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सूचना का अधिकार अधिनियम के 20 वर्ष

Lokesh Pal October 15, 2025 02:27 9 0

संदर्भ

12 अक्टूबर को सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम की 20वीं वर्षगाँठ के अवसर पर सतर्क नागरिक संगठन ने पूरे भारत में सूचना आयोगों के प्रदर्शन का आकलन करते हुए एक अध्ययन जारी किया है।

इतिहास-सूचना का अधिकार अधिनियम

  • वर्ष 1990: पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने पहली बार RTI का विचार प्रस्तावित किया।
  • न्यायिक आधार: 1970 और 1980 के दशक में न्यायालयों ने ऐतिहासिक निर्णयों में जानने के अधिकार (Right to Know) को अनुच्छेद-19(1)(a) और अनुच्छेद-21 से जोड़ा।
    • इस बात पर जोर दिया कि नागरिकों को यह पता होना चाहिए कि सार्वजनिक शक्ति का उपयोग कैसे किया जाता है।
  • जमीनी स्तर पर प्रयास: राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) जैसे आंदोलनों ने जनसुनवाई के माध्यम से मास्टर रोल और बजट तक पहुँच की माँग की।
    • जन सुनवाई प्रथाओं ने दर्शाया कि कैसे सूचना, मजदूरी भुगतान और स्थानीय कार्यों में भ्रष्टाचार को रोकती है।
  • विधायी यात्रा: वर्ष 1996 में, राष्ट्रीय जन सूचना अधिकार अभियान (NCPRI) का गठन हुआ, जिसने भारतीय प्रेस परिषद के साथ मिलकर एक RTI विधेयक का मसौदा तैयार किया।
    • वर्ष 1997: तमिलनाडु RTI कानून पारित करने वाला पहला राज्य बना।
    • सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002: भारत ने पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए सबसे पहले सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002 लागू किया।
    • बाद में इसे केंद्र और राज्य सरकारों को शामिल करने वाले RTI अधिनियम, 2005 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया।

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के बारे में

  • अधिनियमन और कार्यान्वयन: जून 2005 में RTI अधिनियम को अधिनियमित किया गया और यह 12 अक्टूबर, 2005 को लागू हुआ।
    • पहला RTI आवेदन पुणे के एक पुलिस स्टेशन में शाहिद रजा बर्नी द्वारा दायर किया गया था।
  • उद्देश्य: नागरिकों को लोक प्राधिकरणों (PA) के नियंत्रण में सूचना तक पहुँच का अधिकार प्रदान करना।
  • उद्देश्य: इसे सरकारी कार्यों में सार्वजनिकता को बढ़ावा देने, जवाबदेही को मजबूत करने और सार्वजनिक संस्थानों में सुशासन के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया था।
  • नोडल एजेंसी: कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय (MoPPG&P)।
  • क्षेत्र: RTI केंद्र, राज्य और स्थानीय लोक प्राधिकरणों को शामिल करता है, जिनका कर्तव्य अनुरोध पर सूचना का प्रकटीकरण करना है।
  • अधिरोहण: धारा 22 यह सुनिश्चित करती है कि RTI अधिनियम, 2005 अन्य कानूनों के साथ किसी भी विसंगति पर वरीयता प्राप्त करे।
  • सूचना की व्यापक परिभाषा: धारा 2(f) सूचना को सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा रखे गए रिकॉर्ड, दस्तावेज, ज्ञापन, ईमेल, राय और नमूनों को शामिल करने के लिए परिभाषित करती है।
  • समय-सीमा: सूचना 30 दिनों में तथा जीवन या स्वतंत्रता के मामलों में 48 घंटों में दी जानी चाहिए।
  • छूट
    • धारा 8 कुछ छूटों का उल्लेख करती है, जैसे-राष्ट्रीय सुरक्षा, व्यक्तिगत गोपनीयता या व्यापार रहस्यों से संबंधित जानकारी।
    • RTI अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत अपवादों का प्रावधान
      • भारत की संप्रभुता और अखंडता
      • राज्य के सुरक्षा, सामरिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हित
      • विदेशी राज्यों के साथ संबंध
    • किसी अपराध को भड़काने के लिए प्रेरित करना
      • धारा 8 (2) आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के तहत छूट प्रदान करती है।
    • द्वितीय अनुसूची में सूचीबद्ध कुछ खुफिया और सुरक्षा संगठन, जैसे इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), रॉ (RAW) और राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO) को अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया है।
  • संस्थागत ढाँचा: केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) और राज्य सूचना आयोग (SIC) अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी और सूचना देने से इनकार करने से संबंधित अपीलों का निपटारा करने के लिए स्थापित किए गए हैं।
    • लोक सूचना अधिकारी (PIO): प्रत्येक सार्वजनिक कार्यालय में RTI आवेदनों पर कार्रवाई करने के लिए नियुक्त किए जाते हैं।

