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राजकोषीय घाटा प्रबंधन

Lokesh Pal September 09, 2024 01:27 49 0

संदर्भ

घरेलू वित्तीय बचत में गिरावट के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राजकोषीय घाटा प्रबंधन (Fiscal Deficit Management) अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)

  • परिचय: राजकोषीय घाटे को एक वित्तीय वर्ष के दौरान उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियों पर कुल व्यय की अधिकता के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • यह ब्याज भुगतान सहित व्यय के वित्तपोषण के लिए सरकार की उधार आवश्यकताओं को दर्शाता है।

  • सूत्र
    • राजकोषीय घाटा = राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ – उधार को छोड़कर पूँजीगत प्राप्तियाँ।
  • भविष्य की देनदारियों का संकेतक: यह ब्याज भुगतान और ऋण अदायगी पर सरकार की भविष्य की देनदारियों में वृद्धि का संकेतक है।

ऋण एवं GDP अनुपात (Debt-GDP Ratio) 

  • ऋण एवं GDP अनुपात देश के आर्थिक उत्पादन की तुलना में सरकार के कुल ऋण को मापता है।
  • सूत्र: कुल ऋण/कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP)
    • ऋण एवं GDP अनुपात को कम करने के लिए सरकार को अपना राजकोषीय घाटा कम करना होगा।
  • ऋण एवं GDP के उच्च अनुपात प्रभाव: यदि ऋण-GDP अनुपात अधिक है, तो सरकार के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा ऋण पर ब्याज का भुगतान करने में चला जाता है।

बजट वर्ष 2024-25 में राजकोषीय घाटा लक्ष्य

  • राजकोषीय घाटे में कमी का लक्ष्य: सरकार का लक्ष्य वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.5% तक कम करना है, जो वर्ष 2024-25 के बजट में निर्धारित 4.9% से कम है।
    • यह ऋण एवं GDP अनुपात को कम करने के व्यापक लक्ष्य का हिस्सा है, जो वर्ष 2025-26 में 54% होने का अनुमान है।
  • दीर्घकालिक ऋण प्रबंधन: वर्ष 2026-27 से आगे, सरकार का लक्ष्य राजकोषीय घाटे को बनाए रखना है, जो यह सुनिश्चित करता है कि केंद्र सरकार का ऋण सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में घटती प्रवृत्ति का अनुसरण करे।
  • भविष्य के लक्ष्य: सरकार का लक्ष्य वर्ष 2025-26 के बाद ऋण एवं GDP अनुपात को कम करना है, लेकिन उसने कोई विशिष्ट लक्ष्य या समयसीमा निर्धारित नहीं की है।
    • इसका अर्थ यह है कि यह राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम द्वारा निर्धारित 40% ऋण एवं GDP अनुपात के पिछले लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकेगा।

