्च न्यायालय ने नियम 170 को चुनौती का निपटारा करते हुए  नियम 170  की आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड द्वारा पुनः जाँच और पुनर्विचार का आदेश दिया।
      • 25 मई, 2023 को तकनीकी बोर्ड की बैठक के आधार पर, आयुष मंत्रालय ने विभिन्न राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के लाइसेंसिंग प्राधिकरणों को औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 के तहत कोई कार्रवाई शुरू न करने का निर्देश दिया।
      • नियम 170 को हटाने संबंधी औपचारिक अधिसूचना में समय लगेगा।
  • RTI  का उत्तर: अक्टूबर 2023 में आयुष मंत्रालय ने जवाब दिया कि, ‘नियम 170 को हटाने का निर्णय एक सचेत निर्णय था, जो व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने की सरकार की नीति पर विचार करते हुए लिया गया था।’
    • इसमें यह भी कहा गया कि भ्रामक विज्ञापनों पर अंकुश लगाने के लिए आयुष के फार्माकोविजिलेंस कार्यक्रम को मजबूत किया गया है।
  • नियम 170 का प्रवर्तन: सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में आयुष मंत्रालय द्वारा औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 को हटाने पर रोक लगा दी है।
    • आयुष मंत्रालय की कार्रवाइयों की उच्चतम न्यायालय  द्वारा की गई जाँच, वर्ष 2022 में भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) द्वारा शुरू किए गए एक मामले का हिस्सा है।
    • भारतीय चिकित्सा संघ IMA की याचिका में भ्रामक विज्ञापनों और झूठे दावों, विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के दौरान योग गुरु बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद  द्वारा दिए गए बयानों को लक्षित करने पर चिंता जताई गई है।
  • पतंजलि भ्रामक विज्ञापन मामला: उच्चतम न्यायालय  ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को झूठे विज्ञापन जारी करने से रोक दिया, विशेष रूप से कोविड-19 के इलाज के रूप में ‘कोरोनिल’ को बढ़ावा देने के लिए।
  • हालिया घटनाक्रम: 23 अप्रैल, 2024 को उच्चतम न्यायालय  ने केंद्र सरकार से एक निकाय की मात्र सिफारिशों के आधार पर नियम 170 पर रोक लगाने के बारे में स्पष्टीकरण माँगा, जबकि नियम को कानूनी रूप से हटाया नहीं गया था।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के स्पष्टीकरण को खारिज कर दिया और कहा कि प्रशासनिक निर्देश कानून में लागू होने वाले नियम पर रोक नहीं लगा सकते।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के अनुरूप विज्ञापनदाताओं को विज्ञापन प्रसारित करने या प्रकाशित करने से पहले स्व-घोषणा प्रस्तुत करने की आवश्यकता के द्वारा एक सख्त रुख अपनाया था।
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक: 1 जुलाई, 2024 को आयुष मंत्रालय ने आधिकारिक तौर पर नियम 170 को हटाते हुए एक अधिसूचना प्रकाशित की, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है।
      • न्यायालय वर्तमान में भ्रामक विज्ञापनों के मुद्दे पर समग्र रूप से विचार कर रहा है।

आयुष स्वास्थ्य सेवा प्रणाली 

  • आयुष स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी शामिल हैं।
    • इसमें घर पर किए जाने वाले घरेलू उपचार/स्व-चिकित्सा/स्व-उपचार भी शामिल होंगे, जिनका उपयोग घर के किसी सदस्य द्वारा किया जाता है तथा उपचार/चिकित्सा के निवारक या लाभकारी प्रभावों के बारे में जानकारी रखता है।

भ्रामक विज्ञापन

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 किसी भी वस्तु या सेवा के लिए भ्रामक विज्ञापन को परिभाषित करता है

  • किसी उत्पाद या सेवा का गलत वर्णन करना।
  • झूठी गारंटी देना।
  • ऐसा स्पष्ट या निहित प्रतिनिधित्व करना जो अनुचित व्यापार व्यवहार का गठन करेगा।
  • महत्त्वपूर्ण जानकारी छिपाना, ये सभी उपभोक्ताओं को गुमराह करने के उदाहरण हैं।

भ्रामक विज्ञापनों से निपटने के लिए कानून

  • भारतीय मानक ब्यूरो (प्रमाणन) विनियम, 1988
  • खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006
  • औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 (DOMA)
  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940
  • सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का निषेध और व्यापार, वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का विनियमन) अधिनियम 2003
  • ऑनलाइन शिकायत पंजीकरण के लिए उपभोक्ता मामले विभाग द्वारा भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ शिकायत (GAMA) पोर्टल