शासकीय गुप्‍त बात अधिनियम, 1923

  • उत्पत्ति: वर्ष 1911 के इंग्लैंड के आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम पर आधारित, जिसे औपनिवेशिक भारत में राष्ट्रवादी आंदोलनों को दबाने के लिए लागू किया गया था।
  • उद्देश्य: शासन में गोपनीयता बनाए रखना और समाचार-पत्रों द्वारा प्रसारित की जाने वाली राजनीतिक जागरूकता पर अंकुश लगाना।
  • क्षेत्र: शासन में गोपनीयता के सभी पहलुओं पर लागू किया गया है।
  • मुख्य प्रावधान
    • जासूसी/गोपनीयता (धारा 3): गोपनीय जानकारी में आधिकारिक कोड, पासवर्ड, रेखाचित्र, योजनाएँ, मॉडल, दस्तावेज या कोई भी संबंधित डेटा शामिल होता है।
    • गुप्त जानकारी का प्रकटीकरण (धारा 5): वर्गीकृत जानकारी के संप्रेषक और प्राप्तकर्ता, दोनों पर दंड लागू होता है।
      • आधिकारिक जानकारी’ की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है, जो प्रायः गोपनीयता की आवश्यकता वाले प्रशासनिक पहलुओं तक ही सीमित होती है।
  • RTI अधिनियम, 2005 के साथ टकराव
    • धारा 22: सूचना का अधिकार अधिनियम, प्रकटीकरण के मुद्दों पर शासकीय गोपनीयता अधिनियम सहित अन्य कानूनों का स्थान लेता है।
    • धारा 8 और 9: शासकीय गुप्‍त बात अधिनियम के अंतर्गत गोपनीय के रूप में वर्गीकृत सूचना को RTI के तहत रोकने की अनुमति देता है।

स्तर नियुक्ति प्राधिकारी चयन समिति
केंद्रीय सूचना आयोग भारत के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), लोकसभा में विपक्ष के नेता, प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय कैबिनेट मंत्री
राज्य सूचना आयोग राज्य के राज्यपाल मुख्यमंत्री (अध्यक्ष), विधानसभा में विपक्ष के नेता, मुख्यमंत्री द्वारा नामित राज्य कैबिनेट मंत्री।
कार्यकाल और शर्तें
  • मूल RTI अधिनियम, 2005: 5 वर्ष का कार्यकाल या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो।
  • RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019: कार्यकाल, वेतन और सेवा शर्तें अब केंद्र सरकार द्वारा तय की जाएँगी।
  • निष्कासन: सर्वोच्च न्यायालय की जाँच के बाद सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता पर राष्ट्रपति (केंद्रीय सूचना आयुक्त/सूचना आयुक्तों के लिए) या राज्यपाल (राज्य सूचना आयुक्त/राज्य सूचना आयुक्तों के लिए) द्वारा निष्कासित किया जा सकता है।

