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दुर्गावती टाइगर रिजर्व

Lokesh Pal January 07, 2025 05:59 87 0

संदर्भ 

मध्य प्रदेश के दमोह, नरसिंहपुर तथा सागर जिलों के 52 गाँवों के ग्रामीणों ने रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व (Rani Durgavati Tiger Reserve) और उसके आसपास के क्षेत्रों में वन अधिकारों को मान्यता न दिए जाने तथा जबरन बेदखली के संबंध में चिंता जताई है।

संबंधित तथ्य

  • जनजातीय मामलों के मंत्रालय (भारत सरकार) ने मध्य प्रदेश सरकार को वन विभागों तथा जिला कलेक्टरों के परामर्श से इन मुद्दों का समाधान करने का निर्देश दिया है।
    • ग्रामीणों का दावा है कि उन्हें जबरन रिजर्व के बाहर स्थानांतरित किया जा रहा है, जो वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA), 2006 का उल्लंघन है।

वन अधिकार अधिनियम, 2006 के प्रमुख प्रावधान

  • वन अधिकार अधिनियम, 2006, को औपचारिक रूप से अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है।
  • इसका उद्देश्य वन्य भूमि तथा संसाधनों पर उनके अधिकारों को मान्यता देकर वनवासी समुदायों द्वारा सामना किए जाने वाले ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करना है।
  • मान्यता प्राप्त अधिकारों के प्रकार
    • व्यक्तिगत वन अधिकार (Individual Forest Rights- IFR): जीवन निर्वाह एवं आजीविका के लिए वन भूमि पर स्वामित्व एवं खेती का अधिकार
    • सामुदायिक वन अधिकार (Community Forest Rights- CFR): वन संसाधनों का सामूहिक रूप से उपयोग, संरक्षण, पुनर्जनन एवं संरक्षण करने का अधिकार है।
    • लघु वनोपज का अधिकार: बाँस, शहद और औषधीय पौधों जैसे गैर-काष्ठ वन उत्पाद (Non Timber Forest Products) तक पहुँच एवं उनके संग्रह का अधिकार है।
    • आवास का अधिकार: विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) के उनके पारंपरिक आवासों के अधिकारों की मान्यता मिली हुई है।
    • पुनर्वास का अधिकार: विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापन के मामले में, वनवासियों का पुनर्वास किया जाना चाहिए और उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिए।
  • पात्रता
    • अनुसूचित जनजातियाँ: कम-से-कम 75 वर्षों से या 13 दिसंबर, 2005 से पहले से वन में रहने वाले आदिवासी।
    • अन्य पारंपरिक वनवासी: तीन पीढ़ियों (लगभग 75 वर्ष) से ​​वन क्षेत्रों में रहने वाले गैर-आदिवासी समुदाय।
  •  बेदखली से सुरक्षा
    • वन में निवास करने वाले समुदायों को तब तक बेदखल नहीं किया जा सकता जब तक कि वन अधिकार अधिनियम के तहत उनके दावों का सत्यापन तथा निपटारा नहीं हो जाता है।

क्या अनुसूचित जनजाति के वे लोग, जो राज्य के गैर-अनुसूचित क्षेत्रों में चले गए हैं, वन में रहने वाली अनुसूचित जनजाति के रूप में वन अधिकारों का दावा कर सकते हैं?

  • वन अधिकार अधिनियम की आवश्यकता: वन में रहने वाले अनुसूचित जनजाति के रूप में वन अधिकार का दावा करने के लिए, व्यक्ति को उस क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध होना चाहिए।
  • राज्यवार भिन्नता: कुछ राज्यों में, अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति का दर्जा एक विशेष क्षेत्र तक ही सीमित है।
    • अन्य राज्यों में, अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति, संवैधानिक आदेश (अनुसूचित जनजाति), 1950 के अनुसार, पूरे राज्य में अपना अनुसूचित जनजाति का दर्जा बरकरार रखते हैं।

वनवासियों और जनजातीय समुदायों के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA), 1972 (वर्ष 2006 में संशोधित) का प्रमुख प्रावधान