भ्रामक विज्ञापनों से निपटने के लिए नियामक संघटन 

  • भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI): एक गैर-वैधानिक न्यायाधिकरण, जिसकी स्थापना वर्ष 1985 में विज्ञापन और मीडिया उद्योगों के पेशेवरों द्वारा की गई थी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत में विज्ञापन निष्पक्ष, ईमानदार हों तथा ASCI संहिता का अनुपालन सुनिश्चित करें।
  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA): इसे उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार प्रथाओं और झूठे या भ्रामक विपणन से जुड़ी चिंताओं को विनियमित करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 द्वारा स्थापित किया गया था।
    • दिशा-निर्देश जारी करना: CCPA ने गुमराह करने वाले विज्ञापनों की रोकथाम और समर्थन के लिए दिशा-निर्देश, वर्ष 2022 जारी किए हैं।
      • गैर-भ्रामक तथा वैध विज्ञापन।
      • प्रलोभन और निःशुल्क दावा विज्ञापन, तथा निर्माताओं, सेवा प्रदाताओं, विज्ञापनदाताओं और विज्ञापन एजेंसियों के कर्तव्य।
    • उल्लंघन के लिए दंड
      • भ्रामक विज्ञापन के लिए निर्माताओं, विज्ञापनदाताओं और समर्थकों पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना।
        • इसके बाद  उल्लंघनों के दोहराव पर जुर्माना 50 लाख रुपये तक हो सकता है।
      • CCPA  भ्रामक विज्ञापन के समर्थक को एक वर्ष तक कोई भी विज्ञापन देने से प्रतिबंधित कर सकता है।
        • इसके बाद के उल्लंघनों के लिए प्रतिबंध को 3 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
  • भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI): खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 की धारा-53 के तहत भ्रामक विज्ञापन दंडनीय है।
    • FSSAI विज्ञापनों को सत्य, स्पष्ट और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित होना अनिवार्य बनाता है।
    • यह खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम, 2018 का उपयोग करता है, जो विशेष रूप से खाद्य (और संबंधित उत्पादों) से संबंधित है।

भारत में उपभोक्ता संरक्षण के लिए की गई पहल

  • उपभोक्ता कल्याण कोष
  • एकीकृत शिकायत निवारण तंत्र (INGRAM) पोर्टल
  • भारतीय मानक ब्यूरो (BIS)
  • जागो ग्राहक जागो अभियान
  • राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस (24 दिसंबर)
  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद
  • राष्ट्रीय और राज्य उपभोक्ता हेल्पलाइन

भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित चिंताएँ

भ्रामक विज्ञापन अनैतिक है, क्योंकि यह उपभोक्ताओं को धोखा देता है और इससे अज्ञानतावश या हानिकारक निर्णय लेने की संभावना बढ़ जाती है।

  • विश्वास का उल्लंघन: भ्रामक विज्ञापन उपभोक्ता को गुमराह करते हैं और व्यावसायिक लाभ के लिए कमजोरियों का लाभ उठाते हैं तथा लोगों को खरीदारी का निर्णय लेने के लिए प्रेरित करते हैं।
    • ईमानदारी और सत्यनिष्ठा आवश्यक नैतिक सिद्धांत हैं, जिन्हें विज्ञापन सहित सभी व्यावसायिक प्रथाओं का मार्गदर्शन करना चाहिए।
  • अनुचित व्यवहार: भ्रामक विज्ञापनों के परिणामस्वरूप उन कंपनियों को अनुचित लाभ मिलता है, जो नैतिक विज्ञापन को प्राथमिकता देने वाली कंपनियों की तुलना में भ्रामक व्यवहार में संलग्न हैं।
    • यह निष्पक्षता तथा न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह ईमानदार प्रतिस्पर्द्धियों को प्रभावित करता है और उपभोक्ता विश्वास को कमजोर करता है।
  • वित्तीय नुकसान: भ्रामक विज्ञापनों से उन उपभोक्ताओं को वित्तीय नुकसान हो सकता है, जो झूठे दावों के आधार पर उत्पाद या सेवाएँ खरीदते हैं, जिसके परिणामस्वरूप असंतोष उत्पन्न होता है।
  • ईमानदारी पर प्रभाव: भ्रामक विज्ञापनों के बार-बार संपर्क में आने से उत्पादों, ब्रांडों और विज्ञापनों में भरोसा कम होता है और व्यापार और समाज में ईमानदारी के नैतिक सिद्धांत को कमजोर करता है।
  • पारदर्शिता का अभाव: लाभों को बढ़ा-चढ़ाकर बताना, जोखिमों को कम करके आँकना, बिना समर्थन वाले दावे करना आदि उपभोक्ताओं को धोखा देने के प्रमुख कारकों में से एक है, जिसके कारण वे बिना जानकारी के या हानिकारक निर्णय ले लेते हैं।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: स्वास्थ्य संबंधी भ्रामक दावे उपभोक्ताओं को गुमराह कर सकते हैं तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।

