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सार्क (SAARC) का पुनरुद्धार

Lokesh Pal September 10, 2024 01:50 166 0

संदर्भ

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने ‘सार्क की भावना’ (Spirit of SAARC) को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया है तथा इस बात पर बल दिया है कि यह समूह क्षेत्र की कई समस्याओं का समाधान कर सकता है।

सार्क (SAARC) अब अधिक सक्रिय रूप से कार्य नहीं कर रहा है:

  • केवल कागजों पर ही अस्तित्व में है: उन्होंने कहा कि यद्यपि सार्क का गठन एक महान उद्देश्य के साथ किया गया था, लेकिन अब यह केवल कागजों पर ही अस्तित्व में है और काम नहीं कर रहा है।
  • सार्क राष्ट्र प्रमुखों की बैठक: श्री यूनुस ने उल्लेख किया कि वह आगामी संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सार्क राष्ट्र प्रमुखों की मुलाकात करवाने का प्रयास करेंगे।

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) के बारे में

  • स्थापना: सार्क (SAARC) की स्थापना दिसंबर 1985 में ढाका में सार्क चार्टर (SAARC Charter) पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी।
  • सदस्य देश: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका।
  • पर्यवेक्षक राष्ट्र: ऑस्ट्रेलिया, चीन, यूरोपीय संघ, ईरान, जापान, दक्षिण कोरिया, मॉरीशस, म्याँमार और संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • प्राधिकरण: सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों या शासनाध्यक्षों की बैठकें सार्क के अंतर्गत निर्णय लेने का सर्वोच्च प्राधिकारी है।
  • मेजबान: शिखर सम्मेलन आमतौर पर सदस्य देश द्वारा वर्णमाला क्रम में द्विवार्षिक रूप से आयोजित किए जाते हैं।
    • शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला सदस्य देश संघ की अध्यक्षता ग्रहण करता है।

सार्क (SAARC) की विफलताएँ 

  • शिखर सम्मेलनों का स्थगन: अक्सर राजनीतिक कारणों से 30 वर्षों में, सार्क शिखर सम्मेलन को 10 से अधिक बार स्थगित किया गया है।
    • उदाहरण के लिए, इस्लामाबाद में होने वाला वर्ष 2016 का सार्क शिखर सम्मेलन रद्द कर दिया गया था, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में उरी आतंकवादी हमले के बाद भारत, बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान ने इसमें भाग लेने से इनकार कर दिया था।
    • वर्तमान में नेपाल इस क्षेत्रीय समूह को सक्रिय करने के प्रयास कर रहा है, जो वर्ष 2016 से बहुत प्रभावी नहीं रहा है।
  • विश्वास की कमी: भारत और पाकिस्तान के बीच अविश्वास ने सार्क की प्रगति में काफी बाधा डाली है, पाकिस्तान अक्सर प्रमुख पहलों में बाधा डालता है।
    • उदाहरणों में सार्क मोटर वाहन समझौते (SAARC Motor Vehicles Agreement-MVA) को रोकना तथा भारत द्वारा प्रस्तावित सार्क उपग्रह परियोजना (SAARC Satellite Project) शामिल हैं।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव: सार्क को एक गतिशील क्षेत्रीय समूह में बदलने के लिए सदस्य देशों में राजनीतिक इच्छाशक्ति का लगातार अभाव रहा है।
    • दक्षिण एशिया सर्वाधिक अविकसित क्षेत्रों में से एक बना हुआ है, जहाँ गरीबी, बेरोजगारी और असमानता जैसी गंभीर सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ मौजूद हैं।
  • कमजोर आर्थिक एकीकरण: ब्रुकिंग्स इंस्टिट्यूशन (Brookings Institution) के अनुसार, संरक्षणवादी नीतियों, उच्च रसद लागत, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और विश्वास की व्यापक कमी के कारण, दक्षिण एशिया में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार क्षेत्र के वैश्विक व्यापार के 5% पर अपनी क्षमता से काफी नीचे बना हुआ है।
    • दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (South Asia Free Trade Agreement- SAFTA) जैसी पहल, हालाँकि वर्ष 2006 में क्रियान्वित की गई थी, लेकिन क्षेत्र में व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने में इससे न्यूनतम सफलता मिली है।
  • सुरक्षा चुनौतियाँ: सदस्य देशों के बीच खतरे की अलग-अलग धारणाओं के कारण सार्क को सुरक्षा सहयोग में संघर्ष करना पड़ा है।
    • पाकिस्तान की ओर से सीमापार आतंकवाद पर भारत की चिंताएँ अभी भी अनसुलझी हैं, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा पहलों में प्रगति अवरुद्ध हो रही है।
  • भारत के प्रभुत्व की धारणा: छोटे सदस्य देश भारत को उसके बड़े भूगोल, अर्थव्यवस्था और सैन्य ताकत के कारण एक प्रमुख ‘हितधारक’ के रूप में देखते हैं।
    • इससे क्षेत्र में भारत की मंशा को लेकर आशंका उत्पन्न होती है और सहयोग में बाधा उत्पन्न होती है।
  • विकल्प के रूप में बिम्सटेक (BIMSTEC) का उदय: हाल के वर्षों में, बिम्सटेक (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल) अपने अधिक सौहार्दपूर्ण सदस्य संबंधों और साझा उद्देश्यों के कारण उभरा है।
    • बिम्सटेक (BIMSTEC) दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को जोड़ता है तथा निष्क्रिय पड़े सार्क के लिए एक विकल्प प्रदान करता है।