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संवैधानिक और न्यायिक समर्थन

  • अनुच्छेद-19(1)(a): ‘जानने का अधिकार’ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में निहित है।
  • ऐतिहासिक मामले
    • उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राज नारायण (1975): इस मामले में न्यायालय ने यह कहा कि नागरिकों को सरकारी गतिविधियों के बारे में जानने का अधिकार है।
    • भारत संघ बनाम ADR (2002): उम्मीदवारों की संपत्ति और आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी प्राप्त करने के जनता के अधिकार को मान्यता दी गई।
  • इन निर्णयों ने RTI अधिनियम को लोकतांत्रिक उपयोगिता के एक स्तंभ के रूप में आकार दिया।

अधिनियम में संशोधन

  • RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019
    • इसने केंद्र सरकार को मुख्य सूचना आयुक्तों और सूचना आयुक्तों (IC) के कार्यकाल, वेतन और सेवा शर्तें निर्धारित करने का अधिकार दिया।
      • इससे उनकी स्वतंत्रता को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हुईं।
    • इसने पाँच वर्ष के निश्चित कार्यकाल को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित परिवर्तनशील अवधि में बदल दिया, जो अब तीन वर्ष तक हो सकती है।
    • वेतन और सेवा शर्तें अब चुनाव आयुक्तों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समकक्ष न होकर कार्यपालिका द्वारा तय की जाती हैं।
  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023
    • इसने RTI अधिनियम की धारा 8(1) में संशोधन किया, जिससे सभी व्यक्तिगत जानकारी को प्रकटीकरण से छूट मिल गई, जो सरकारी अधिकारियों के कार्यों की पारदर्शिता को सीमित कर सकती है।
    • इसने व्यक्तिगत जानकारी के लिए एक व्यापक छूट की शुरुआत की, जब तक कि लोक सूचना अधिकारी यह निर्धारित न कर ले कि व्यापक जनहित प्रकटीकरण को उचित ठहराता है।

सूचना के अधिकार (RTI) का महत्त्व

  • नागरिकों का सशक्तीकरण: RTI नागरिकों को सरकारी नीतियों, निर्णयों और गतिविधियों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने का अधिकार देता है।
    • यह अधिकारियों से सवाल पूछने और उन्हें जवाबदेह ठहराने में व्यक्तियों की भूमिका को मजबूत करता है।
  • पारदर्शिता को बढ़ावा: सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा सूचना का सक्रिय प्रकटीकरण (RTI अधिनियम की धारा 4 के अनुसार) शासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है। यह सार्वजनिक संस्थानों के कामकाज में गोपनीयता को कम करता है।
    • उदाहरण: RTI ने कोयला ब्लॉक आवंटन (कोलगेट घोटाला) में अनियमितताओं का खुलासा किया, जिससे संसाधन आवंटन में व्यवस्थागत सुधारों को बल मिला।
  • शासन में जवाबदेही: RTI सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए अपने कार्यों और निर्णयों को उचित ठहराने हेतु एक तंत्र स्थापित करता है।
    • यह नागरिकों को सरकारी दक्षता की निगरानी करने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि अधिकारी अपने कार्यों के प्रति जवाबदेह रहें।
    • RTI ने कई निर्वाचन क्षेत्रों में सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) के तहत आवंटित धन के अनुपयोग का खुलासा किया, जिससे सार्वजनिक धन का बेहतर उपयोग सुनिश्चित हुआ।
  • भ्रष्टाचार से निपटने का साधन: कदाचार और अनियमितताओं को उजागर करके, RTI में व्याप्त भ्रष्टाचार से लड़ने के एक शक्तिशाली साधन के रूप में कार्य करता है।
    • उदाहरण: महाराष्ट्र में आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाले को उजागर करने में RTI अधिनियम ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन: RTI नागरिकों को उनकी प्रगति की पुष्टि और निगरानी करने में सक्षम बनाकर सरकारी योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को बढ़ाता है।
    • उदाहरण: राजस्थान में मनरेगा रिकॉर्ड में विसंगतियों को उजागर करने के लिए RTI का उपयोग किया गया था।
  • लोकतंत्र को मजबूत करना: RTI एक जागरूक नागरिक वर्ग का निर्माण करके सहभागी लोकतंत्र को बढ़ावा देता है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि सरकार लोगों की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी बनी रहे।
  • रिकॉर्ड रखरखाव व्यवस्था को बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित करना: सूचना का खुलासा करने का दायित्व सार्वजनिक प्राधिकरणों को व्यवस्थित और कुशलतापूर्वक रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करता है।
    • कई RTI प्रश्नों के बाद, कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय ने कॉरपोरेट रिकॉर्ड तक पहुँच में सुधार के लिए MCA21 पहल के तहत अपनी फाइलिंग प्रणालियों को नया रूप दिया।
  • जन विश्वास को बढ़ाना: पारदर्शिता और जवाबदेही सरकार और उसके नागरिकों के बीच विश्वास को बढ़ावा देती है।
  • मौलिक अधिकारों की रक्षा: RTI आवश्यक जानकारी तक पहुँच को सक्षम बनाकर वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद-19(1)(a)) जैसे मौलिक अधिकारों को सुदृढ़ करता है।
  • सुशासन को बढ़ावा देना: RTI जवाबदेही, पारदर्शिता और नागरिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देकर सुशासन की आधारशिला के रूप में कार्य करता है।

