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विश्व की प्रवासी प्रजातियों की स्थिति रिपोर्ट

Lokesh Pal February 14, 2024 05:17 92 0

संदर्भ

उज्बेकिस्तान के समरकंद में CMS-COP14 के उद्घाटन पर जंगली जानवरों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर कन्वेंशन (Convention on the Conservation of Migratory Species of Wild Animals-CMS) द्वारा पहली बारविश्व की प्रवासी प्रजातियों की स्थितिरिपोर्ट  जारी की गई ।

संबंधित तथ्य

  • डेटा सेट: यह रिपोर्ट बर्डलाइफ इंटरनेशनल, इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (International Union for Conservation of Nature -IUCN) और लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (जूलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन द्वारा प्रबंधित), वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड फॉर नेचर (World Wildlife Fund for Nature) जैसे संस्थानों से के सहयोग से प्राप्त प्रजाति संबंधी आँकड़ों का उपयोग करती है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

  • मानवजनित दबाव: मानवजनित दबाव के कारण लाखों प्रवासी पशु प्रजातियाँ खतरे में हैं। उदाहरण- मानवजनित गतिविधियों के कारण आवास स्थलों की हानि और बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के कारण मोनार्क तितलियों ( Monarch butterflies) के विलुप्त होने का खतरा है।
  • जलीय पारिस्थितिकी तंत्र: सीएमएस (Convention on the Conservation of Migratory Species of Wild Animals-CMS ) के तहत सूचीबद्ध 97 प्रतिशत प्रवासी मछलियों के विलुप्त होने के खतरे का सामना करने के साथ वे सर्वाधिक प्रभावित हैं।
  • जनसंख्या में गिरावट: सीएमएस (CMS)-सूचीबद्ध प्रजातियों में से 44 प्रतिशत (520 प्रजातियाँ) प्रजातियों की संख्या में गिरावट हो रही है। सीएमएस (CMS) की पाँच में से एक प्रजाति विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही है।

प्रवासी प्रजातियों में गिरावट के कारण:

  • अत्यधिक दोहन: ‘बायकैच’ अत्यधिक दोहन के कारकों में से एक है और समुद्री पक्षियों विशेष रूप से अल्बाट्रॉस और पेट्रेल के लिए सबसे चिंताजनक खतरा है जिनकेगिलनेट फिशिंग’ (Gillnet fishing) में फँसने के कारण सैकड़ों हजारों की संख्या में मारे जाने का अनुमान है।
  • पर्यावास हानि, क्षरण और विखंडन: सीएमएस (CMS) में सूचीबद्ध चार प्रजातियों में से तीन पर्यावास हानि, क्षरण और विखंडन से प्रभावित हैं।
  • अत्यधिक मत्स्यन: धीमी गति से बढ़ने वाली शार्क, रे और काइमेरा के लिए खतरा।
  • कृषि और कीटनाशकों का उपयोग: संयुक्त गणराज्य तंजानिया और केन्या में सेरेन्गेटी-मारा पारिस्थितिकी तंत्र (Serengeti-Mara ecosystem) कृषि, बस्तियों, सड़कों और बाड़ के विस्तार से दाब का अनुभव कर रहा है।
  • प्रदूषण:
    • ध्वनि प्रदूषण:
      • शिकार की तलाश में चमगादड़ अपने शिकार के दौरान इकोलोकेशन’ का उपयोग करते हैं। मानवजनित ध्वनि प्रदूषण उनकी शिकार क्षमता को प्रभावित करता है।
      • शिपिंग जहाजों से पानी के भीतर शोर प्रदूषण के परिणामस्वरूपहार्बर पोर्पोइज और किलर व्हेल’ जैसी प्रजातियों के बीच खाद्य सामग्री कम हो जाती है।
    • प्रकाश, प्लास्टिक और रासायनिक प्रदूषण: तेल रिसाव और सीसा एवं कृषि कीटनाशकों जैसे संदूषण के परिणामस्वरूप मरने वाले पक्षियों की संख्या में वृद्धि होती है, जिससे उनके प्रजनन और गैर-प्रजनन स्थान एवं चरागाह स्थान प्रभावित होते हैं।
  • खतरा श्रेणी: जलीय कृषि, गैर-लकड़ी फसल उत्पादन, आक्रामक प्रजातियाँ, खनन आदि को भी खतरे की श्रेणी में शामिल किया गया है।
  • बुनियादी ढाँचे के विकास में बाधाएँ: बाँध और नदी के बुनियादी ढाँचे जैसी बाधाएँ प्रवासी मछलियों को उनके प्रजनन स्थल तक पहुँचने से रोकती हैं, जल प्रवाह व्यवस्था में परिवर्तन करती हैं और किशोर मछलियों को फैलने से रोकती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: कई प्रवासी प्रजातियाँ जलवायु परिवर्तन के अनुकूल नहीं हो पाती हैं।
    • उदाहरण: समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि, समुद्री बर्फ के पिघलने से कई प्रजातियों के आवास क्षेत्र में कमी आने की उम्मीद है।