सार्क (SAARC) और बिम्सटेक (BIMSTEC) का तुलनात्मक अध्ययन 

सार्क (SAARC)

बिम्सटेक (BIMSTEC)

1. दक्षिण एशिया के देशों को जोड़ने वाला एक क्षेत्रीय संगठन

2. वर्ष 1985 में स्थापित; शीतयुद्ध के दौरान एक अलग विचारधारा के रूप में विकसित हुआ। 

3. इस संगठन के सदस्य देश अविश्वास एवं संदेह से ग्रसित हैं।

4. यह संगठन क्षेत्रीय राजनीति से प्रभावित है। 

5. इसमें असममित शक्ति संतुलन बना हुआ है।  

6. इस संगठन में शामिल देशों के बीच अंतर-क्षेत्रीय व्यापार केवल 5 प्रतिशत है।

1. दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ने वाला अंतर-क्षेत्रीय संगठन।

2. शीतयुद्ध के बाद वर्ष 1997 में अस्तित्व में आया।

3. इस संगठन के सदस्य यथोचित मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखते हैं।

4. इस संगठन का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग में सुधार करना है।

5. इस संगठन में थाईलैंड और भारत की उपस्थिति से शक्ति संतुलन बना हुआ है। 

6. इस संगठन में शामिल देशों के बीच एक दशक में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार में लगभग 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

सार्क समूह को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता

  • क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान: दक्षिण एशिया गरीबी, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और ऊर्जा संकट जैसी आम चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो सीमाओं से परे हैं। सार्क इन चुनौतियों का सामूहिक रूप से समाधान करने के लिए एक मंच प्रदान कर सकता है।
  • वैश्विक प्रासंगिकता: आसियान और यूरोपीय संघ जैसे वैश्विक शक्ति ब्लॉकों के प्रमुखता प्राप्त करने के साथ, दक्षिण एशिया हाशिए पर जाने का जोखिम उठाता है।
    • सार्क (SAARC) को पुनर्जीवित करने से क्षेत्र की वैश्विक स्थिति मजबूत हो सकती है।
  • अंतर-क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देना: दक्षिण एशिया में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार 5% पर कम बना हुआ है। SAARC को पुनर्जीवित करने से SAFTA के पूर्ण कार्यान्वयन के माध्यम से आर्थिक संबंधों में वृद्धि हो सकती है, क्षेत्रीय अंतर-निर्भरता को बढ़ावा मिलेगा और राजनीतिक तनाव कम होगा।
    • ऊर्जा पाइपलाइनों और सीमापार सड़कों सहित क्षेत्रीय परियोजनाएँ विकास को गति दे सकती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: SAARC आपदा प्रबंधन, तकनीकी साझाकरण और जलवायु लचीलापन रणनीतियों के लिए एक सहकारी ढाँचा प्रदान कर सकता है।
  • सुरक्षा सहयोग: SAARC में आतंकवाद और सीमा पार आपराधिक गतिविधियों जैसे मुद्दों के खिलाफ खुफिया जानकारी साझा करने तथा संयुक्त कार्रवाई के लिए एक मंच के रूप में कार्य करने की क्षमता है।
  • संघर्ष समाधान: SAARC राजनीतिक तनावों के बीच भी आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से संवाद को खुला रखते हुए विश्वास-निर्माण उपाय के रूप में कार्य कर सकता है।
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान: SAARC को पुनर्जीवित करने से पर्यटन, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और शैक्षणिक सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे सदस्य देशों के बीच आपसी समझ तथा विश्वास को बढ़ावा मिलेगा।
  • प्रवासन और श्रम अधिकार: SAARC क्षेत्र के भीतर श्रम कानूनों और सुरक्षित प्रवास के लिए रूपरेखा बनाकर प्रवासी श्रमिकों के लिए बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है, जिससे लाखों श्रमिकों को लाभ होगा।
    • उदाहरण के लिए, बांग्लादेश म्याँमार को रोहिंग्या लोगों को वापस लेने के लिए राजी करने हेतु भारत से मदद माँग रहा है।