विश्व स्तर पर सूचना की स्वतंत्रता संबंधी कानून

  • स्वीडन: प्रेस की स्वतंत्रता अधिनियम, 1766
    • विश्व के सबसे प्राचीन और व्यापक सूचना स्वतंत्रता कानूनों में से एक है, जो सरकारी एजेंसियों के पास मौजूद दस्तावेजों तक अप्रतिबंधित पहुँच प्रदान करता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: सूचना स्वतंत्रता अधिनियम (FOIA), 1966
    • अमेरिकी नागरिकों और स्थायी निवासियों को संघीय एजेंसियों से जानकारी प्राप्त करने की अनुमति देता है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून प्रवर्तन से संबंधित छूट शामिल है। इस कानून का प्रवर्तन न्याय विभाग द्वारा किया जाता है और इसकी प्रतिक्रिया अवधि 20 कार्यदिवस है।
  • यूनाइटेड किंगडम: सूचना स्वतंत्रता अधिनियम (FOIA), 2000
    • सरकारी विभागों और स्थानीय प्राधिकरणों सहित सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा रखी गई जानकारी तक पहुँच प्रदान करता है। इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, व्यक्तिगत डेटा और कानून प्रवर्तन से संबंधित छूट शामिल हैं।
  • यूरोपीय संघ: दस्तावेजों तक पहुँच पर यूरोपीय संघ निर्देश, 2001
    • यह यूरोपीय संघ के संस्थानों द्वारा रखे गए दस्तावेजों पर लागू होता है, जो निर्णय लेने में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है।
    • इसमें रक्षा, विदेश नीति और व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा से संबंधित छूट शामिल हैं।