  • संरक्षण तथा आजीविका सह-अस्तित्व: इस अधिनियम में यह माना गया है कि वनवासी तथा आदिवासी समुदाय अपनी आजीविका के लिए वनों पर निर्भर हैं।
    • वन्यजीव संरक्षण प्रक्रियाओं को यह सुनिश्चित करने के लिए डिजाइन किया गया है कि वे इन समुदायों के अधिकारों या कल्याण को नुकसान न पहुँचाएँ।
  • संरक्षित क्षेत्रों में गतिविधियों के नियम
    • राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य: वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए शिकार और कटाई जैसी गतिविधियाँ प्रतिबंधित हैं।
      • हालाँकि, आदिवासी समुदायों को विशिष्ट नियमों के तहत लघु वन उपज एकत्र करने की अनुमति है।
    • सामुदायिक रिजर्व: स्थानीय समुदाय अपनी पारंपरिक प्रथाओं को जारी रखते हुए सामुदायिक रिजर्व के माध्यम से संरक्षण में सक्रिय रूप से भाग ले सकते हैं।
  • महत्त्वपूर्ण वन्यजीव आवासों से स्थानांतरण
    • महत्त्वपूर्ण वन्यजीव आवासों में रहने वाले वनवासियों को केवल तभी स्थानांतरित किया जा सकता है, यदि:-
      • यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि उनकी उपस्थिति वन्यजीव संरक्षण को नुकसान पहुँचाती है।
      • स्थानांतरण से पहले उनकी स्वतंत्र एवं सूचित सहमति ली जाती है।
      • उन्हें उचित पुनर्वास और मुआवजा प्रदान किया जाता है।
  • अवैध शिकार विरोधी प्रयासों में सामुदायिक भागीदारी
    • वनवासियों और आदिवासी समुदायों को अवैध शिकार को रोकने में मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
    • उनके स्वदेशी ज्ञान को महत्त्व दिया जाता है और इसका उपयोग वन्यजीवों की ट्रैकिंग और सुरक्षा के लिए किया जाता है।

जनजातीय समुदायों के कल्याण के लिए संवैधानिक प्रावधान

भारतीय संविधान जनजातीय लोगों को विशेषकर उनके वन अधिकारों के संबंध में अनेक सुरक्षा एवं अधिकार प्रदान करता है।

  • अनुसूचित जनजातियाँ: संविधान के अनुच्छेद-342 के तहत जनजातियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता दी गई है। इससे उन्हें विशेष दर्जा एवं सुरक्षा मिलती है।
  • अनुसूचित क्षेत्र: संविधान के अनुच्छेद-244 तथा पाँचवीं और छठी अनुसूचियाँ अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन का प्रावधान करती हैं।
    • इन क्षेत्रों का उद्देश्य जनजातीय स्वायत्तता एवं संस्कृति की रक्षा करना है।
  • अनुच्छेद-46: अनुसूचित जनजातियों सहित हाशिए पर पड़े वर्गों के शैक्षिक एवं आर्थिक हितों की रक्षा करने की राज्य की जिम्मेदारी पर जोर देता है।
  • अनुच्छेद-335: यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी नियुक्तियों में अनुसूचित जनजातियों के दावों पर विचार किया जाए, सामाजिक न्याय के साथ दक्षता को संतुलित किया जाए।

दुर्गावती टाइगर रिजर्व

  • यह रिजर्व मध्य प्रदेश के सागर, दमोह तथा नरसिंहपुर जिलों में अवस्थित है।
    • यह मध्य प्रदेश का 7वाँ टाइगर रिजर्व है।
  • क्षेत्र संरचना: इसमें नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य तथा दुर्गावती वन्यजीव अभयारण्य के कुछ हिस्से शामिल हैं।
  • कॉरिडोर विकास: पन्ना टाइगर रिजर्व (PTR) को दुर्गावती से जोड़ने के लिए एक ग्रीन कॉरिडोर विकसित किया जाएगा, ताकि टाइगर प्राकृतिक रूप से विचरण कर सकें।
  • नदियाँ: यह रिजर्व नर्मदा एवं यमुना नदियों की घाटियों में अवस्थित है।
  • ऐतिहासिक स्थल: सिंगोरगढ़ किला इस रिजर्व के भीतर अवस्थित है।
  • वन: इस रिजर्व में शुष्क पर्णपाती वन पाए जाते है।
  • वनस्पति: मुख्य पादप प्रजातियों में सागौन, साजा, धौरा, बेर, आँवला आदि शामिल हैं।
  • जीव: वन्यजीवों में बाघ, तेंदुए, भेड़िये, सियार, भारतीय लोमड़ी, धारीदार लकड़बग्घा, नीलगाय, चिंकारा, चीतल, साँभर, काला हिरण, बार्किंग हिरण, सामान्य लंगूर, रीसस मकाक एवं अन्य शामिल हैं।

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