भारत के लिए सार्क समूह का महत्त्व

  • सॉफ्ट पॉवर प्रभाव: सार्क एक बहुपक्षीय मंच है, जहाँ भारत प्रमुख खिलाड़ी है, जिससे उसे दक्षिण एशिया में सॉफ्ट पॉवर का प्रयोग करने का अवसर मिलता है।
    • उदाहरण के लिए, दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (South Asian University- SAU) भारत की सॉफ्ट पॉवर का एक प्रमुख उदाहरण है, जो बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और भूटान जैसे देशों से छात्रों को आकर्षित करता है।
  • ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति: सार्क भारत के अपने निकटतम पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने, क्षेत्रीय सहयोग और विकास को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • चीन के लिए भू-सामरिक प्रत्युत्तर: भारत सार्क के माध्यम से आर्थिक सहयोग और विकास को बढ़ावा देकर, अपने पड़ोसियों को आपसी विकास प्रयासों में शामिल करके चीन की बेल्ट एंड रोड पहल परियोजना का मुकाबला कर सकता है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता: सार्क आपसी विश्वास बनाने में मदद कर सकता है, विशेषकर भारत और पाकिस्तान के बीच, यह सुनिश्चित करते हुए कि क्षेत्रीय हितों को द्विपक्षीय विवादों पर प्राथमिकता दी जाए।
  • वैश्विक नेतृत्व की भूमिका: सार्क के माध्यम से, भारत अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ सँभालकर, अपनी वैश्विक छवि को मजबूत करके दक्षिण एशिया में अपने नेतृत्व का प्रदर्शन कर सकता है।
  • एक्ट ईस्ट नीति को बढ़ावा: दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़कर, सार्क भारत की एक्ट ईस्ट नीति को आगे बढ़ा सकता है, आर्थिक एकीकरण और विकास को बढ़ावा दे सकता है, विशेष रूप से भारत के अविकसित पूर्वी क्षेत्रों को लाभ पहुँचा सकता है।
  • निर्यात की संभावना: सार्क के भीतर आर्थिक एकीकरण भारतीय कंपनियों के लिए बड़े बाजार खोल सकता है, राजस्व बढ़ा सकता है और निर्यात के अवसरों का विस्तार कर सकता है।

सार्क समूह को पुनर्जीवित करने की आगे की राह

  • सर्वसम्मति की आवश्यकता: सार्क को प्रभावी बनाने के लिए, सदस्य देशों को आवश्यक सुधारों पर सहमत होना होगा।
    • हालाँकि, भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों के कारण आम सहमति बनाना चुनौतीपूर्ण है।
  • यूरोपीय संघ (EU) से सीख: हालाँकि EU ने सहयोग के माध्यम से महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल की है, सार्क को क्षेत्रीय एकीकरण में सफलता के समान स्तर तक पहुँचना शेष है।
  • वैकल्पिक विकास मॉडल: चीनी निवेश में वृद्धि के मद्देनजर, सार्क सतत् विकास विकल्पों की सिफारिश करने, व्यापार शुल्कों का विरोध करने और वैश्विक स्तर पर दक्षिण एशियाई श्रमिकों के लिए बेहतर शर्तों पर बातचीत करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य कर सकता है।
  • सांस्कृतिक आत्मीयता (Cultural Affinity): सार्क दक्षिण एशिया की साझा सांस्कृतिक, भाषायी, धार्मिक और ऐतिहासिक पहचान का प्रतिनिधित्व करता है, जो क्षेत्र के प्राकृतिक भौगोलिक और सामाजिक संबंधों पर जोर देता है।
  • क्षेत्रीय शांति बनाए रखना: सदस्य देशों को साझा सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करके और सहयोग को बढ़ावा देकर दक्षिण एशिया में शांति तथा स्थिरता बनाए रखने के लिए सार्क की क्षमता का पता लगाना चाहिए।
  • नागरिक संपर्क: सार्क को ऐसे क्षेत्र में लोगों-से-लोगों के बीच अधिक संपर्क को बढ़ावा देना चाहिए, जिसमें दुनिया की एक-चौथाई आबादी रहती है।

निष्कर्ष

क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करने, सहयोग बढ़ाने, स्थिरता को बढ़ावा देने तथा सामूहिक आर्थिक और रणनीतिक पहल के माध्यम से दक्षिण एशिया की वैश्विक उपस्थिति को मजबूत करने के लिए सार्क को पुनर्जीवित करना महत्त्वपूर्ण है।

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