रिपोर्ट में उल्लिखित सफलता की कहानियाँ:

  • बोत्सवाना में ओकावांगो डेल्टा: बाड़ हटाकर खंडित आवासों को बहाल किया गया, जिससे ऐतिहासिक रूप से प्रवासन के लिए जाने वाले बुर्चेल जेब्रा की उपस्थिति संभव हो गई।
  • कजाकिस्तान मेंअल्टीन डालासंरक्षण पहल: साइगा मृग के लिए आश्रय स्थल बनाकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।स्टेपीजऔर आर्द्रभूमि आवासों को पुनर्जीवित करने के कदम ने प्रवासी प्रजातियों को विलुप्त होने के कगार से वापस ला दिया।

जंगली जानवरों की प्रवासी प्रजातियों का संरक्षण (CMS):

  • CMS: यह संयुक्त राष्ट्र की एक पर्यावरण संधि है जो प्रवासी जानवरों और उनके आवासों के संरक्षण और सतत् उपयोग के लिए एक वैश्विक मंच प्रदान करती है। यह वर्ष 1979 में लागू हुआ। इसे ‘बॉन कन्वेंशन के नाम से भी जाना जाता है।
  • उद्देश्य: यह संधि दुनिया भर में स्थलीय, जलीय और पक्षी प्रवासी प्रजातियों और उनके आवासों की संरक्षण आवश्यकताओं को संबोधित करती है।
  • सदस्यता: इसमें अफ्रीका, मध्य और दक्षिण अमेरिका, एशिया, यूरोप और ओशिनिया के 133 पक्षकार शामिल हैं। भारत भी वर्ष 1983 से सीएमएस का एक पक्षकार रहा है।
  • सीएमएस में दो परिशिष्ट हैं: ये स्थलीय और जलीय स्तनधारियों, सरीसृपों, मछलियों, पक्षियों और कीड़ों की विभिन्न प्रजातियों को कवर करते हैं।
    • परिशिष्ट: इसमें उन प्रवासी प्रजातियों को शामिल किया गया है, जिनका मूल्यांकन उनकी संपूर्ण सीमा या उसके एक महत्वपूर्ण हिस्से में विलुप्त होने के खतरे में है।
    • परिशिष्ट II: यह उन प्रवासी प्रजातियों को शामिल करता है जिनकी संरक्षण स्थिति प्रतिकूल है और जिनके संरक्षण और प्रबंधन के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौतों की आवश्यकता होती है साथ ही जिनके पास संरक्षण की स्थिति है जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग से महत्वपूर्ण रूप से लाभान्वित होंगे जो एक अंतरराष्ट्रीय समझौते से प्राप्त हो सकते हैं।

सीएमएस सीओपी 13 (CMS COP 13): 

  • बैठक: CMS COP-13 फरवरी 2020 में गांधीनगर, भारत में आयोजित किया गया था।
  • गांधीनगर घोषणा: इसे CMS COP13 में अपनाया गया था। घोषणा में प्रवासी प्रजातियों और पारिस्थितिकी कनेक्टिविटी की अवधारणा को वर्ष 2020 के बाद के नए वैश्विक जैव विविधता ढाँचे में एकीकृत और प्राथमिकता देने का आह्वान किया गया है।
  • शुभंकर: गिबी-द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
  • यह एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति है (IUCN के अनुसार) और इसे वर्ष 1972 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत उच्चतम संरक्षण दर्जा (अनुसूची-I में सूचीबद्ध) दिया गया है।

सीएमएस सीओपी 14 (CMS COP14):

  • कॉन्फ्रेंसऑफ पार्टीज (COP-Conference of the Parties): यह कन्वेंशन का प्रमुख निर्णय लेने वाला निकाय है।
  • बैठक: इसकी प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार बैठक आयोजित होती है और अगले तीन वर्षों (त्रिवार्षिक) के लिए बजट और प्राथमिकताएँ तय की जाती हैं।
  • COP 14: सीएमएस सीओपी-14 मध्य एशिया में आयोजित होने वाली किसी भी वैश्विक पर्यावरण संधि से संबंधित पहला COP है, जो सैगा एंटेलोप, स्नो लेपर्ड और प्रवासी पक्षियों की कई प्रजातियों सहित कई प्रवासी प्रजातियों का घर है।
  • स्लोगन: ‘प्रकृति कोई सीमा नहीं जानती’।

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