RTI अधिनियम के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • कार्यात्मक चुनौतियाँ
    • रिक्त पदों का गंभीर संकट: सतर्क नागरिक संगठन (SNS) की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि कई केंद्रीय और राज्य सूचना आयोग (CIC/SIC) जुलाई 2024 से अक्टूबर 2025 के बीच या तो निष्क्रिय थे अथवा अपनी क्षमता से कम पर कार्य कर रहे थे।
      • छह राज्य आयोग (झारखंड, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, गोवा, त्रिपुरा और मध्य प्रदेश) सभी आयुक्तों के पद रिक्त होने के कारण लंबे समय तक निष्क्रिय रहे; दो पूरी तरह से निष्क्रिय थे।
      • केंद्रीय सूचना आयोग में ही 11 स्वीकृत पदों में से केवल 2 सूचना आयुक्त हैं, जिनमें मुख्य सूचना आयुक्त का रिक्त पद भी शामिल है।
    • अपीलों और शिकायतों का लंबित मामला: 1 जुलाई, 2024 से 30 जून, 2025 के बीच 2.41 लाख से अधिक अपीलें और शिकायतें दर्ज की गईं।
      • 27 आयोगों द्वारा जुलाई 2024 से जून 2025 के बीच केवल 1.8 लाख मामलों का निपटारा किया गया, जो लंबित मामलों की बढ़ती संख्या को दर्शाता है।
      • महाराष्ट्र राज्य सूचना आयोग ने सबसे अधिक मामले निपटाए (38,410 निपटाए गए), उसके बाद उत्तर प्रदेश (30,552) > कर्नाटक (26,802) > तमिलनाडु (22,336)
      • महाराष्ट्र में सबसे अधिक नए मामले (54,869 दर्ज) दर्ज किए गए, उसके बाद तमिलनाडु (27,748) और कर्नाटक (27,490) का स्थान रहा।
      • मौजूदा गति से, तेलंगाना राज्य सूचना आयोग को अपने लंबित मामलों को निपटाने में 29 वर्ष लगेंगे।
    • अपर्याप्त लैंगिक प्रतिनिधित्व: वर्ष 2005 से, सभी सूचना आयुक्तों में से केवल 9% महिलाएँ रही हैं, जो लैंगिक असंतुलन को दर्शाता है।
    • जवाबदेही और निगरानी में कमियाँ: 29 में से 20 आयोग वर्ष 2023-24 के लिए वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करने में विफल रहे, जो वैधानिक दायित्वों का उल्लंघन है।
      • 98% पात्र मामलों में सूचना देने से इनकार करने या देरी करने वाले अधिकारियों पर जुर्माना नहीं लगाया गया।
  • संरचनात्मक चुनौतियाँ
    • धारा 8 के अंतर्गत छूट: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023 ने धारा 8(1) में संशोधन किया, जिससे सरकारी अधिकारियों सहित सभी व्यक्तिगत जानकारी को प्रकटीकरण से छूट मिल गई। राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत गोपनीयता जैसे कारणों से दी गई छूट का प्रायः सूचना देने से इनकार करने के लिए दुरुपयोग किया जाता है।
    • संशोधनों के माध्यम से अधिनियम को प्रभावित करना: RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 ने केंद्र सरकार को सूचना आयुक्तों का कार्यकाल, वेतन और सेवा शर्तें निर्धारित करने का अधिकार दिया, जिससे उनकी स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।
  • प्रक्रियात्मक चुनौतियाँ
    • परिचालन चुनौतियाँ: आवेदनों की संख्या, माँगी गई जानकारी की जटिलता और सार्वजनिक कार्यालयों में संसाधनों की कमी के कारण जन सूचना अधिकारियों (PIO) को कभी-कभी अनुरोधों का जवाब देने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • अनुमानतः भारत में प्रतिवर्ष 40-60 लाख RTI आवेदन दायर किए जाते हैं।
      • जून 2025 तक, 4 लाख से अधिक अपीलें और शिकायतें लंबित थीं: महाराष्ट्र (95,340) > कर्नाटक (47,825) > तमिलनाडु (41,059)
    • नौकरशाही प्रतिरोध: सरकारी अधिकारी अक्सर स्वयं को जाँच से बचाने या अपनी अक्षमता और भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए जानकारी का खुलासा करने में संकोच करते हैं।
    • राजनीतिक दलों द्वारा अनुपालन न करना: RTI अधिनियम के दायरे में लाए जाने के बावजूद, प्रमुख राजनीतिक दलों ने जन सूचना अधिकारियों (PIO) की नियुक्ति नहीं की है।
    • सूचना प्रदान करने में देरी: हालाँकि अधिनियम में 30 दिनों के भीतर जानकारी प्रदान करने का आदेश दिया गया है, लेकिन अक्षमता या जवाबदेही की कमी के कारण देरी सामान्य है।
  • जागरूकता और सुरक्षा
    • RTI कार्यकर्ताओं की सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: भ्रष्टाचार या सत्ता के दुरुपयोग का खुलासा करने वाले कार्यकर्ताओं को धमकियों, उत्पीड़न और यहाँ तक कि हिंसा का भी सामना करना पड़ता है।
      • सूचना माँगने के बदले में कई RTI कार्यकर्ताओं पर हमला किया गया है या उनकी हत्या कर दी गई है।
    • व्हिसलब्लोअर की कमजोर सुरक्षा: व्हिसलब्लोअर सुरक्षा अधिनियम, 2014 में RTI कार्यकर्ताओं सहित गलत कार्यों का खुलासा करने वालों की सुरक्षा के लिए मजबूत प्रावधानों का अभाव है।