बढ़ते राजकोषीय घाटे से संबंधित मुद्दे

सरकारी व्यय का राजस्व से बहुत अधिक बढ़ जाना कठिन स्थिति उत्पन्न कर सकता है।

  • मुद्रास्फीति पर प्रभाव: लगातार उच्च राजकोषीय घाटा उच्च मुद्रास्फीति को जन्म दे सकता है, क्योंकि सरकार अपने घाटे को पूरा करने के लिए नए नोट छापने का सहारा ले सकती है।
  • सार्वजनिक ऋण प्रबंधन में चुनौतियाँ: उच्च राजकोषीय घाटा सरकार की अपने समग्र सार्वजनिक ऋण को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की क्षमता में बाधा डाल सकता है।
    • राजकोषीय असंतुलन के परिणामस्वरूप सार्वजनिक ऋण में उल्लेखनीय वृद्धि होती है, क्योंकि सरकार कमी को पूरा करने के लिए अधिक उधार लेती है।
  • भुगतान संतुलन संकट: बढ़ते घाटे तथा कर्ज के संयोजन से देश के विदेशी भंडार पर दबाव पड़ता है, जिससे भुगतान संतुलन संकट उत्पन्न होता है।
    • उदाहरण: 1980 के दशक में, बढ़ते राजकोषीय घाटे के साथ-साथ बढ़ते सरकारी ऋण के कारण भुगतान संतुलन की स्थिति कठिन हो गई तथा राजस्व प्राप्तियों की तुलना में ब्याज भुगतान का अनुपात बहुत अधिक हो गया।
  • उच्च ब्याज भुगतान: राजस्व प्राप्तियों के मुकाबले ब्याज भुगतान का अनुपात बढ़ता है, जिससे सरकार की अन्य प्राथमिकताओं के लिए धन जुटाने की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुलना: कई देशों में सरकारी ऋण एवं GDP अनुपात का स्तर भारत की तुलना में कहीं अधिक है, लेकिन वे भारत की तुलना में कम ब्याज देते हैं।
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2015-19 के दौरान, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए राजस्व प्राप्तियों पर ब्याज भुगतान का अनुपात औसतन क्रमशः केवल 5.5%, 6.6% और 8.5% था।
    • इसके विपरीत, वर्ष 2015-16 से वर्ष 2019-20 के दौरान, भारत का संयुक्त ब्याज भुगतान राजस्व प्राप्तियों का अनुपात औसतन 24% था।
  • विकास के लिए उधार में वृद्धि: आवश्यक विकासात्मक व्यय को पूरा करने के लिए सरकार को उत्तरोत्तर अधिक उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे राजकोषीय दबाव और अधिक बढ़ जाता है।
  • निजी निवेश का बाहर होना: उच्च राजकोषीय घाटा उच्च ब्याज दरों को जन्म दे सकता है, क्योंकि सरकार उधार ली गई धनराशि के लिए निजी क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्द्धा करती है।
    • यह ‘क्राउडिंग आउट’ प्रभाव व्यवसायों के लिए उधार लेना अधिक महंगा बना सकता है, जिससे निजी निवेश कम हो सकता है। कम निजी निवेश आर्थिक विकास और नवाचार को बाधित कर सकता है, जिसका असर अंततः रोजगार सृजन और उत्पादकता पर पड़ता है।

राजकोषीय घाटा प्रबंधन से संबंधित सरकारी पहल

राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (FRBM Act), 2003

यह अधिनियम राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए वित्तीय अनुशासन स्थापित करता है। इसका उद्देश्य राजकोषीय घाटे का प्रबंधन करना और व्यापक आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है।

  • FRBM अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ
    • मध्यम अवधि राजकोषीय नीति वक्तव्य: यह तीन वर्षों के लिए बजट घाटे के आकार की सीमा निर्धारित करता है तथा कर और गैर-कर प्राप्तियों के लिए लक्ष्य निर्धारित करता है।
    • यह केंद्र के वार्षिक राजकोषीय घाटा अनुपात (Fiscal Deficit Ratio- FDR) के लिए सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 3% का लक्ष्य निर्धारित करता है।
    • राज्यों को अपने स्वयं के FRBM अधिनियम बनाने पड़े, जिसके तहत राज्य के राजकोषीय घाटा को उसके स्वयं के सकल घरेलू उत्पाद के 3% तक सीमित कर दिया गया।
  • FRBM समीक्षा समिति की रिपोर्ट (अध्यक्ष: एन. के. सिंह)
    • प्राथमिक लक्ष्य के रूप में ऋण: समिति ने राजकोषीय नीति के लिए प्राथमिक लक्ष्य के रूप में ऋण का उपयोग करने का सुझाव दिया।
    • GDP अनुपात के लिए ऋण: FRBM समीक्षा समिति की रिपोर्ट ने वर्ष 2023 तक सामान्य (संयुक्त) सरकार के लिए GDP अनुपात हेतु ऋण की सिफारिश की है, जिसमें केंद्र सरकार के लिए 40% और राज्य सरकारों के लिए 20% शामिल है।
    • RBI से उधार लेना: समिति के सुझावों के अनुसार, सरकार को RBI से उधार नहीं लेना चाहिए, सिवाय इसके कि:-
      • केंद्र को प्राप्तियों में अस्थायी कमी को पूरा करना है।
      • RBI किसी भी विचलन को वित्तपोषित करने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों की सदस्यता लेता है।
      • RBI द्वितीयक बाजार से सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद करता है।
    • राजकोषीय परिषद (Fiscal Council): समिति ने एक स्वायत्त राजकोषीय परिषद बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसमें केंद्र द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष और दो सदस्य होंगे।
    • विचलन: समिति ने कहा कि FRBM अधिनियम के अंतर्गत सरकार, राष्ट्रीय आपदा, राष्ट्रीय सुरक्षा या अन्य असाधारण परिस्थितियों में लक्ष्यों से अलग निर्णय ले सकती है।

