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लोकपाल द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की जाँच का निर्णय

Lokesh Pal February 22, 2025 12:47 21 0

संदर्भ 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने लोकपाल के 27 जनवरी के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि लोकपाल को उच्च न्यायालयों के मौजूदा न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों पर जाँच करने का अधिकार है। 

मामले की पृष्ठभूमि

  • लोकपाल का आदेश
    • न्यायमूर्ति ए.एम खानविलकर की अध्यक्षता वाले लोकपाल ने निर्णय सुनाया कि लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 14(1)(F) के तहत उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों की जाँच करने का अधिकार उसके पास है।
    • के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ (1991) के आधार पर अपना निर्णय सुनाया, जिसमें कहा गया था कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1947 के अंतर्गत आते हैं।
    • यह शिकायत एक वर्तमान अतिरिक्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के संबंध में थी, जो कथित तौर पर न्यायिक निर्णयों को प्रभावित कर रहे थे।
  • सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप
    • सर्वोच्च न्यायालय ने मामले का स्वतः संज्ञान लिया।
    • लोकपाल के आदेश पर स्थगन जारी किया गया तथा कड़ी असहमति व्यक्त की गई।
    • न्यायालय द्वारा की गई मुख्य टिप्पणियाँ
      • उच्च न्यायालय के न्यायाधीश संवैधानिक अधिकारी हैं, न कि वैधानिक पदाधिकारी।
      • लोकपाल ने अधिनियम की गलत व्याख्या की; उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इसके दायरे में नहीं आते।
      • न्यायिक स्वतंत्रता बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है।

कानूनी एवं संवैधानिक पहलू

  • अनुच्छेद-124 और 217: उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश संवैधानिक प्राधिकारी हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, स्वतंत्रता, अधिकार क्षेत्र, शक्तियों और प्रक्रियाओं से संबंधित।
  • लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013:
    • धारा 14(1)(F): यह परिभाषित करता है कि अधिनियम के उद्देश्य के लिए किसे लोक सेवक माना जाएगा।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि इस प्रावधान के तहत उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ‘लोक सेवक’ नहीं हैं।
  • के. वीरास्वामी निर्णय (1991) 
    • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश “लोक सेवक” की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं।
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की पूर्व सहमति के बिना किसी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है।

लोक सेवक के बारे में

  • “लोक सेवक” शब्द का अर्थ आमतौर पर ऐसे व्यक्ति से होता है, जिसे सरकार या सरकारी एजेंसी द्वारा जनता की सेवा के लिए नियुक्त किया जाता है।
  • इसमें निर्वाचित अधिकारी, सिविल सेवक, कानून प्रवर्तन अधिकारी, शिक्षक, स्वास्थ्य सेवा पेशेवर और सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाले कई अन्य लोग शामिल हो सकते हैं।

लोकपाल और लोकायुक्त (संशोधन) अधिनियम, 2016

  • इस अधिनियम ने लोक सेवकों द्वारा परिसंपत्तियों और देनदारियों की घोषणा के संबंध में लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में संशोधन किया।
  • इसके तहत लोक सेवक को अपनी और अपने जीवनसाथी तथा आश्रित बच्चों की परिसंपत्तियों और देनदारियों की घोषणा करनी होगी।
  • ऐसी घोषणाएँ पदभार ग्रहण करने के 30 दिनों के भीतर सक्षम प्राधिकारी के समक्ष की जानी चाहिए।

लोकपाल के बारे में

  • लोकपाल एक राष्ट्रीय स्तर की भ्रष्टाचार विरोधी संस्था है, जिसकी स्थापना सरकारी अधिकारियों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच और मुकदमा चलाने के लिए की गई है।
  • यह मंत्रियों और सरकारी कर्मचारियों के बीच जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करता है।
  • यह बिना किसी संवैधानिक दर्जे के एक वैधानिक निकाय है।
  • स्थापना: वर्ष 2013 में पारित लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम वर्ष 2014 में लागू हुआ।
  • हालाँकि, पहले लोकपाल, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष को लगभग पाँच वर्ष के विलंब के बाद वर्ष 2019 में ही नियुक्त किया गया था।
    • इस अधिनियम में राज्य स्तर पर लोकायुक्तों की स्थापना का भी प्रावधान है।

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