द्वितीय ARC की सिफारिशें

  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने अपनी रिपोर्ट ‘सूचना का अधिकार – सुशासन की कुंजी’ में एक राष्ट्रीय समन्वय समिति (NCC) की स्थापना की सिफारिश की है।
  • यह समिति RTI कार्यान्वयन की निगरानी, ​​इसके प्रभाव का मूल्यांकन और राष्ट्रीय RTI पोर्टल के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करेगी।
  • इसने राज्य स्तर पर विश्वसनीय गैर-लाभकारी संगठनों को जागरूकता अभियान संचालित करने और RTI के समुचित संचालन के लिए सार्वजनिक प्राधिकरणों में पर्याप्त कर्मचारियों की भर्ती करने की भी सिफारिश की है।

भारत में RTI के संबंध में आगे की राह

  • रिक्त पदों को भरना: लंबित मामलों को कम करने और दक्षता में सुधार के लिए CIC और SIC में समय पर नियुक्तियाँ सुनिश्चित करना।
  • बैकलॉग प्रबंधन: 4 लाख लंबित मामलों के समाधान हेतु व्यवस्थित केस प्रबंधन प्रणालियों को लागू करना और अपील निपटान के लिए यथार्थवादी समय-सीमा निर्धारित करना।
  • सक्रिय प्रकटीकरण को बढ़ावा देना: RTI अधिनियम, 2005 की धारा 4 के तहत अनिवार्य सक्रिय प्रकटीकरण लागू करना और RTI प्रवर्तन को मजबूत करने के लिए सूचना प्रकटीकरण से मना करने या देरी के लिए लोक सूचना अधिकारियों (PIOs) पर दंड लगाना।
  • वार्षिक रिपोर्ट का समय पर प्रकाशन: पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने के लिए RTI अधिनियम, 2005 की धारा 25 के तहत सूचना आयोगों द्वारा समय पर वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना सुनिश्चित करना।
  • जागरूकता बढ़ाना: विशेष रूप से ग्रामीण और हाशिए पर स्थित क्षेत्रों में व्यापक जागरूकता अभियान चलाना।
  • व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम को मजबूत बनाना: व्हिसलब्लोअर और RTI कार्यकर्ताओं को धमकियों, उत्पीड़न और हिंसा से बचाने के लिए कड़े प्रावधान और प्रवर्तन तंत्र लागू करना।
  • अभिलेख प्रबंधन में सुधार: अभिलेखों का डिजिटलीकरण करना और बेहतर अभिलेख रखरखाव एवं पुनर्प्राप्ति के लिए लोक सूचना अधिकारियों (PIOs) को पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • सूचना आयुक्तों का स्वतंत्र कार्य: नियुक्ति प्रक्रिया को कार्यपालिका के विवेक पर छोड़ने के बजाय संसदीय निगरानी में शामिल किया जाना चाहिए।
    • सूचना आयोगों को राजनीतिक या कार्यपालिका के हस्तक्षेप से बचाकर उनकी स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त परिवर्तन किए जाने चाहिए।

निष्कर्ष

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 भारत के लोकतांत्रिक शासन की आधारशिला रहा है, जिसने लोक प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ नागरिकों को सशक्त बनाया है। हालाँकि, इसकी वास्तविक क्षमता संस्थागत स्वतंत्रता, समय पर नियुक्तियों और मजबूत प्रवर्तन तंत्रों के माध्यम से ही साकार हो सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जानने का अधिकार एक प्रक्रियात्मक औपचारिकता के स्थान पर एक जीवंत वास्तविकता बना रहे।

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