राजकोषीय घाटे को बनाए रखने के संभावित समाधान

  • राजकोषीय समेकन: राजकोषीय समेकन से तात्पर्य ऐसी नीतियों तथा उपायों से है जिनका उद्देश्य सरकार के बजट घाटे को कम करना और उसके सार्वजनिक ऋण को स्थिर करना है। राजकोषीय समेकन अक्सर निम्नलिखित के संयोजन के माध्यम से प्राप्त किया जाता है:-
    • खर्च में कटौती: विभिन्न कार्यक्रमों और सेवाओं पर सरकारी व्यय में कमी।
    • राजस्व में वृद्धि: करों में वृद्धि या कर संग्रह दक्षता में सुधार।
    • ऋण प्रबंधन: ब्याज भुगतान और पुनर्भुगतान कार्यक्रम को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिए मौजूदा ऋण को पुनर्वित्त या पुनर्संरचना करना।
  • GDP के लगभग 3% का राजकोषीय घाटा बनाए रखने की कोशिश: घरेलू बचत के मौजूदा निम्न स्तर के साथ, सरकार के लिए अपने राजकोषीय घाटे को GDP के लगभग 3% पर बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि निजी निवेश और आर्थिक विकास के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध है। इस सीमा को शिथिल करने से गैर-जिम्मेदार उधार और वित्तीय अस्थिरता हो सकती है।
  • घरेलू बचत और निवेश में वृद्धि: वर्तमान में घरेलू बचत कम है (GDP का 5.3%), जो पिछले वर्षों की तुलना में कम है।
    • इस कम बचत दर का तात्पर्य है कि निजी निवेश के लिए उपलब्ध धन पहले से ही सरकारी घाटे में खर्च हो रहा है।
    • सरकार को निजी निवेश को नकारात्मक रूप से प्रभावित किए बिना अपने राजकोषीय घाटे को बढ़ाने के लिए, घरेलू बचत में वृद्धि की आवश्यकता होगी।

राजकोषीय सुदृढ़ीकरण का महत्त्व (Importance of Fiscal Consolidation) 

  • सतत् सार्वजनिक वित्त सुनिश्चित करना: राजकोषीय घाटा-से-GDP अनुपात को धीरे-धीरे कम करने से आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में मदद मिलती है और यह सुनिश्चित होता है कि सार्वजनिक वित्त सतत् बना रहे।
    •  यह अत्यधिक उधार लेने और ऋण संचय को रोकता है, जो भविष्य में आर्थिक स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकता है।
  • विवेकपूर्ण राजकोषीय नीतियों का कार्यान्वयन: प्रभावी राजकोषीय प्रबंधन में व्यय को युक्तिसंगत बनाना, राजस्व वृद्धि के उपाय और सब्सिडी सुधार शामिल हैं।
    • ये कार्य उधार पर निर्भरता को कम करने और राजकोषीय असंतुलन को दूर करने में मदद करते हैं, जिससे अधिक संतुलित और सतत् बजट को बढ़ावा मिलता है।
  • निवेशक विश्वास को बढ़ावा देना: राजकोषीय प्रबंधन के प्रति अनुशासित दृष्टिकोण निवेशक विश्वास को बढ़ाता है।
    • कम राजकोषीय घाटा और स्थिर ऋण स्तर राजकोषीय उत्तरदायित्व के प्रति प्रतिबद्धता का संकेत देते हैं, जिससे देश घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बन जाता है।

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