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जलवायु बहस में भावी पीढ़ियों के अधिकारों का मार्गदर्शन

Lokesh Pal September 19, 2024 01:23 96 0

संदर्भ

भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित विश्व में रहने के अधिकारों को सुनिश्चित करना, जलवायु न्याय की माँग को आगे बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित आगामी ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन’ (Summit Of The Future) का एक महत्त्वपूर्ण एजेंडा होगा।

भविष्य के शिखर सम्मेलन 2024 के बारे में

  • शिखर सम्मेलन एक उच्च स्तरीय कार्यक्रम है, जो बेहतर वर्तमान प्रदान करने और भविष्य की सुरक्षा के बारे में एक नई अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाने के लिए विश्व नेताओं को एक साथ लाता है।
  • उत्पत्ति (Origin): शिखर सम्मेलन का विचार पहली बार वर्ष 2020 में सामने आया था, जब संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगाँठ पर भविष्य के लिए आशाओं तथा आशंकाओं के बारे में वैश्विक बातचीत शुरू हुई थी।
    • संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक रिपोर्ट पेश की, जिसका नाम है ‘हमारा साझा एजेंडा’ (Our Common Agenda), जिसमें अनेक जोखिमों और खतरों से निपटने के लिए नए सिरे से वैश्विक सहयोग की सिफारिश की गई है तथा वर्ष 2024 में एक अग्रगामी शिखर सम्मेलन आयोजित करने का प्रस्ताव दिया गया है।
  • शिखर सम्मेलन का स्थान: यह न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित किया जाएगा।
  • शिखर सम्मेलन का उद्देश्य
    • अपनी मौजूदा अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के प्रयासों में तेजी लाएँ। 
    • उभरती चुनौतियों तथा अवसरों का सामना करने के लिए ठोस कदम उठाएँ।
  • लक्ष्य: एक ऐसे विश्व या अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का निर्माण करना, जो समस्त मानवता तथा भावी पीढ़ियों के लिए वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का बेहतर ढंग से प्रबंधन करने के लिए तैयार हो।
  • विषय-वस्तु 
    • सतत् विकास और वित्तपोषण
    • शांति और सुरक्षा
    • सभी के लिए एक डिजिटल भविष्य
    • युवा और भावी पीढ़ियाँ
    • वैश्विक शासन
  • भविष्य के लिए समझौता: यह एक कार्य-उन्मुख परिणाम दस्तावेज है, जिस पर बातचीत की जाएगी और संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन वर्ष 2024 में देशों द्वारा इसका समर्थन किया जाएगा।
    • इस दस्तावेज में अनुलग्नक के रूप में एक वैश्विक डिजिटल समझौता तथा भावी पीढ़ियों पर एक घोषणा शामिल होगी।

जलवायु न्याय (Climate Justice) क्या है?

  • जलवायु न्याय जलवायु संकट को सामाजिक, नस्लीय और पर्यावरणीय मुद्दों से जोड़ता है, जिनमें यह गहराई से उलझा हुआ है।
  • यह अवधारणा जलवायु संकट को व्यापक परिप्रेक्ष्य से देखने पर जोर देती है, अर्थात् पहले से ही कमजोर समुदायों पर बदलती जलवायु के असमान प्रभावों पर विचार करती है तथा बेहतर अस्तित्व के लिए नागरिक अधिकार आंदोलन का आह्वान करती है।

  • जलवायु न्याय के पहलू
    • संरचनात्मक असमानताएँ: नस्ल, जातीयता, लिंग और सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर संरचनात्मक असमानताएँ जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को बढ़ाती हैं, जो एक ही देश के भीतर कुछ समुदायों पर दूसरे समुदायों की तुलना में अधिक प्रभाव डालती हैं।
    • सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: निम्न आय वाले देश तथा हर जगह कमजोर आबादी जलवायु-प्रेरित हानि और क्षति के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तथा इसे संबोधित करने के लिए आवश्यक संसाधन दुनिया भर में असमान रूप से वितरित किए जाते हैं।
    • अंतर-पीढ़ीगत असमानता: बच्चे तथा युवा, यद्यपि जलवायु संकट में महत्त्वपूर्ण रूप से योगदान नहीं करते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की पूरी ताकत को वे ही झेलेंगे, इसलिए जलवायु से संबंधित सभी निर्णय लेने तथा कार्रवाई में उनके अधिकारों को केंद्र में रखा जाना चाहिए।

अंतर-पीढ़ीगत जलवायु न्याय- भावी पीढ़ी के अधिकार

  • अंतर-पीढ़ीगत जलवायु न्याय सतत् विकास के विचार तथा अंतर-पीढ़ीगत समता की संबंधित अवधारणा पर आधारित है।
  • स्तंभ: ये दो अवधारणाएँ सतत् विकास के लिए वर्ष 2030 एजेंडा के तीन मुख्य स्तंभ हैं।

