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भारत की शहरी परिभाषा

Lokesh Pal September 29, 2025 02:46 17 0

संदर्भ

भारत के रजिस्ट्रार जनरल ने वर्ष 2027 की जनगणना के लिए शहरी क्षेत्रों की परिभाषा के तौर पर वर्ष 2011 की जनगणना वाली परिभाषा को बनाए रखने का प्रस्ताव दिया है, लेकिन जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि यह पुराना ढाँचा शहरी आबादी की सही गणना में कमी का खतरा उत्पन्न कर सकता है।

मौजूदा शहरी परिभाषा (वर्ष 2011 जनगणना)

  • कानूनी शहर: वे क्षेत्र, जिन्हें राज्य सरकारों ने औपचारिक रूप से शहरी क्षेत्र घोषित किया हो और जिनमें शहरी स्थानीय निकाय (नगर निगम, परिषदें, नगर पंचायतें) हों।
  • जनगणना शहर: वे स्थान जो तीन मानदंडों को पूरा करते हों:
    • कम-से-कम 5,000 की जनसंख्या।
    • घनत्व 400 व्यक्ति/वर्ग किमी. या उससे अधिक।
    • कम-से-कम 75% पुरुष श्रमिक जनसंख्या गैर-कृषि कार्य में संलग्न हो।
  • जनगणना के अनुसार, ये शहर प्रशासनिक रूप से ग्रामीण ही रहते हैं, भले ही वे शहरी क्षेत्रों की तरह कार्य करते हों।

वर्तमान परिभाषा की सीमाएँ

  • दोहरे वर्गीकरण: ग्रामीण बनाम शहरी वर्गीकरण में संक्रमणकालीन और अर्द्ध-शहरी आवास क्षेत्रों की उपेक्षा की जाती है।
  • शहरीकरण को कम आँकना: संकीर्ण परिभाषात्मक मानदंड भारत की शहरी आबादी के आँकड़ों को कम आँका हुआ दर्शाते हैं, जिससे कई ऐसे समुदाय, जो वास्तविक रूप में शहरी जीवन यापन करते हैं, सरकारी रिकॉर्ड में ‘ग्रामीण’ श्रेणी में शामिल हो जाते हैं।
  • रूढ़िवादी विरासत: तुलनात्मकता बनाए रखने और शहरी वर्गीकरण में कृत्रिम वृद्धि को रोकने के उद्देश्य से ये मानदंड वर्ष 1961 में एक रूढ़िवादी दृष्टिकोण के तहत विकसित किए गए थे।।
  • प्रशासन में असंगति: प्रशासन में असंगति यह है कि कई बड़े शहरी-ग्रामीण क्षेत्र जनगणना में शहरी इकाइयों के रूप में दर्ज होते हैं, किंतु उनका प्रशासन ग्रामीण व्यवस्थाओं के अंतर्गत संचालित होता है।
  • वास्तविकता से संरेखित नहीं: वर्ल्ड बैंक का एग्लोमरेशन इंडेक्स बताता है कि वर्ष 2010 में 55.3% भारतीय शहरी जैसी परिस्थितियों में रहते थे, जो सरकारी आँकड़े 31% से बहुत अधिक है।
  • पुराना कार्यबल नियम: केवल पुरुषों और कृषि पर आधारित मापदंड महिलाओं के अनौपचारिक कार्य, गिग इकोनॉमी और मौसमी प्रवास की उपेक्षा करते हैं।

आशय

  • योजना में कमी: शहर के समान क्षेत्रों को शहरी बुनियादी ढाँचे, सेवाओं और योजनाओं से बाहर रखा गया है।
  • सेवाओं में कमी: जल, स्वच्छता, परिवहन, आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी।
  • प्रशासन में अक्षमता: ग्रामीण प्रशासन शहरी चुनौतियों से निपटने के लिए उपयुक्त नहीं है।
  • गलत सांख्यिकीय जानकारी: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, शहरी आबादी 31% थी, लेकिन घनत्व के आधार पर यह 35-57% बताई गई।
  • नीतिगत त्रुटियाँ: त्रुटिपूर्ण वर्गीकरण से SDG लक्ष्य और समावेशी शहरीकरण की नीतियाँ प्रभावित होती हैं।

वैश्विक विकल्प: संयुक्त राष्ट्र का शहरीकरण स्तर (DEGURBA)

  • UN सांख्यिकी आयोग (वर्ष 2020) द्वारा अनुमोदित।
  • यूरोपीय संघ, खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD), संयुक्त राष्ट्र मानव आवास कार्यक्रम (UN-Habitat) और विश्व बैंक द्वारा विकसित।
  • ‘हाई रिजॉल्यूशन बेस्ड सैटेलाइट इमेज’ एवं जनसंख्या ग्रिड (1 किमी.²) का प्रयोग करता है।
  • क्षेत्रों को तीन मुख्य श्रेणियों और सात उप-श्रेणियों में वर्गीकृत करता है:
    • शहरी केंद्र
    • शहरी समूह (घने, अर्द्ध-सघन, उप-शहरी/परि-शहरी)
    • ग्रामीण क्षेत्र (समूह, कम घनत्व वाले, बहुत कम घनत्व वाले)।
  • लाभ 
    • यह प्रशासनिक सीमाओं से परे बस्तियों के वास्तविक भौगोलिक विस्तार को दर्शाता है।
    • यह शहरीकरण और बुनियादी ढाँचे की आवश्यकताओं की बेहतर समझ में मदद करता है।
    • यह SDG और सेवाओं तक पहुँच की निगरानी में सुधार करता है।
  • सीमाएँ
    • कम घनत्व सीमा के कारण कृषि भूमि या कम आबादी वाले क्षेत्रों को गलत तरीके से शहरी रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
    • यह मशीन लर्निंग और सेटेलाइट डेटा पर निर्भर है, जिससे कम या अधिक पहचान की संभावना बनी रहती है।

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