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भारत और दक्षिण एशिया (India and South Asia)

Samsul Ansari December 28, 2023 06:18 515 0

नोट : प्रस्तुत लेख The Indian Express में प्रकाशित “C Raja Mohan writes | Is India ‘losing’ South Asia? That’s not the question” पर आधारित है

संदर्भ:

हाल के वैश्विक परिदृश्य में जैसे-जैसे पड़ोसी देश सरकार बदलने के बाद भारत के हितों को नज़रंदाज़ करते हुए नीतियों में बदलाव कर रहे हैं (जैसा कि हाल ही में मालदीव ने भारत को मालदीव से अपनी सेना हटा लेने के लिए कहा) तो इस संदर्भ में जो एक अहम सवाल उभर कर सामने आता है वह यह कि क्या भारत दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव खो रहा है?

प्रारंभिक परीक्षा : दक्षिण एशियाई देश और वैश्विक मानचित्र पर उनकी अवस्थिति तथा SAARC 

मुख्य परीक्षा : भारत और दक्षिण एशिया के मध्य संबंध, इस क्षेत्र में भारत के लिए प्रमुख चुनौतियाँ तथा आगे कि राह

बदलते परिप्रेक्ष्य: औपनिवेशिक काल के बाद दक्षिण एशिया में भारत की विकसित होती भूमिका

  • औपनिवेशिक युग के दौरान, यह उपमहाद्वीप एक शक्तिशाली भू-राजनीतिक इकाई बन गया था
  • उसने क्षेत्रीय आधिपत्य स्थापित किया था और पड़ोसी क्षेत्रों को संरक्षित एवं बफर क्षेत्रों में बदल दिया था।
  • हालाँकि इस उपमहाद्वीप से अंग्रेजों के जाने के साथ-साथ बहुत कुछ बदल गया है।
  • ब्रिटिशों के प्रस्थान के बाद:
    • श्रीलंका, म्यांमार स्वतंत्र संप्रभु राष्ट्र बन गए। 
    • इसके अलावा धार्मिक आधार पर उपमहाद्वीप के विभाजन ने इसकी एकता को कमजोर कर दिया और अनसुलझे सीमा एवं क्षेत्रीय विवादों को जन्म दिया। 

दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत के समक्ष उपस्थित प्रमुख चुनौतियाँ:

  • कश्मीर एक अधूरे एजेंडे के रूप में: 
    • पाकिस्तान कश्मीर की समस्या को विभाजन के अधूरे एजेंडे के रूप में देखता है।
    • इस मुद्दे पर पकिस्तान न सिर्फ भारत के साथ सीमित, लेकिन सकारात्मक भागीदारी विकसित करने के ही पक्ष में है । 
    • और न ही सार्क (SAARC) के तत्वावधान में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय एकीकरण को सुविधाजनक बनाने के लिए अस्थायी रूप से भी इसे एक तरफ रखने को तैयार नहीं है। 

 

सार्क (SAARC) के बारे में: 

  • स्थापना : सार्क कि स्थापना दिसम्बर 1985 के दौरान ढाका में सार्क चार्टर पर हस्ताक्षर कर कि गई थी।
  • सदस्य देश: इसमें कुल आठ सदस्य देश क्रमशः अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल, पकिस्तान श्रीलंका तथा भारत शामिल हैं।
  • यह एक अंतरसरकारी संगठन है ।
  • सचिवालय : इसके सचिवालय को जनवरी 1987 को काठमांडू में स्थापित किया गया था।
  • उद्देश्य : संगठन का प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है – 
    • दक्षिण एशिया के लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना।
    • उनके जीवन कि गुणवत्ता में सुधार करना।
    • क्षेत्र में आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास में तेजी लाना।
    • दक्षिण एशिया के देशों के मध्य सामूहिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना और उन्हें मजबूती प्रदान करना।

South Asian association for Regional Cooperation (SAARC)

  • आर्थिक विभाजन और राजनीतिक बाधाएँ: उपमहाद्वीप का राजनीतिक विभाजन, आर्थिक विभाजन के समानांतर था क्योंकि भारत और उसके पड़ोसी देशों ने आत्म-निर्भरता के मॉडल (Autarky) को अपनाया।
  • घरेलू राजनीति में भारत की राजनीतिक छवि: हमारे पड़ोसी देशों की घरेलू राजनीति में भारत का दबदबा है।
  • यदि पड़ोसी अभिजात वर्ग का एक प्रतिस्पर्धी गुट चाहता है कि भारत घरेलू राजनीतिक संघर्षों में अपनी ओर से हस्तक्षेप करे, तो दूसरा गुट भारत के हस्तक्षेपवाद को आधिपत्यवादी कहकर निंदा करता है।
  • राजनीतिक फ्लिप-फ्लॉप: एक ही पार्टी और एक ही नेता भारत के प्रति अलग-अलग समय पर अलग-अलग रुख अपनाते हैं।
    • उदाहरण के लिए: एक तरफ जहाँ इमरान खान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति उनकी कथित गर्मजोशी के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर हमला किया।
    • तो वहीं दूसरी तरफ वर्ष 2019 के भारतीय आम चुनाव से पहले, इमरान खान का कथन रहा कि कश्मीर समस्या को हल करने में प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान के लिए सबसे अच्छा दांव थे और उम्मीद थी कि वह पुनः निर्वाचित होंगे।
  • दक्षिण एशिया में चीन: उपमहाद्वीप में चीन के आर्थिक और सैन्य प्रभाव का नाटकीय विस्तार पड़ोसी देशों के साथ भारत के प्रभाव को चुनौती देता है।
  • अन्य देशों का प्रभाव: दक्षिण एशिया में उनकी बढ़ती आर्थिक और सैन्य क्षमताओं के बीच मध्य पूर्वी देशों – कतर, सऊदी अरब, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात का प्रभाव बढ़ रहा है।

भारत की तनावपूर्ण सीमाएँ:

  • पश्चिम: पश्चिम में तालिबान और पाकिस्तानी सेना के मध्य संघर्ष तेज़ होता जा रहा है।
  • पूर्व: पूर्व में, नृजातीय सशस्त्र समूहों और लोकतंत्र समर्थक ताकतों ने अपने विशाल उत्तरी क्षेत्रों पर बर्मी सेना के नियंत्रण को गंभीरता से चुनौती देने के लिए हाथ मिलाया है।

आगे कि राह:

  • वास्तविक प्रश्न भारत के “दक्षिण एशिया को खोने” का नहीं है, बल्कि बदलते क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाने के रास्ते तलाशने का है।
  • भारत के पास न केवल अपने हितों की रक्षा करने, बल्कि अपने पड़ोस में अपना प्रभाव बढ़ाने की भी पर्याप्त क्षमताएँ हैं।
  • हालाँकि, इसे प्रभावी ढंग से करने के लिए, दिल्ली को पुराने दक्षिण एशिया के प्रति जुनून को त्यागना होगा।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न : दक्षिण एशियाई क्षेत्रों में भारत के घटते प्रभाव को ध्यान में रखते हुए इसके पीछे के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए इससे निपटने के लिए भारत द्वारा कौन-कौन से कदन उठाए जाने कि आवश्यकता है? टिप्पणी कीजिए।

News Source: The Indian Express

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