जलवायु न्याय को बढ़ावा देने में भारत की भूमिका

  • वैश्विक दक्षिण का नेतृत्व: भारत ने जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों को क्षतिपूर्ति देने के लिए हानि एवं क्षति कोष की स्थापना में सहायता करके COP27 में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन: भारत ने घरेलू स्तर पर (वर्ष 2030 तक 280 गीगावाट का लक्ष्य) तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए सौर ऊर्जा के उपयोग का समर्थन किया है।
  • मिशन लाइफ (Mission LIFE): भारत ने अपने मिशन लाइफ के माध्यम से वन हेल्थ अप्रोच को बढ़ावा देने तथा 3R सिद्धांत – रिड्यूस, रीयूज और रीसाइकिल को अपनाने के साथ टिकाऊ जीवनशैली की यात्रा शुरू की है।
  • आपदा रोधी अवसंरचना के लिए गठबंधन: इस संगठन का उद्देश्य द्वीपीय देशों जैसे संवेदनशील देशों के साथ तकनीकी, अवसंरचनात्मक और वित्तीय विशेषज्ञता और क्षमता साझा करके जलवायु और आपदा जोखिमों के प्रति अवसंरचना प्रणालियों के लचीलेपन को बढ़ावा देना है।
  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (Pradhan Mantri Ujjwala Yojana): यह कार्यक्रम कमजोर महिलाओं को स्वच्छ रसोई गैस उपलब्ध कराता है।
  • हर घर जल (Har Ghar Jal): इस कार्यक्रम का उद्देश्य वर्ष 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नल का जल उपलब्ध कराना है।
  • स्वच्छ भारत अभियान (Swachh Bharat Abhiyan): सभी को कार्यात्मक शौचालयों तक पहुँच प्रदान करना तथा भारत को खुले में शौच से मुक्त बनाना।
  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना: सरकार ने वर्ष 2008 में इस योजना को शुरू किया था, जिसमें आठ राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं, जैसे राष्ट्रीय सौर मिशन, राष्ट्रीय संवर्द्धित ऊर्जा दक्षता मिशन, और राष्ट्रीय सतत् आवास मिशन आदि।

    • भविष्य के प्रति मानवता के सामूहिक कर्तव्य।
    • वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों द्वारा समान रूप से आनंदित होने के लिए नई वैश्विक सार्वजनिक वस्तुओं का निर्माण करना।
    • समावेशी शासन और निर्णय लेना।
  • आयाम: यह एक बहुआयामी अवधारणा है, जिसमें निम्नलिखित अवधारणाएँ शामिल हैं:
    • सामान्य लेकिन ऐतिहासिक जिम्मेदारी: पिछले तथा वर्तमान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदारी स्वीकार करना।
    • वितरणात्मक न्याय: बंदोबस्ती तथा प्राकृतिक संसाधनों का समान वितरण।
    • पुनर्स्थापनात्मक न्याय: पृथ्वी प्रणालियों तथा मनुष्यों और प्रकृति के बीच संबंधों की बहाली।
    • प्रक्रियात्मक न्याय: निर्णय लेने में शासन संरचनाओं में निष्पक्षता।
  • अंतर-पीढ़ीगत न्याय तथा समानता पर दिशा-निर्देश तथा सिद्धांत
    • भावी पीढ़ियों के मानवाधिकारों पर मास्ट्रिच सिद्धांत: सिद्धांतों को 3 फरवरी 2023 को मास्ट्रिच में अपनाया गया था, जो अपने 36वें सिद्धांत के साथ सतत् विकास और जलवायु न्याय के विमर्श को भविष्य की पीढ़ियों के अधिकारों से स्पष्ट रूप से जोड़ता है।
      • मानवाधिकार मानव परिवार के सभी सदस्यों तक फैले हुए हैं, जिनमें वर्तमान तथा  भावी दोनों पीढ़ियाँ शामिल हैं।
    • भावी पीढ़ियों पर साझा सिद्धांत: संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 में भावी पीढ़ियों पर सामान्य सिद्धांतों का समर्थन किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संयुक्त राष्ट्र एजेंसियाँ ​​भावी पीढ़ियों के हित में कार्रवाई करें, सार्थक प्रतिनिधित्व स्थापित करें तथा साझेदारी एवं  क्षमताओं को बढ़ावा देते है।
    • संयुक्त राष्ट्र की भावी पीढ़ियों के अधिकारों के लिए कार्रवाई का आह्वान (The Call to Action- Rights of Future Generations of the UN): इसमें यह माना गया है कि पर्यावरणीय कार्यों तथा सतत् विकास के उद्देश्य तभी प्राप्त होंगे जब वे मानवाधिकारों से अवगत होंगे।
    • जिम्बाब्वे के संविधान का अनुच्छेद-73: इसमें कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लाभ के लिए संरक्षित पर्यावरण का अधिकार है।
  • मुकदमेबाजी के माध्यम से जलवायु न्याय
    • फ्यूचर जेनरेशन बनाम पर्यावरण मंत्रालय एवं अन्य मामले में: इस ऐतिहासिक निर्णय ने कोलंबियाई सरकार को कोलंबियाई अमेजन वनों के लिए अंतर-पीढ़ीगत समझौते को तैयार करने और लागू करने का आदेश दिया, जो अंतर-पीढ़ीगत एकजुटता के सिद्धांतों को आगे बढ़ाता है।
    • गोवा फाउंडेशन बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में: भारत में सर्वोच्च न्यायालय ने भावी पीढ़ियों के लिए एक वास्तविक ट्रस्ट फंड बनाया।
    • एम के रंजीतसिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ 21 मार्च, 2024: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार (अनुच्छेद-21) और समानता के अधिकार (अनुच्छेद-14) की व्याख्या का विस्तार करते हुए इसमें जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से सुरक्षा को भी शामिल किया।

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