दवा निर्माताओं तथा नियामकों के समक्ष चुनौतियाँ

  • उच्च गुणवत्ता और कम लागत में संतुलन: भारत के दवा निर्माता और नियामक उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने के बीच उलझे हुए हैं, जिसके कारण विनिर्माण लागत बढ़ जाती है, जबकि उपभोक्ता कीमतें कम रखी जाती हैं ताकि मरीजों को उनकी जरूरत की दवाएँ मिल सकें।
    • हालाँकि, यह संतुलन हासिल करना अक्सर कठिन होता है, जिसके परिणामस्वरूप गुणवत्ता में समझौता करना पड़ता है।
  • सरकारी कार्रवाई: आयुष मंत्रालय की कार्रवाई ने परिदृश्य को अधिक जटिल बना दिया है, क्योंकि इसने व्यवसायों को सभी प्रकार के उत्पादों को ‘आयुर्वेदिक’ के रूप में पंजीकृत करने की अनुमति दे दी है, जैसे दूध को ‘आयुर्वेदिक स्वामित्व वाली दवा’ के रूप में लाइसेंस देना और मौजूदा गुणवत्ता नियमों से बचने का प्रयास करना।
  • असंगत विनियमन: दवा की गुणवत्ता तथा निर्माता निरीक्षण, विशेष रूप से वैकल्पिक दवाओं के क्षेत्र में, असमान हैं।
    • विज्ञापनों को विनियमित करना, खराब या घटिया उत्पादों को बाजार में प्रवेश करने से रोकने का एक तरीका बन गया है।
  • राजनीतिक प्रभाव: नियामक निकायों को राजनीतिक दबावों से स्वतंत्रता बनाए रखने में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो गुणवत्ता मानकों को प्रभावी ढंग से लागू करने की उनकी क्षमता में बाधा डाल सकते हैं।

आगे की राह

भ्रामक विज्ञापन को न्यूनतम करने तथा साथ ही उपभोक्ता को जागरूक और सूचित उपभोक्ता बनाने के लिए निम्नलिखित कई कदम उठाए जाने की आवश्यकता है:-

  • नैतिक विज्ञापन: विज्ञापन पारदर्शी, सत्यनिष्ठापूर्ण होना चाहिए तथा उपभोक्ताओं को निर्णय लेने में सहायता करने के लिए सटीक जानकारी प्रदान करनी चाहिए।
    • विज्ञापन आचार संहिता या आचरण संहिता तैयार करना और उसका सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।
  • विज्ञापनों की स्क्रीनिंग: विज्ञापनों की जाँच के लिए नियामक और सेंसर बॉडी होनी चाहिए। , खासकर उन विज्ञापनों में जिनमें स्वास्थ्य और जीवन जोखिम शामिल हों।
    • ई-प्लेटफॉर्म पर भी विज्ञापनों को जवाबदेह और विनियमित किया जाना चाहिए।
  • स्पष्ट वर्गीकरण: विज्ञापनों का कुछ वर्गीकरण होना चाहिए।
    • विज्ञापन का फॉन्ट आकार तथा प्रदर्शन दृश्यमान और स्पष्ट होना चाहिए।
  • जागरूकता: उपभोक्ताओं को विभिन्न मीडिया, विशेषकर सोशल, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया  माध्यम से जागरूक करने की आवश्यकता है।
    • भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ शिकायत करने के लिए एक हेल्पलाइन नंबर होना चाहिए।
  • तुलनात्मक परीक्षण पर ध्यान: उपभोक्ता आवाज या किसी अन्य सरकारी अनुमोदित एजेंसी द्वारा किए गए तुलनात्मक परीक्षण के परिणाम को लोकप्रिय प्रिंट और ई-मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
    • बच्चों के मनोविज्ञान को प्रभावित करने वाले विज्ञापनों को वैध वैज्ञानिक परीक्षण के बाद संबंधित सरकारी प्राधिकरण द्वारा सख्ती से अनुमोदित किया जाना चाहिए।
    • शिक्षा और कॅरियर से संबंधित विज्ञापनों को भी संबंधित सरकारी प्राधिकरण के माध्यम से विनियमित किया जाना चाहिए और उसकी उचित मंजूरी के बाद ही सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
  • सख्त कार्रवाई: भ्रामक विज्ञापनों के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ दंडात्मक तथा कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
    • यहाँ तक ​​कि जिन प्लेटफॉर्मों और चैनलों पर भ्रामक विज्ञापन दिए गए हैं, उन्हें भी इस तरह के व्यवहार को रोकने और उपभोक्ताओं के पक्ष में इसे हतोत्साहित करने के लिए कुछ हद तक जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
  • न्यायपालिका द्वारा कार्रवाई: नकली दवाओं के खिलाफ सुरक्षा के लगातार कमजोर होने के समक्ष, न्यायालयों को पिछले निर्णयों पर गौर करने की आवश्यकता है, उत्पाद  गुणवत्ता-नियंत्रण व्यवस्था को सुधारने के लिए, इसे राजनीतिक हस्तक्षेप  से बचाने के लिए , और वैकल्पिक दवाओं को इसके दायरे में लाने हेतु न्यायपालिका का सशक्त होना आवश्यक है।

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